मंत्रियों के आश्वासनों पर भारी पड़ रहे हैं अफसर, कृषि महकमा सर्वाधिक लापरवाह

कृषि महकमा
  • अरे साहब…अफसरशाही की लापरवाही अब अपने ही विभागों के मंत्रियों पर पड़ रही भारी…

    भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में अफसरशाही की लापरवाही का शिकार आम आदमी ही नहीं होता है बल्कि वे तो अब अपने ही विभागों के मंत्रियों पर भी भारी पड़ रहे हैं। शायद यही वजह है कि सदन के भीतर विधायकों को संबंधित मंत्रियों द्वारा दिए गए सैकड़ों आश्वासन अब भी पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सिर्फ आश्वासनों की ही है, बल्कि माननीयों द्वारा लिखित में पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों की भी यही स्थिति बनी हुई है। हालत यह है कि अब भी मंत्रियों के 572 आश्वासन पूरे नहीं हुए हैं तो विधायकों के 565 प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले हैं। दरअसल इस स्थिति की वजह है विभागों के अफसरों द्वारा इनको लेकर कोई रुचि नहीं लेना। इस मामले में सबसे अधिक लापरवाह कृषि विभाग बना हुआ है। इस विभाग ने 106 सवालों के जवाब अब तक नहीं दिए हैं।
    इसी तरह से कृषि मंत्री के 73 आश्वासन भी अधूरे पड़े हुए हैं। दरअसल विधायकों द्वारा अपने क्षेत्र के अलावा प्रदेश से संबंधित समस्याओं को सदन के अंदर ध्यानाकर्षण सूचना, शून्यकाल और प्रश्नकाल के माध्यम से उठाया जाता है। इस दौरान विभागीय मंत्री द्वारा इनका जबाब देकर उन्हें संतुष्ट किया जाता है, लेकिन कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि मंत्रियों को सदन के भीतर उन समस्याओं का निराकरण करने, अनियमितता पर कार्यवाही करने, सुविधाओं की घोषणाओं को लेकर आश्वासन देना पड़ता है। इन आश्वासनों को पूरा करने का जिम्मा संबंधित विभाग के अफसरों का होता है। यह बात अलग है कि कई बार मंत्रियों के द्वारा सदन के अंदर सदस्यों को दिया गया आश्वासन व्यवहारिक रूप में पूरा करना संभव नहीं हो पाता है, लेकिन देखने में यह आता है कि अधिकांशतया विभागीय अफसर इन्हें पूरा करने में लापरवाह ही बने रहते हैं। खैर जिन आश्वासनों को पूरा नहीं किया जा सकता है या फिर उनके विस्तृत होने की वजह से उनको पूरा करने में समय लगता है, ऐसे बहुत ही कम होते हैं। फिलहाल अधिकांश मामले तो ऐसे ही होते हैं जिनमें अगर सरकारी अमला रुचि ले या फिर उनको पूरा करने में पूरी मेहनत करे तो वे समय से पहले ही पूरे हो सकते हैं। अफसरों की अरुचि की वजह से ही प्राय: यह देखने में आता है कि मंत्रियों के आश्वासन अधूरे बने रहते है।
    यह है विभागों में आश्वासनों की स्थिति
    सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आश्वासनों के लंबित होने के मामले में पहले स्थान पर चल रहे कृषि विभाग में 73 आश्वासन पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का नंबर आता है। इस विभाग में 68 और तीसरे नंबर रहने वाले राजस्व विभाग के पास 62 आश्वासन पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इसी तरह से नगरीय विकास एवं आवास विभाग में भी 54 आश्वासन पूरा होने के लिए इंतजार कर रहे हैं। इस तरह से प्रदेश के 42 विभागों के 572 आश्वासन अधूरे पड़े हुए हैं। इनमें सामान्य प्रशासन, लोक निर्माण, आदिम जाति कल्याण,स्कूल शिक्षा,सहकारिता, वाणिज्य कर,स्वास्थ्य, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग भी शामिल हैं।
    सवालों के जवाब देने में भी लापरवाही
    ऐसा नहीं है कि आश्वासानों के मामलों में ही अफसर लापरवाही बरतते हैं , बल्कि विधायकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी वे रुचि नहीं लेते हैं , जिसकी वजह से प्रदेश सरकार के 37 विभागों के पास अब भी 565 सवालों के जवाब लंबित पड़े हुए हैं। संबंधित विभागों के अफसरों ने अब तक यह जवाब विधानसभा सचिवालय को नहीं भेजे हैं। समय पर उत्तर न देने की वजह से कई बार तो सदन के अंदर सरकार के सामने असहजता की स्थिति तक बन जाती है। इस मामले में भी कृषि महकमा सर्वाधिक लापरवाह बना हुआ है। इस विभाग में अभी भी 108 सवालों के जवाब लंबित बने हुए हैं। इसके बाद खाद्य विभाग का नंबर आता है, जिसके पास 83 सवालों उत्तर की प्रतिक्षा कर रहे हैं। इसी तरह से पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में 38, सामान्य प्रशासन विभाग में 78 और गृह विभाग में 57 सवालों के जवाब लंबित हैं। इसी तरह से विभागों ने शून्यकाल की 65 सूचनाओं पर कोई जवाब नहीं दिया है।
    इन मामलों में भी अमल नहीं
    ऐसा नहीं है कि सरकारी अमला सिर्फ विधानसभा के मामलों में ही लापरवाह रहता है बल्कि लोक लेखा समिति की सिफारिशों पर भी अमल करने के मामले में भी पूरी तरह से लापरवाह रहते हैं। इसकी बानगी है इस समिति की वे 149 सिफारिशें जिन पर भी अमल नहीं किया गया है। यह सिफारिशें भी विभिन्न विभागों से संबंधित हैं।  शून्यकाल की 65 सूचनाओं पर कोई जवाब विभागों ने नहीं दिया है।

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