टीएफआरआई औषधीय पौधों की तैयार कर रहा नई प्रजातियां

टीएफआरआई औषधीय पौधों

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। वन संपदाओं का संरक्षण करने के उद्देश्य से उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान (टीएफआरआई) में निरंतर विविध क्षेत्रों  में अनुसंधान का काम जारी है।  इस दिशा में वनों में पाई जाने वाली महत्वपूर्ण लेकिन विलुप्तप्राय जड़ी-बूटियां मैदा छाल और बीज साल या विजयसार पर शोध कार्य चल रहा है। शोध में यह पाया गया कि औषधीय और व्यावसायिक उपयोग होने के बाद भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के वनों में इनकी संख्या बहुत कम है। मैदा छाल की संख्या को बढ़ाने व संरक्षण करने के लिए टीएफआरआई के विज्ञानी राष्ट्रीय बांस मिशन और मप्र वन विभाग के सहयोग से उन्नत किस्म की नई पौध तैयार कर रहे हैं। जिसका रोपण जंगलों में किया जाएगा। इसके साथ ही वहीं बीजा साल के प्राकृतिक रूप से कम होते उत्पादन को देखते हुए इसके पौधरोपण का सुझाव वन विभाग के साथ ही अन्य संस्थाओं को दिया जा रहा है। अभी बीजसाल की पौध तैयार करने पर काम हो रहा है जबकि मैदा छाल की पौध तैयार हो गई है।
संख्या कम होने के कई कारण
 विज्ञानी डॉ. नसीर मोहम्मद के मुताबिक  शोध में पता चला है कि कई तरह के जैविक व अजैविक कारणों से वनों में इन वृक्षों की संख्या कम होती चली गई। पहले भी इनकी संख्या अपेक्षाकृत अन्य वृक्षों के कम ही थी और साथ ही औषधीय और व्यावसायिक उपयोग के चलते ये और कम होते गए। जिस तरह अन्य वन्य वृक्षों के रोपण का कार्य किया गया, मैदा छाल और बीजसाल का रोपण नहीं किया जा सका। इस वजह से भी इनकी संख्या कम हो गई। मैदाछाल को मैदा लकड़ी के नाम से भी प्रचलित भाषा में जाना जाता है। इसी तरह बीजसाल को विजयसार के नाम से भी पहचानते हैं।
इस तरह तैयार हो रही मैदाछाल की नई पौध
जंगलों से बीजों का एकत्र करके धूप में रखते हैं। बोने के पहले बीज को 30 मिनट हल्के गर्म पानी में डुबाकर रखा जाता है। इसके बाद दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में इस बोते हैं। सामान्य तापमान पर रखकर ज्यादा पानी नहीं देते। 20 से 25 दिन के बीच बीज से अंकुरण हो जाता है। 15 से 20 सेंटीमीटर का पौधा होने पर इसे पॉलीथिन बैग में रखकर दूसरे स्थान पर रोपण के लिए तैयार किया जाता है। इस दौरान कीटनाशक का छिड़काव कर इसका कीटो से बचाव किया जाता है।
कमलनाथ की बढ़ती सक्रियता
छिंदवाड़ा, बैतूल और जबलपुर रोपण
मैदाछाल के संरक्षण के लिए मार्च का समय सबसे उत्तम होने की वजह से  टीएफआरआइ में इसकी पौध तैयार कर ली गई है। जिसे  छिंदवाड़ा, बैतूल और जबलपुर के जंगलों में रोपा जाना है। इसके बाद इनके संरक्षण पर भी वन विभाग के सहयोग से ध्यान दिया जाएगा। साथ ही जंगलों में पौधों के बढऩे की क्षमता और आने वाली अन्य समस्याओं पर भी नजर रखी जाएगी।
शक्तिवर्धक दवा बनाने समेत कई हैं उपयोग
 मैदा छाल का उपयोग शक्तिवर्धक दवाई बनाने सहित कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है।  छाल निकालने के कारण मैदा के पेड़ विलुप्ति के कगार पर हैं। इनके संरक्षण संवर्धन के लिए े मैदा छाल निकालने पर प्रतिबंध है। इसके पेड़ को लॉरेल के नाम से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम लिट्सिया ग्लूटीनोसा है। इसी तरह से बीजा साल या विजयसार त्वचा के लिए हितकर, केश्य, रसायन, सारक, पाचन, दंत धावन में हितकर तथा कुष्ठघ्न होता है। यह कुष्ठ, विसर्प, श्वित्र, प्रमेह, ज्वर, कृमिरोग, मेद, रक्तमंडल तथा कंठ रोग नाशक होता है। इनके गुणों की वजह से इनकी मांग बहुत बनी रहती है।

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