अब प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से होंगे महापौर, नपा-परिषद अध्यक्ष के चुनाव

चुनाव प्रणाली
  • जारी है बदलाव के लिए सरकार के रणनीतिकारों में मंथन

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में एक बार फिर से सरकार द्वारा नगरीय निकायों के चुनाव में महापौर, नपा और परिषद अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।  फिलहाल इस बड़े बदलाव के लिए शिवराज सरकार द्वारा मंथन किया जा रहा है। पूर्व में इसी तरह से चुनाव कराने का निर्णय कमलनाथ सरकार ने लिया था , लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सरकार ने उनके फैसले को बदलते हुए नगर निगमों में महापौर, नगर पालिका एवं नगर परिषदों में अध्यक्ष पद के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली यानि की पार्षदों के माध्यम से कराने का फैसला कर लिया था।
अगर अब एक बार फिर से बदलाव किया जाता है तो फिर इन पदों पर भी निर्वाचन सीधे जनता द्वारा किया जाएगा। सरकार नए नियम को अध्यादेश के जरिये लागू करने की तैयारियां कर रही है। इसके लिए सरकार स्तर पर बीते रोज पूरी गंभीरता से मंथन किया जाता रहा है। भाजपा सरकार के विशेष रणनीतिकारों के बीच चल रहे इस मंथन की वजह से यह तय माना जा रहा है की शिवराज सरकार अध्यादेश के जरिये कमलनाथ सरकार के उस फैसले को पलटेगी , जिसके अनुसार महापौर और अध्यक्षों का चुनाव सीधे जनता द्वारा न करके पार्षदों के माध्यम से होना था।
 हालांकि इस नियम को शिवराज सरकार दिसंबर 2020 में पलटने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कर अध्यादेश लाई थी , लेकिन तब तय सीमा में विधानसभा से विधेयक पारित नहीं होने की वजह से यह अध्यादेश स्वतः समाप्त हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में रवैये को देखते हुए अब प्रदेश सरकार मानकर चल रही है की उसे स्थानीय निकायों व पंचायतों के चुनाव हर हाल में जल्द ही कराने होंगे। ऐसे में एक तरफ सरकार कोर्ट में आवेदन देकर चुनाव में ओबीसी आरक्षण की लड़ाई भी लड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ आंतरिक तौर पर चुनाव की तैयारियां भी कर रही है।
नाथ सरकार ने किया था अधिनियम में संशोधन
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने वर्ष 2019 में मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर महापौर, नगर पालिका एवं नगर परिषद के अध्यक्षों के सीधे निर्वाचन को समाप्त कर उनका चुनाव अप्रत्याक्ष प्रणाली से कराने का फैसला किया था। यानी इन पदों पर निर्वाचन पार्षदों द्वारा होने का नियम लागू हो गया था, जो आज भी प्रभावशील बना हुआ है। जिसमें अब शिवराज सरकार बदलाव करने जा रही है। यह कदम सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों में मिलने वाले समर्थन की संभावना की वजह से उठाया जा रहा है।  इसकी दूसरी वजह पार्षदों द्वारा अध्यक्ष के निर्वाचन  में समीकरण बिठाने की मशक्कत को भी माना जा रही है।
यदि महापौर और अध्यक्षों का भाग्य पार्षदों की संख्या पर निर्भर होगा, तो नगर निगम, नगरपालिका और नगर परिषदों में राजनीतिक समीकरण को लेकर अस्थिरता की आशंका हमेशा बनी रहती है। यही वजह है की भाजपा अविश्वास प्रस्ताव जैसे किसी भी गतिविधि से बेहतर जनता द्वारा सीधे चुनाव के विकल्प को अच्छा मानकर चल रही है। वैसे भी शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ को बेहद मजबूत माना जाता है।

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