सत्ता, संगठन और संघ की बढ़ी चिंता कम मतदान, चौकाएंगे परिणाम

  • गौरव चौहान
परिणाम

मप्र में भाजपा ने हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने के टारगेट के साथ सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है। लेकिन लगातार दूसरे चरण में प्रदेश में मतदान के गिरते प्रतिशत ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। इसकी वजह यह है की अगर ऐसे ही कम मतदान होते रहे तो चौकाने वाले परिणाम भी आ सकते हैं। इसको लेकर अब आगे की स्थिति का अंदाजा लगाया जा रहा है, विशेषकर भोपाल-इंदौर जैसी बड़ी लोकसभा में। अगर यही स्थिति रही तो भाजपा को अपना टारगेट पूरा करना मुश्किल हो जाएगा।  वैसे संगठन के बड़े नेता अब अधिक से अधिक मतदान की रणनीति पर काम कर रहे हैं। लगातार कम हो रहे मतदान ने सत्ता सिंहासन पर आरूढ़ भाजपा की पेशानी पर बल ला दिए हैं। उसके नेताओं ने कम मतदान को लेकर मंथन शुरू कर दिया है। राज्य से लेकर केन्द्रीय स्तर पर इस पर चर्चा हो रही है और आने वाले दो चरणों में मतदान कैसे ज्यादा से ज्यादा हो इस पर कार्ययोजना बनाकर काम शुरू हो गया है। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 29 में से 28 सीटों पर विजय हासिल की थी। इस बार केंद्रीय संगठन ने हारे हुए मतदान केंद्रों को जीतने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को जवाबदारी सौंपी है। इसके साथ ही प्रत्येक बूथ पर 370 वोट बढ़ाने को लेकर भी पार्टी ने अपने मोर्चा-प्रकोष्ठ को काम सौंप रखा है। कुल मिलाकर भाजपा इस बार 400 पार के नारे के साथ हर लोकसभा सीट पर वोटों के अंतर का रिकॉर्ड बनाना चाहती है, लेकिन जिस तरह से वोटिंग का आंकड़ा घटता जा रहा है, उसने अब भाजपा, सरकार और संघ के शीर्ष नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। अगर ऐसा ही रहा तो भाजपा अपने लक्ष्य से पीछे रह जाएगी। प्रदेश संगठन ने भी क्लस्टर प्रभारी और लोकसभा के संयोजकों पर सख्ती की तैयारी की है, ताकि मतदान का आंकड़ा बढ़ाया जा सके। अभी यह हो रहा है कि भाजपा का कार्यकर्ता केंद्र में अपनी सरकार तय मानकर चल रहा है और इसी कारण कहीं उत्साह नजर नहीं आ रहा है। कम वोटिंग इस बार कुछ सीटों के नतीजों को भी प्रभावित कर सकती है। माना जा रहा है कि आधा दर्जन सीटों के चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। कम वोटिंग से कांग्रेस के खेमे में भी बेचैनी है जिन सीटों पर वह जीत की आस लेकर बैठी है, उसके समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं। पहले चरण में छिंदवाड़ा, जबलपुर, बालाघाट, मंडला, शहडोल व सीधी कुल छह लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ था। उसमें पिछले बार की तुलना में आठ फीसदी से अधिक गिरावट आई थी।
तीसरे और चौथे चरण के मतदान की चिंता
भोपाल सहित ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ की सीटों पर भी यही हालात नजर आ रहे हैं, जहां तीसरे और चौथे चरण में मतदान होना है। तीसरे चरण में मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल, राजगढ़ और बैतूल सहित 9 सीटें हैं, जहां 7 मई को वोट डाले जाएंगे। चौथे, यानी प्रदेश में अंतिम चरण में इंदौर, देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, खंडवा और खरगोन जैसी सीटें शामिल हैं, जहां 13 मई को मतदान होना है। यानी अभी 17 सीटों पर चुनाव होना शेष है। दोनों ही तारीखों में प्रदेश में लू चलने की संभावना बनेगी और भीषण गर्मी के चलते मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाना दोनों ही पार्टियों के लिए मुश्किल हो सकता है।  भाजपा ने चुनाव प्रबंधन के लिए बड़ी संख्या में वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की टोली बना रखी है, लेकिन वह टोली भी योजना बनाने तक सीमित है। इसका असर नीचे देखने को नहीं मिल रहा है। हालात यह हैं कि जिस क्षेत्र में जनसंपर्क होता है वहां के कार्यकर्ता ही उस दिन सक्रिय होते हैं। भाजपा आम लोगों को अपने चुनावी कार्यक्रम से जोड़ भी नहीं पा रही है। इसके ऊपर संगठन भी स्थिति का आकलन करने में लगा हुआ है और भोपाल से हर लोकसभा की मॉनिटरिंग की जा रही है, जिसके आधार पर मतदान की रणनीति पर चर्चा की जा रही है।
