लोकसभा मतदान: नामचीनों पर… भारी पड़े ये सब मंत्री

  • मतदाताओं ने कई वरिष्ठ मंत्रियों को किया दरकिनार  
  • विनोद उपाध्याय
लोकसभा मतदान

प्रदेश सरकार में मंत्री बने अभी चंद महीने ही हुए हैं कि नेताओं को अपने पद की ङ्क्षचता सताने लगी है। इनमें भी उन मंत्रियों को ङ्क्षचता अधिक हो रही है, जिनकी गिनती वरिष्ठों के रूप में होती है। दरअसल लोकसभा चुनाव में इस बार मतदान कम हुआ है। वह भी उनके इलाकों में, जबकि नए नवेले मंत्रियों के इलाकों में मतदान वरिष्ठों के इलाकों की अपेक्षा अधिक हुआ है। ऐसे में अगर मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान पर नजर डालें तो, साफ हो जाता है कि  नए नवेले या फिर जो अभी नामचीन की श्रेणी में नहीं आ पाए हैं, वे वरिष्ठों पर भारी पड़े हैं। यह बात अलग है कि अब मतदान में फिसड्डी साबित होने वाले मंत्रियों को राहत तभी मिलेगी, जब उनके इलाकों में पार्टी प्रत्याशियों को विपक्षी दल के प्रत्याशियों से अधिक मत मिलें। कहा तो यह भी जा रहा है कि जिन विधायकों के इलाकों से भाजपा प्रत्याशियों को अच्छी बढ़त मिलेगी, उन्हें मंत्रिमंडल में आने को मौका मिलेगा, जबकि फिसड्डियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री अमित शाह के प्रदेश दौरे के दौरान साफ कर दिया था कि यदि पार्टी के मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्रों में कम मतदान होता है और उसकी वजह से पार्टी को नुकसान होता है, तो उनकी चुनाव के बाद कुर्सी सुरक्षित नहीं रह पाएगी। इस फरमान के पीछे उस फीडबैक को कारण बताया गया था, जिसमें यह बात कही गई थी कि सूबे के मंत्री-विधायक इस उम्मीद से क्षेत्र में पूरी मेहनत नहीं कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हवा में पार्टी की जीत मिलना तय है। जानकारों का कहना है कि प्रदेश दौरे के दौरान केन्द्रीय मंत्री अमित शाह को जब इस बारे में जानकारी मिली, तो उन्होंने प्रदेश के नेतृत्व को साफ बता दिया था कि वे अपने मंत्रियों को बता दें कि इस तरह की लापरवाही उनकी कुर्सी भी ले सकती है। बताया गया है कि शाह के संदेश के बाद मंत्रियों से लेकर विधायकों ने सब कुछ छोडक़र पूरा ध्यान अपने क्षेत्रों पर लगा दिया और लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित किया। यह अलग बात है कि इसके बाद भी वर्ष 2019 के चुनाव प्रतिशत को इस बार का मतदान पार नहीं कर सका। सूत्रों का कहना है कि मतदान को लेकर पार्टी नेतृत्व के पास जो फीडबैंक भेजा गया है, उसमें कम मतदान होने के कई तरह के कारण गिनाए गए हैं। इनमें से एक कारण दूसरे प्रांतों में भी कम मतदान होना बताया गया है। इस रिपोर्ट के बाद शीर्ष नेतृत्व ने नया मापदण्ड तय किया है कि जिन मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र से संसदीय चुनाव में भाजपा की हार मिलती है, तो उसके लिए सीधे तौर पर संबंधित मंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उनसे तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने को कहा जाएगा।
पिछले चुनाव की तुलना में 23 सीटों पर कम मतदान
इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान वर्ष 2019 के मुकाबले 23 संसदीय सीट पर कम मतदान हुआ है, जबकि 6 ऐसी सीटें हैं, जहां पर इस बार पिछले चुनाव की तुलना में अधिक मतदान हुआ है। इनमें से चौथे चरण की 8 लोकसभा सीटों में आने वाली 64 विधानसभा सीटें हैं, जहां पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव की तुलना में 7 फीसदी मतदान गिरा है। पहले, दूसरे और तीसरे चरण में भी कम मतदान वाली कई विधानसभा सीटें हैं।
इन मंत्रियों के यहां अधिक  हुआ मतदान
जिन मंत्रियों की विधानसभा सीट पर पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ है, उनमें उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा कैबिनेट मंत्री करण सिंह वर्मा, राव उदय प्रताप सिंह, निर्मला भूरिया, तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, इंदर सिंह परमार, नारायण सिंह कुशवाहा, संपतिया उइके  नरेंद्र शिवाजी पटेल, दिलीप जायसवाल प्रतिमा बागरी के अलावा स्वतंत्र प्रभार और राज्यमंत्रियों के यहां भी अधिक मतदान हुआ है।
इन मंत्रियों की बड़ी हुईं है धडक़नें
प्रदेश में 9 मंत्रियों के क्षेत्रों पर 2019 के लोकसभा चुनावों मुकाबले कम मतदान हुआ है. जबकि 15 मंत्रियों के क्षेत्रों में बेहतर मतदान हुआ है। इनके अलावा 6 मंत्री ऐसे भी हैं, जिनके यहां न ज्यादा और न ही कम मतदान हुआ है। जिन मंत्रियों के इलाकों में कम मतदान हुआ है उनमें वरिष्ठ मंत्री विजय शाह का हरसूद विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है, वहां पर 4.52 प्रतिशत कम मतदाता हुआ है। इसी तरह से मंत्री नागर सिंह चौहान भी अलीराजपुर में बोट का प्रतिशत बढ़वा नहीं सके। वहां पिछले चुनाव की तुलना में 4.2 प्रतिशत कम मतदान हुआ। जबकि रतलाम संसदीय सीट से उनकी पत्नी अनीता सिंह चौहान स्वयं भाजपा की टिकट पर प्रत्याशी हैं। इनके अलावा राकेश सिंह, एंदल सिंह कंसाना, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राकेश शुक्ला, चैतन्य कश्यप, प्रहलाद पटेल के अलावा राज्यमंत्री दिलीप अहिरवार सहित दूसरे मंत्रियों के यहां भी कम मतदान हुआ है।

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