पांच अरब नहीं किए खर्च और रोते रहे बजट का रोना

बजट का रोना
  • पीडब्ल्यूडी विभाग के अफसरों का कारनामा

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के अफसरों द्वारा सरकार की छवि को पलीता लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है। हालात यह हैं कि लोग खराब सड़कों से परेशान हैं और विभाग पांच अरब की राशि को खर्च नहीं कर सका है। इतनी बड़ी राशि विभाग के पास होने के बाद भी विभाग के अफसर बजट न होने का रोना रोते रहे हैं। विभाग का इस साल का बजट करीब सात हजार करोड़ रुपए है। यह राशि खर्च नहीं करने की वजह से बजट में स्वीकृत करीब 250 सड़कें अब भी नहीं बन पायी हैं। इसी तरह से प्रदेश में करीब तीन हजार किलोमीटर की लंबाई की सड़कें भी बेहद खराब हालात में पड़ी हुई हैं। इन पर भी विभाग ने कोई काम नहीं किया है। इसके उलट खराब सड़कों के नाम पर कुछ बेहद अच्छी सड़कों पर जरुर डामरीकरण कर सरकारी पैसे का दुरुपयोग कर दिया गया है। अब हालात यह है कि नए बजट के लिए विभाग ने आठ हजार करोड़ रुपए के बजट की मांग की है। विभाग का इसके पीछे तर्क है कि नए साल में विभाग को बेहद खराब हालात में पहुंच चुकीं तीन हजार किलोमीटर का सड़कों का नए सिरे से बनाना है। यही नहीं इस बीच सांसद, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधियों की तरफ से एक वर्ष के अंदर जिलों की एक हजार छोटी सड़कें बनाने लोक निर्माण विभाग के पास प्रस्ताव भेजे गए हैं। इन सड़कों के निर्माण के लिए विभाग को करीब दस हजार करोड़ के करीब राशि की जरुरत बताई जा रही है।  
केन्द्र में अटके 179 करोड़ रुपए
उधर, किसानों के नाम पर डिंडोरा पीटने के बाद भी केन्द्र सरकार ने उनके लिए संचालित राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत स्वीकृत राशि में से प्रदेश को अब तक 179 करोड़ रुपए कम दिए हैं। इसकी वजह से फसलों का विकास, कृषि यंत्रीकरण, मिट्टी परीक्षण लैब की स्थापना, बागवानी उत्पादन को बढ़ावा, पशुपालन तथा मंडी संरचना का सुदृढ़ीकरण और मंडी विकास जैसी कई योजनाओं का काम प्रभावित हो रहा है। अब वित्त वर्ष समाप्त होने में महज एक माह का ही समय रह गया है, ऐसे में अगर कृषि क्षेत्र की कई मदों में बकाया राशि मिल भी जाती है तो उसका उपयोग होना नामुमकिन बना रहेगा। इस फंड में से तीन विभागों को करीब तीन सौ करोड़ रुपए की राशि मिलनी थी, लेकिन अब तक महज लगभग 121 करोड़ रुपए ही दिए गए हैं। दरअसल यह राशि कृषि, पशुपालन और  मछली पालन विभाग को मिलनी है। इसकी वजह से इस साल हजारों किसानों का विभिन्न योजनाओं का लाभ पाने से वंचित रहना तय है। इनमें भी खासकर कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना, ट्रैक्टर ट्राली और कृषि उपकरणों पर मिलने वाली सब्सिडी, कीट प्रबंधन और मिट्टी परीक्षण कराना शामिल है। किसानों का राज्य के भीतर और राज्य के बाहर अध्ययन दौरा भी दो साल से बंद है। साथ ही उन्हें प्रशिक्षण भी नहीं मिल पा रहा है
यह हैं सड़कों के हाल
सीहोर जिले के कोठरी से निपानियां को जोड़ने वाली सड़क करीब दो साल से बेहद खराब हालत में है। इस सड़क से दोपहिया वाहन चालक निकलने के बाद घंटों तक लोगों के शरीर में दर्द रहता है। इस सड़क की लंबाई करीब साढ़ दस किलोमीटर है। इसके निर्माण के लिए पीडब्ल्यूडी द्वारा 16 करोड़ रुपए की मांग की गई है। , इसी तरह से भोपाल के राजधानी वाला जिला होने के बाद भी कई सड़कें अटकीं हुई हें। इनमे कलियासोत डैम से नहर किनारे होते हुए फोरलेन बायपास बर्रई तक 12 किमी की सड़क का निर्माण अब तक अटका हुआ है। इसी तरह से बरखेड़ा से अवधपुरी को जोड़ने वाली 6 किमी और मिसरोद फेज-2 की तीन सड़कें भी नहीं बनीं। उधर, अयोध्या बायपास के समानांतर गोविंदपुरा क्षेत्र की सड़क भी नहीं बन पाई है। अगर सड़कों के सुधार काम देखा जाए तो शाहपुरा तालाब से  लेकर बसंल अस्पताल के बीच की सड़क पर चालक को वाहन चलाने में पसीने आ जाते हैं, लेकिन मजाल है कि उस पर कोई काम किया गया हो। हद तो यह है कि शहर की कई अच्छी सड़कों पर जरुर नए सिरे से डामर डाल दिया गया है।
हर साल खराब हो जाती हैं 5 हजार किमी सड़कें
बारिश के दौरान प्रतिवर्ष चार से पांच हजार किमी सड़कें खराब होती हैं। पैचवर्क पर ही विभाग हजारों करोड़ रुपए खर्च कर देता है। चालू वित्त वर्ष में ही ग्वालियर-चंबल संभाग में आई बाढ़ के चलते पैचवर्क का पैसा बाढ़ की भेंट चढ़ गया। बाकी जिलों में जो सड़कें  उखड़ी थीं, उनमें थोड़ा-बहुत ऐसा पैचवर्क कराया गया कि अब वे सड़कें फिर से जर्जर होना शुरू हो गई हैं। विभाग की ग्रामीण सड़कों की हालत तो बेहद खराब हैं। सड़कें हल्के वाहनों के हिसाब से बनाई गईं, जबकि उन पर अब भारी वाहन निकल रहे हैं। यह वाहन रेत सहित अन्य खनिजों के होते हैं।

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