सारे प्रयास हो रहे फेल….
चुनाव आयोग ने दूसरे चरण में वोटिंग बढ़ाने के बहुतेरे प्रयास किए और भाजपा ने भी इस चरण में जिन छह सीटों पर मतदान होना था, उसके लिए सुबह से ही कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया, इसके बाद भी 2019 की तुलना में इस बार साढ़े सात फीसदी मत कम पड़े। 2019 में इन सीटों पर मतदान का प्रतिशत 67 प्रतिशत से अधिक था जो इस बार घटकर 58 पर आ गया। वोटिंग प्रतिशत घटने से सबसे ज्यादा चिंता भाजपा के खेमे में है। निश्चित रूप से इन सभी सीटों पर पलड़ा उसका ही भारी है, पर इस बार जीत का मार्जिन घट सकता है और कई सीटों पर चुनौती भी सामने आ सकती है। दूसरे चरण में जिन सीटों पर मतदान हुआ, उनमें सबसे कम मतदान रीवा लोकसभा सीट पर हुआ है। यहां 2019 में 60.33 प्रतिशत मत पड़े थे। इस बार यह आंकड़ा 49.44 प्रतिशत पर सिमट गया है। करीब 12 फीसदी मत पड़ने से यहां चुनाव परिणामों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।
जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला
कम मतदान से साफ है कि जीत चाहे जिस दल की हो पर जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला है। भाजपा ने यहां से तीसरी बार जनार्दन मिश्रा को मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला कभी भाजपा की विधायक रहीं नीलम मिश्रा से है। जनार्दन पिछली बार यहां से 3 लाख से अधिक मतों से जीते थे। विंध्य की दूसरी सीट सतना में इस बार 61.33 प्रतिशत मतदान हुआ है। 2019 में यहां 70 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े थे। तब भाजपा के गणेश सिंह ने कांग्रेस के राजाराम त्रिपाठी को 2 लाख 35 हजार से अधिक मतों से हराया था। इस बार पार्टी ने गणेश सिंह को सतना से विधानसभा का उम्मीदवार बनाया था पर वे कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा से हार गए थे। कांग्रेस ने विधानसभा के बाद लोकसभा में भी सिद्धार्थ को फिर उनके मुकाबले खड़ा किया है। यहां चुनाव कांटे का माना जा रहा है। ऐसे में कम मतदान ने अटकलों को जगह दे दी है। होशंगाबाद में पिछली बार 74 प्रतिशत मतदान हुआ था जो इस बार घटकर 66 प्रतिशत पर आ गया है। भाजपा का अभेद गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर कांग्रेस को 2009 से जीत नसीब नहीं हुई है। पिछली बार भाजपा के उदय प्रताप सिंह जीते थे। इस बार मुकाबला भाजपा के दर्शन सिंह और कांग्रेस के संजय शर्मा के बीच है। यहां कांग्रेस मुकाबले को रोचक बनाने में लगी है। दमोह में इस बार कांग्रेस से आए राहुल लोधी का मुकाबला कांग्रेस के तरबर सिंह लोधी से है। यहां भी मतदान पिछली बार की तुलना में करीब नौ प्रतिशत कम रहा है। खजुराहो में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को कोई चुनौती नहीं है पर इस बार यहां भी मतदान का प्रतिशत चार फीसदी तक घट गया है। इसी तरह टीकमगढ़ में केंद्रीय मंत्री वीरेन्द्र खटीक का मुकाबला कांग्रेस के पंकज अहिरवार से है यहां भी करीब छह प्रतिशत मतदान पिछली बार की तुलना में कम रहा। यह वीरेन्द्र के समीकरण बिगाड़ेगा। हालांकि वीरेन्द्र पिछले तीन बार से यहां से लगातार जीत रहे हैं।

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