जहरीली शराब, जहरीले अफसर राजौरा कमेटी की रिपोर्ट बेअसर

राजेश राजौरा

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की अफसरशाही इतनी निरंकुश और निष्क्रिय हो चुकी है कि उसे न तो सरकार के निर्देशों की परवाह रहती है और न ही आमजन की जान की परवाह। यही वजह है कि प्रदेश में बीते एक साल में आधा सैकड़ा लोग सिर्फ जहरीली शराब पीने से अपनी जान गंवा चुके हैं। खास बात यह है कि इस तरह की घटना रोकने के लिए राजौरा कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर अमल करने की जगह उसे ही फाइलों में दफन कर दिया गया है, जिसकी वजह से सूबे में एक के बाद एक जहरीली शराब के कांड होते जा रहे हैं और अफसर मूक दर्शक बने हुए हैं। शराब माफिया पर कार्रवाई करने के मामले में तो आबकारी विभाग पूरा का पूरा ही नशे में नजर आता है। इस विभाग के अफसरों पर शराब माफिया को संरक्षण देने के आरोप तो जगजाहिर हैं, लेकिन सरकार भी इन पर कार्रवाई करने की जुर्रत तक नहीं कर पाती है। इसकी वजह है उनका रसूखदार होना। यह रसूख की वजह क्या है सभी जानते हैं। प्रदेश के जो विभाग सरकार व अफसरों के लिए सर्वाधिक मलाईदार माने जाते हैं उनमें परिवहन के बाद इसी विभाग को नाम आता है। प्रदेश में जब करीब 15 माह पहले जहरीली शराब से चार मौतें हुई थीं, तब भी न तो सरकार ने और न ही विभाग ने कोई सबक लिया, जिसकी वजह से यह माफिया बेखौफ होकर जहरीली शराब बेचता रहा और लोग मरते रहे। सरकार व प्रशासन की नींद तब खुली जब 11 जनवरी को एक साथ मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से 26 लोगों की मौत हो गई। यह वो जिला है, जहां से स्वयं केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सांसद है। इसके बाद सरकार से लेकर प्रशासन तक हरकत में आया और ताबड़तोड़ कार्रवाही शुरू की। इसके साथ ही गृह विभाग के प्रशासनिक मुखिया अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा की अगुवाई में एक विशेष जांच दल गठित किया गया।
इसमें दो आईपीएस अफसरों को भी शामिल किया गया था । इस दल ने जांच के बाद अपनी रिपोर्ट सीएम को सौंपी थी, जिसमें इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कई अहम सुझाव दिए गए थे। उस समय हाल ही में घटना होने की वजह से मुरैना जिले में एसआईटी की गाइडलाइन का पालन भी किया गया, लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही उक्त घटना को भुला दिया गया और रिपोर्ट में दिए गए सुझावों पर भी अमल करना बंद कर दिया गया है। यही वजह हे कि अब एक फिर मंदसौर में जहरीली शराब पीने से मौतों की नई घटना हो गई।
जाहिर है कि एसआईटी ने जो सुझाव दिए थे अगर उनका पालन किया जाता तो मंदसौर की घटना ही नहीं होती। अब इस नई घटना से एक बार फिर से मैदानी अफसरों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।  इसकी बड़ी वजह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा कलेक्टर एसपी को माफिया की जड़ों को पूरी तरह से काटने के दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया जाना। इसकी वजह से माफिया को लगातार पैर पसारने का मौका मिलता रहा, जिसकी वजह से हालात इतने बदतर हो गए हैं कि तकरीबन 15 महीने में 50 से अधिक लोगों की जहरीली शराब की वजह से अपनी जान तक गंवानी पड़ गई। खास बात यह है कि यह माफिया कितना बैखोफ हो चुका है कि वह आबकारी मंत्री के इलाके में भी जहरीली शराब बेचने से बाज नहीं आ रहा है। इसी वजह से मंदसौर जिले के खकराई गांव में 25 जुलाई को जहरीली शराब पीने से 3 लोगों की मौत हो गई कई लोग अब भी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।
