मप्र सरकार पर बोझ बने हैं ये सफेद हाथी

मप्र सरकार
  • सीएजी की सलाह को भी किया जा रहा है दरकिनार

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    एक तरफ प्रदेश सरकार ढाई लाख करोड़ से अधिक कर्ज में डूबी हुई है और उसे अपने खर्च के लिए लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है इसके बाद भी सरकार प्रदेश में पूरी तरह से सफेद हाथी बन चुके निगम मंडलों का भार उठान से परहेज करने से बाज नहीं आ रही है। हालात यह हो चुके हैं कि यह निगम मंडल अब अपने उद्देश्यों से पूरी तरह भटक कर राजनैतिक लोगों
    के उपकृत करने के माध्यम बन चुके हैं। भले ही मध्यप्रदेश में निगम मंडलों का गठन सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर सरकारी योजनाओं को और प्रभावी तरीकों से लागू करने और आमजन को तेजी से फायदा पहुंचाने के लिए की गई थी, लेकिन अब वहीं निगम मंडल सरकार के खजाने पर बेहद भारी पड़ रहे हैं। सरकार को इनसे फायदा कम और नुकसान अधिक हो रहा है। हालत यह हो चुकी है कि सरकारी खजाने पर बोझा बने इन निगम मंडलों को नेताओं का चारागाह माना जाने लगा है। इसके बाद भी सरकार उन्हें बंद करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही है और इसके उलट उनमें नेताओं की ताजपोशी कर रही है।
    इन निगम मंडलों की हालात यह है कि अधिकांश घाटे में चल रहे हैं जिसकी वजह से सरकार को हर साल इनकी मदद के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए की मदद करनी पड़ती है। इसके बाद भी उनके खर्च में कमी कर आय वृद्धि के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, जिसकी वजह से सरकार से मिलने वाली इमदाद के भरोसे ही कई निगम मंडलों में रोजना का खर्च चल पाता है। यही नहीं कई निगम मंडल तो अनियमित खर्च के चलते कर्ज के इतने बोझ में डूब चुके हैं कि उन्हें अगर सरकार मदद न दे तो वे अपने कर्मचारियों को वेतन भत्ते देने तक की स्थिति में भी नहीं रहें। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब चार दर्जन निगम-मंडल, बोर्ड, आयोग व प्राधिकरण हैं। हद तो यह है कि इसके बाद भी इनकी ऑडिट रिपोर्ट और परफार्मेंस रिपोर्ट भी सालों से नहीं आई है। लापरवाही की हद तो यह है कि कैग भी इनकी समीक्षा की सलाह दे चुका है, लेकिन उस पर भी अमल नहीं किया जा रहा है। अब एक बार फिर से इनमें राजनीतिक नियुक्तियां कर दी गई हैं, जिसकी वजह से नेताओं को दी जाने वाली लग्जरी सुविधाओं की वजह से उन पर आर्थिक बोझ बढ़ना तय है। सरकार द्वारा बीते माह ही 25 नेताओं की नियुक्तियां निगम-मंडलों के अलावा आयोगों में की गई हैं। इसके पहले आधा दर्जन से अधिक नियुक्तियां सरकार द्वारा की गई थीं।  इन निगम मंडलों का सरकार हमेशा से ही हरल्लों या फिर रूठों को मनाने और सियासी एडजस्टमेंट के तहत सम्मान देने के लिए करतीं रहीं हैं। प्रदेश में सरकार किसी की भी रहे सभी में उपकृत करने की यह प्रथा बीते लंबे समय से जारी है। आवश्यकता की जगह मजबूरी बने इन निगम मंडलों का गठन 1981 में किया गया था।
    कैग की सलाह की भी अनदेखी
    निगम मंडलों के खर्च और उनके कामकाज को लेकर बीते कई सालों से सीएजी भी लगातार सवाल उठाता रहा है। भारत के महालेखा नियंत्रक और परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में इन उपक्रमों में निवेश से सरकार का हजारों करोड़ रुपए बेकार चला गया। कैग तो यह भी कह चुका है कि जिन निगम मंडलों की बैलेंस सीट अपडेट नहीं है उन्हें सरकार वित्तीय मदद नहीं दे। कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 2012 से 2017 के दौरान अधिकांश निगम मंडल लगातार घाटे में रहे। इसमें सरकार को चार हजार 857 करोड़ का नुकसान हुआ। इसके बाद भी सरकार राजनीतिक नियुक्तियां कर उन पर खर्च का बोझा बढ़ाती जा रही है।
    यह निगम मंडल हो चुके हैं बंद
    पूर्व में प्रदेश में 27 निगम मंडल काम कर रहे थे पर इनमें से कई को सरकार द्वारा लगातार बड़े घाटे में चलने और उनका कोई औचित्य नहीं रह जाने से बंद कर चुकी है। इनमें तिलहन संघ, भूमि विकास निगम, मध्यप्रदेश लेदर डेवलपमेंट कार्पोरेशन, स्टेट टेक्सटाइल कार्पोरेशन लिमिटेड को बंद किया जा चुका है। इनका गठन सोशलिस्टक पैटर्न आफ सोसायटी के आधार पर किया गया था। इसकी स्थापना के पीछे उद्देश्य मूल विभाग के काम का बोझ कम करने और राज्य में सुव्यवस्था, विकास और रोजगार के साधन बढ़ाकर आम लोगों को सुविधाएं देने के लिए किया गया था। बाद में हालात ऐसे बदले की इनमें बड़े से लेकर छोटे पदों तक नियुक्तियां राजनीतिक आधार पर की जाना शुरू हो गई। इसकी वजह से खर्च तो बढ़ता गया, लेकिन उनकी आयोग्यता की वजह से उनका प्रदर्शन बिगड़ता चला गया। यही नहीं राजनेताओं ने इन्हें अपने शाही खर्च के स्रोत मान लिया, जिससे उनकी माली हालत बिगड़ती चली गई। निगम मंडलों की हालत इससे ही समझी जा सकती है कि अकेला नागरिक आपूर्ति निगम तो सत्तर हजार के कर्ज में डूबा हुआ है।
    इस तरह की सुविधाओं पर खर्च होती है राशि
    निगम मंडल अध्यक्ष को हर माह सात हजार रुपए मानदेय और छह हजार रुपए सत्कार भत्ता तो उपाध्यक्ष को कुल मिलाकर इनके रूप में दस हजार रुपए और साठ हजार रुपए प्रतिमाह वाहन भत्ता दिया जाता है। प्रवास के लिए उन्हें क्लास वन के अधिकारी समान सुविधाएं भी दी जाती हैं।  इसके अलावा बाहर आने जाने पर हवाई सेवा और ट्रेन से जाने पर प्रथम श्रेणी वातानुकूलित यात्रा की सुविधा भी निगम द्वारा दी जाती हैं। अगर वे विधायक हैं तो उन्हें विधायक के समान और न होने की स्थिति में चिकित्सा सुविधा अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के अनुसार दी जाती है। अध्यक्ष को एक निज सहायक और एक निज सचिव और उपाध्यक्ष को एक निज सचिव रखने की पात्रता भी रहती है। इसमें भी वे अपनी पसंद के अनुसार किसी को भी रख सकते हैं। इसके अलावा टेलीफोन, मोबाइल सहित अन्य खर्च भी निगम के खजाने से देना होता है।  इसके अलावा इनके कई हिडन खर्च भी निगम द्वारा ही उठाए जाते हैं।

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