संघर्ष करते-करते.. मृत्यु हो गई, फिर भी नहीं मिल सका प्लॉट

संघर्ष

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। करीब चालीस साल पहले जिन 44 लोगों ने मिल कर गौरव गृह निर्माण समिति का गठन किया था, वे आज भी बगैर प्लॉट के दर दर भटक रहे हैं, लेकिन उनके हक वाली जमीन पर अब बिल्डर और गैर सदस्य अपने बगंले तान चुके हैं। खास बात यह है कि इसमें रसूखदारों से लेकर कई अफसर तक शामिल हैं। दरअसल इस समिति को उस समय बाबड़िया कला में पांच एकड़ जमीन सदस्यों के लिए आवंटित की गई थी। समिति के कर्ताधार्ताओं ने अफसरोंं से मिलकर उसे भारी कीमत पर अपात्र लोगों को बेंच दिया। इस मामले में लगातार कई शिकायतें हुई और उसके बाद जांच भी हुई, लेकिन पात्रों को अब तक प्लॉट नहीं मिल सके। इसकी वजह से हालात यह हो गए हैं की जो लोग अपनी जवानी के दिनों में प्लॉट की आस में सदस्य बने थे, वे अब बुढ़े हो चुके हैं, लेकिन उनकी प्लॉट की आस पूरी नहीं हो पा रही है। इनमें 22 सदस्य तो ऐसे हैं जो प्लाट  पाने की लड़ाई लड़ते-लड़ते अब इस दुनिया में ही नहीं रहे हैं। यह हाल गौरव गृह निर्माण समिति के संस्थापक सदस्यों का है। उनका कहना है कि सभी जांच में उन्हें सही पाया गया है फिर भी उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है। वे कहते हैं कि सहकारिता माफिया और भ्रष्ट अफसरों के बीच मजबूत गठजोड़ की वजह से ही वे न्याय से अब तक वंचित बने हुए हैं। संस्थापक सदस्य गिरीश चंद्र, टीजी हांडे, एसपी माथुर, एम के हाजरा सहित अन्य सदस्यों में इतनी लंबी लड़ाई के बाद भी न्याय मिलने का भरोसा बना हुआ है। वे कहते हैं कि देखते हैं की उन्हें कब तक सहकारिता विभाग या प्रशासन न्याय नहीं दिलाता है।
अफसर ने ही ले लिया प्लॉट  
हद तो यह है की जिस अफसर पर इनको प्लॉट दिलाने का जिम्मा है उसने प्लॉट दिलाने की जगह खुद ही अपनी परी के नाम पर प्लॉट ले लिया है। इसके बाद भी विभाग आंखे बंद किए हुए है। इन बुजुर्गों के साथ जुड़े आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने सहकारिता विभाग के अफसरों, जिम्मेदारों से पांच सवाल पूछे हैं। उन्होंने बताया कि सोसायटी के संबंध में कई जांचें हुई, लेकिन न्याय कभी नहीं मिल सका। इनका क्या कसूर था? हर व्यक्ति अपनी  छत का सपना देखता है। इन्होंने देखकर क्या गुनाह कर दिया। इस सोसायटी के संबंध में अब तक कई जांच हुई, लेकिन पीड़ितों को कुछ नहीं मिला।
अफसर इस तरह से करते रहे मदद
तत्कालीन सहायक आयुक्त अखिलेश चौहान ने 2016 में जांच की। उस समय संस्था के ऑडिट के बारे में कोई टिप्पणी तक नहीं की गई। जबकि संस्था का पिछले छह साल से आॅडिट ही नहीं हुआ था। जांच में स्पष्ट किया गया कि 44 सदस्य भूखंड प्राप्त करने के पात्र है। बिल्डर द्वारा भूखंडों को विकसित कर ड्यूप्लेक्स बनाकर बेचे जाने के तथ्य को सही पाया गया।

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