इसके बाद भी प्रशासन दूसरे जिलों में कार्रवाई करते नजर नहीं आ रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में अक्टूबर 2020 में उज्जैन में जहरीली शराब पीने से 14 लोगों की मौत हुई थी, जिसके बाद 11 जनवरी 2021 को मुरैना में जहरीली शराब पीने से 26 लोगों की मौत हो गई थी। इसके पहले बीते साल 2 मई को रतलाम जिले में जहरीली शराब पीने की वजह से 4, 6 सिंतबर को एक बार फिर इसी जिले में दो लोगों की और फिर 15 अक्टूबर को उज्जैन में 14, 7 जनवरी को खरगौन में दो लोगों की मौत हुई थी।
यह कहा था शिवराज ने
 सीएम ने कलेक्टर एसपी को निर्देश दिए थे कि माफिया की जड़ों पर प्रहार करें ताकि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो। सीएम ने यह भी कहा था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसके लिए सीधे तौर पर कलेक्टर एसपी और आबकारी अधिकारी जिम्मेदार होंगे। कमिश्नर और आईजी की जिम्मेदारी भी तय की जाएगी उन्होंने यह भी कहा था कि यह कार्रवाई एक जिले में नहीं पूरे प्रदेश में होनी चाहिए। इसके बाद भी कुछ दिनों की दिखावटी कार्रवाई के बाद उसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
सख्त कानून बनाने का दिया था सुझाव
राजैरा कमेटी ने जो रिपोर्ट सरकार को दी थी, उसमें मध्य प्रदेश के आबकारी कानून अन्य राज्यों की तरह सख्त बनाने का सुझाव दिया गया था। उसमें कहा गया था कि अवैध शराब से जुड़े लोगों पर महज धारा 134 के तहत कार्रवाई की जाती है, जो जमानती होती है। यही वजह है कि इस अवैध कारोबार से जुड़े लोगों पर डेढ़ से दो दर्जन तक अपराध दर्ज होने के बाद भी वे इस कारोबार को बंद नहीं करते हैं। इसी तरह से रिपोर्ट में कह गया था कि मौजूदा आबकारी नीति में बड़े ठेकेदारों को दो से तीन जिलों के ठेके दिए हैं। ऐसे में वे मॉनोपोली बनाकर ज्यादा रेट पर शराब बेच रहे हैं। इस वजह से शराब महंगी होने का फायदा अवैध शराब का कारोबार करने वाले उठा रहे हैं। इसी तरह से आबकारी और पुलिस विभाग के मैदानी अमले को 3 साल से अधिक समय तक एक स्थान पर नहीं रखा जाए।
नहीं होती बड़े अफसरों पर कार्रवाई
इस तरह के मामलों में सिर्फ छोटे कर्मचारियों पर ही कार्रवाई कर इतिश्री कर ली जाती है। बड़े अफसरों पर तो एकाधवार ही कार्रवाई होती है वह भी तब जब सरकार पर बहुत अधिक दबाव होता है। अवैध शराब का मामला वैसे तो आबकारी विभाग के तहत ही आता  है, लेकिन मजाल है कि इस विभाग के अफसर तो ठीक कर्मचारियों पर भी कभी कोई प्रभावी कार्रवाई की जाती हो। अब ताजा मामला मंदसौर का ही देखें तो यहां पर जहरीली शराब पीने से 3 लोगों की मौत के मामले में पिपलिया मंडी थाना प्रभारी शिव कुमार यादव और एसआई रामलाल दंडिग को ही निलंबित किया गया है।
सरकारें भी हैं जिम्मेदार
 दरअसल इस तरह के माफिया के पनपने के लिए सरकारें भी जिम्मेदार हैं। कमलनाथ सरकार ने शराब लॉबी के दबाब में ऐसी शराब नीति बनाकर लागू की थी की पूरे प्रदेश में शराब सिंडीकेट खड़ा हो गया। इस सिंडीकेट के पास ही प्रदेश में शराब के ठेके हैं। जिसकी वजह से उसके द्वारा मनमाने दामों पर शराब की बिक्री शुरू कर दी गई थी। इसकी वजह से सस्ती शराब के चक्कर में शौकीन इन अवैध शराब विक्रय के अड्डों पर जाने लगे। यही नहीं उसी शराब नीति को अब शिव सरकार ने भी आगे बढ़ा दिया है। हालत यह हैं कि दूर दराज के इलाकों में तो ठीक राजधानी के सीमाई इलाकों में भी बड़े पैमाने पर अवैध शराब खुलेआम बनाई जाकर बेंची जाने लगी है। इसके बाद भी मजाल है कि पुलिस, आबकारी या फिर जिला प्रशासन का अमला उन पर कार्रवाई करता हो। दरअसल यह अड्डे सरकारी अमले के लिए कमाई का जरिया बन चुके हैं।

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