डॉक्टरों का पलायन पड़ रहा मप्र के स्वास्थ्य पर भारी

डॉक्टरों का पलायन
  • हर साल करीब एक हजार चिकित्सक प्रदेश से मुंह मोड़ रहे

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर सालाना करीब 14,000 करोड़ रूपए खर्च कर रही है। उसके बाद भी लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है प्रदेश में डॉक्टरों की कमी। प्रदेश में वैसे तो आंकड़ों में 57 हजार डॉक्टर हैं लेकिन हकीकत में सिर्फ 17 हजार डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं। इसकी वजह है हर साल करीब एक हजार डॉक्टरों को पलायन। विशेषज्ञों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के नियमों में विसंगतियों के कारण ऐसे हालात बन रहे हैं। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी निरंतर बनी हुई है और सरकार इसे दूर नहीं कर पा रही है। चिंता की बात यह है कि प्रदेश से डॉक्टरों का पलायन भी बढ़ रहा है हर साल करीब 1000 डॉक्टर या तो नौकरी छोड़ रहे हैं या मप्र मेडिकल काउंसिल से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर दूसरे राज्य चले जाते हैं कुछ लोग हालात यह है कि कागजों में तो 57000 डॉक्टर प्रदेश में हैं लेकिन हकीकत में सिर्फ 17000 काम कर रहे हैं।
साल दर साल बढ़ रहा पलायन
मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में 704 तो 2020 में 1102 और 2021 में 1188 डॉक्टर प्रदेश छोड़ कर जा चुके हैं सूचना इस साल 2 महीने के भीतर ही 110 डॉक्टर एनओसी ले चुके हैं। इससे भी बड़ी चिंता यह है कि प्रदेश से जाने वाले डॉक्टरों में एमबीबीएस, एमडी, एमएस के साथ सुपर स्पेशलिटी विधा के चिकित्सक भी हैं। मालूम हो कि अब प्रदेश में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में हर साल 3800 के करीब एमबीबीएस डिग्री धारी चिकित्सक निकल रहे हैं। जेपी अस्पताल के पूर्व अधीक्षक डॉ. एसके सक्सेना का कहना है कि जब तक स्वास्थ्य विभाग में सेवा शर्तों का दुरुपयोग नहीं किया जाता सरकारी अस्पतालों की स्थिति नहीं सुधरेगी इसलिए स्टेट मेडिकल सर्विसेज का गठन करना जरूरी है। सरकारी अस्पतालों में सम्मानजनक वातावरण नहीं है तहसीलदार स्तर का अधिकारी भी सरकारी अस्पतालों में जांच कर आता है जो सही नहीं है वेतनमान के मामले में विभाग सबसे पीछे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में ना तो सुविधाएं हैं ना ही सुरक्षा। जब तक इन बातों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक हमें डