बा खबर असरदार/तो नहीं बन सकेंगे कॉलोनाइजर और पार्टनर

  • हरीश फतेह चंदानी
कॉलोनाइजर और पार्टनर

तो नहीं बन सकेंगे कॉलोनाइजर और पार्टनर
प्रदेश को शांति का टापू बनाए रखने और लोगों को अपराध से दूर रखने के लिए सूबे की शिव सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में एक नया प्रयास शामिल कर लिया गया है।  इस नए कदम की वजह से अपराधियों को आर्थिक रूप से फलने फूलने को मौका नहीं मिल पाएगा। दरअसल अब सरकार ने तय किया है की कॉलोनाइजर और उसके पार्टनर बनने के लिए संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए। कॉलोनाइजर को लाइसेंस लेते समय अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर, कोर्ट में चल रहे मामलों की जानकारी देनी होगी। लाइसेंस लेने के बाद अगर कॉलोनाइजर पर दोष सिद्ध होता है तो लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। सरकार कॉलोनाइजर से आवेदन के साथ एक शपथ पत्र भी ले रही है, जिसमें उसे बताना होगा कि उनके या उसके पार्टनर के खिलाफ  गंभीर अपराधों के अलावा दहेज प्रताड़ना, सरकारी जमीन हथियाने, निर्वाचन अपराध, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, सहित अन्य अपराध जुड़े मामले कोर्ट में नहीं चल रहे हैं। इसके अलावा पंजीकरण संस्था को अश्वस्त करना होगा कि जब भी उक्त मामलों में फैसला होगा या उन्हें दोषी मान जाएगा तो इसकी जानकारी वे संस्था को देंगे। कॉलोनाइजर लाइसेंस के लिए सरकार ने एक अलग से पोर्टल तैयार किया है।

बगैर मुखिया के चल रहा है भाजपा का पिछड़ा वर्ग मोर्चा
प्रदेश में इस समय जहां पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर सियासत बेहद गर्म हैं, तो वहीं भाजपा का ओबीसी मोर्चा पिछले तीन माह से पूरी तरह से निष्क्रिय पड़ा हुआ है। इसकी वजह है इस मोर्चा का प्रदेशाध्यक्ष का पद रिक्त होना। संगठन द्वारा मोर्चा के अध्यक्ष भगत सिंह कुशवाह को दो माह पहले हटाया जा चुका है। इसके बाद संगठन इस पद पर किसी भी कार्यकर्ता की नियुक्ति करना भूल गया है। कुशवाहा का  एक महिला के साथ अश्लील फोटो वायरल होने के बाद हटाया गया था। यह बात अलग है कि उनका यह दूसरा कार्यकाल था, लेकिन वे मोर्चा अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद ज्यादा दिन तक नहीं बने रह सके हैं। यही नहीं वे अपने दूसरे कार्यकाल में सक्रिय भी नहीं रह पाए। पद सम्हालने के बाद वे कामकाज शुरू करते की उसके ही पहले वे एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए। जिसकी वजह से उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में रहने के अलावा घर पर आराम करना पड़ा।  जिसकी वजह से उनकी संगठनात्मक बैठकों और कार्यक्रमों से भी दूरी बनी रही। इसी दौरान उनका फोटो वायरल हो गया, फलस्वरूप पार्टी ने उनका  आनन-फानन इस्तीफा ले लिया। यह हाल इस मोर्चा का तब है जबकी प्रदेश में ओबीसी वर्ग को लेकर उसे कांग्रेस के साथ मुकाबला करना पड़ रहा है।  

और पुलिस के आला अफसरों ने ली राहत की सांस
मैदानी स्तर पर पैनी नजर रखने के साथ ही पुलिस अधीक्षकों के काम-काज पर पुलिस मुख्यालय की निगरानी बढ़ाने के लिए तत्कालीन डीजीपी द्वारा लागू की गई व्यवस्था को अब बंद कर दिया गया है। इसकी वजह से पुलिस मुख्यालय में पदस्थ आला पुलिस अफसरों ने फिलहाल राहत की सांस ली है। इसकी वजह है अब उन्हें हर माह मैदानी स्तर पर दौरा करने से राहत जो मिल गई है।  दरअसल पूर्व में तय किया गया था की पुलिस मुख्यालय में पदस्थ स्पेशल डीजी और एडीजी हर महीने जिलों में जाकर अपनी -अपनी शाखा के काम काज का निरीक्षण करेंगे। यह प्रस्ताव उस समय सीआईडी की ओर से बनाया गया था, जिस पर डीजीपी विवेक जौहरी ने आदेश भी जारी कर दिए थे। इसके बाद कुछ  एडीजी तो जिलों में गए , लेकिन कुछ ने जिलों में जाना मुनासिब नहीं समझा। अब इस आदेश पर रोक लगा दी गई है। माना जा रहा है की इसको लेकर अब नया आदेश निकाला जा सकता है।  बताया जा रहा है की अब नए आदेश में पहले से ही तय होगा की कौन सा अफसर कब और किस जिले में जाएगा। दरअसल इसकी वजह है नए डीजीपी जिलों की पुख्ता मॉनिटरिंग करवाना चाहते हैं। इसके पीछे उनकी मंशा यह पता करने की है की जिलों में पुलिस मुख्यालय के हर शाखा के अनुसार काम कितनी गंभीरता से हो रहा है।  ऐसा माना जा रहा है कि इस माह के अंत तक में नए आदेश इस संबंध में डीजीपी जारी कर सकते हैं।

आईएएस का नहीं लग रहा मंत्रालय में मन
एक आईएएस अफसर का इन दिनों मंत्रालय में मन नहीं लग रहा है।  वे कुछ  महीने पहले मैदानी पदस्थापना से हटाए गए थे। यही वजह है की कलेक्टरी का सुख भोग चुके इन अफसर को कलेक्टरी का ऐसा मोह लगा है की वे हटने के बाद से लगातार फिर कलेक्टर बनने के प्रयासों में लगे हुए हैं। इसकी वजह है इस पद का रुतबा। यही वजह है की  कलेक्टर बनने की लाइन में खड़े रहने वाले आईएएस मंत्रालय में पोस्टिंग होने से बचते हैं। वे जानते हैं कि एक बार मंत्रालय में कुर्सी पर बैठे तो फिर लंबे समय तक उन्हें मंत्रालय में रहकर बाबूूगिरी ही करनी पड़ेगी। यही वजह है की वे जब भी मौका मिलता है कलेक्टरी पाने की जुगाड़ भिड़ाने में  लग जाते हैं। तमाम प्रयासों के बाद भी वे सफल नहीं हो पा रहे हैं, जिसकी वजह से अब उनके द्वारा सरकारी कमाकाज में भी मन नहीं लग रहा है। यही वजह है की अब तो केन्द्र में जाने के भी प्रयास करने लगे हैं। उनकी इस नाउम्मीदी का नुकसान प्रदेश के कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा है। अपर सचिव स्तर के इन अफसर ने शासकीय कर्मचारियों की फाइलों को करीब 5 महीने से अटका रखी हैं। फिलहाल उन्हें प्रशासनिक सर्जरी का इंतजार बेसब्री से बना हुआ है।

और पूरी मेहनत पर फिर गया पानी …
बीते दिनों भोपाल में दो लाख रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े गए कस्टम सेंट्रल एक्साइज के दो अफसरों की वजह से पूरे विभाग की जमकर किरकिरी हो चुकी है।  इन दोनों ही अफसरों की अब विभाग के अन्य अफसरों से लेकर कर्मचारी तक अपनी बातों में लानत मलानत कर रहे हैं। इसकी वजह है विभाग के अन्य अफसरों द्वारा किए गए विभागीय नवाचार और जीएसटी वसूली जैसी उपलब्धि पर भी पानी फिर जाना। इस रिश्वतखोरी का असर यह हुआ की करे कोई भरे कोई… की तर्ज पर विभागीय मुखिया ने छापामार दस्ते के सभी एक दर्जन अफसरों को बदल दिया। अब इसमें गेहूं के साथ धुन भी पिस गए क्योंकि अच्छे ट्रेक रिकार्ड वाले अफसर भी इस कार्रवाई की चपेट में आ गए। अब बेचारे अच्छा व ईमानदारी से काम करने वाले अफसर परेशान हैं।

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