गुना सीट: पहली बार महल का पूरा कुनबा उतरा सडक़ों पर

गुना सीट
  • जातीय समीकरणों का सता रहा है डर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल। गुना संसदीय सीट महल की परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह से इस सीट के मतदाताओं ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को नकार दिया था, उसकी वजह से इस बार सिंधिया कोई रिस्क लेने के मूड में नही हैं। यही वजह है कि इस बार पूरा महल का कुनबा प्रचार के लिए सडक़ों पर उतरने को मजबूर हो गया है। इस सीट पर इस बार भी उन्हें जातीय समीकरणों का डर सता रहा है। दरअसल पिछली बार वे अपने ही पूर्व एक समर्थक और भाजपा प्रत्याशी केपी यादव से करीब सवा लाख वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे। तब वे कांग्रेस में थे, अब भाजपा प्रत्याशी हैं। इस बार कांग्रेस ने क्षेत्र के ही चर्चित यादव परिवार के सदस्य राव यादवेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है। इसकी वजह से इस सीट पर चुनाव पूरी तरह से जातीय समीकरणों ने उलझता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि चुनाव प्रचार के लिए सिंधिया के अलावा उनकी पत्नी प्रियदर्शनी और बेटा भी चुनावी मैदान में दिखने को मजबूर हो गए हैं। दरअसल इस सीट पर कांग्रेस ने सिंधिया को उनकी ही शैली में जवाब देने का प्रयास किया है। यह प्रयास कितना सफल होता है इसका पता तो चार जून को मतगणना के दौरान ही पता चलेगा। अहम बात यह है कि जिन केपी यादव से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, वे अब भी भाजपा में हैं, लेकिन सिंधिया की जिद के चलते इस बार भाजपा को यादव का टिकट काटना पड़ा है, जिससे यादव समाज में नाराजगी है। इसका फायदा उठाने के लिए कांग्रेस ने इस बार यादव प्रत्याशी पर दांव लगाया है।  यादव भाजपा के कद्दावर नेता रहे राव देशराज सिंह यादव के बेटे हैं। क्षेत्र में यादव मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। क्षेत्रीय समीकरणों के कारण जाटव, गुर्जर और लोधी मतदाताओं का भी भाजपा में भी खासकर सिंधिया से मोह भंग हुआ है। हालांकि गुना संसदीय क्षेत्र में हमेशा सिंधिया परिवार का दबदबा रहा है। अपवाद के तौर पर बीत चुनाव छोड़ दें तो इस परिवार का कोई सदस्य यहां से चुनाव नहीं हारा, लेकिन बीता चुनाव हारने के बाद सिंधिया लंबे समय तक क्षेत्र के लोगों से गुस्सा दिखाई पड़े। विधानसभा चुनाव में भी उनके समर्थकों को अच्छी खासी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में भले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं, लेकिन यादव समाज कांग्रेस के राव यादवेंद्र सिंह यादव के पाले में जा सकता है। अन्य जातियों में लोधी समाज पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की उपेक्षा के कारण नाराज तो है ही, इनका यादव समाज के साथ अघोषित समझौता दिख रहा है। इसकी वजह है पिछौर में यादव समाज ने प्रीतम लोधी को वोट देकर जिताया था, अब लोकसभा चुनाव में लोधी समाज की अहसान चुकाने की बारी है। गुर्जर और जाटव समाज जरुर बंटा दिख रहा है। इस सीट पर यहां सिंधिया परिवार का ही दबदबा रहा है। 1998 तक इस सीट से राजमाता भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतती रहीं। इसके बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया  गुना से चुनाव लडऩे आ गए तो यह सीट कांग्रेसी हो गई। 1998 का चुनाव यहां से माधवराव सिंधिया जीते। इसके बाद उनका निधन हो गया तो उनकी राजनीतिक विरासत ज्योतिरादित्य ने संभाली।
विस में भाजपा को बढ़त
गुना सीट के तहत तीन जिलों गुना, अशोकनगर और शिवपुरी की विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें बमोरी, गुना, पिछोर, कोलारस, शिवपुरी, मुंगावली, चंदेरी और अशोकनगर  शामिल हैं। इनमें से छह पर भाजपा विधायक हैं तो दो पर कांगें्रसी। भाजपा ने 6 सीटें कुल 2 लाख 9 हजार 529 वोटों के अंतर से जीती हैं, जबकि कांग्रेस की जीत का अंतर महज 23 हजार 169 रहा है। इस तरह भाजपा 1 लाख 86 हजार 360 वोटों की बढ़त पर है। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बढ़त ली थी, लेकिन लोकसभा में ज्योतिरादित्य चुनाव हार गए थे, इसलिए हार जीत का अनुमान लगाना बेहद कठिन माना जा रहा है।
यह है जातीय समीकरण
गुना लोकसभा क्षेत्र में चार जातियों यादव, लोधी, जाटव और गुर्जर समाज का दबदबा है। क्षेत्र में जाटव समाज के मतदाता लगभग तीन लाख और यादव समाज ढाई लाख के आसपास बताया जाता है। इसके बाद लोधी और गुर्जर मतदाताओं की तादाद है। ये भी लगभग डेढ़-डेढ़ लाख है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सभी जातियों के मतदाता एकजुट हो गए थे। इसकी वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया 1 लाख 25 हजार 549 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे। इस बार भी ये मतदाता किसी का भी खेल बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। यादवों की ज्यादा तादाद में कांग्रेस के पक्ष में जाना तय है, जबकि गुर्जर और जाटव मतदाता का ज्यादा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जा सकता है।

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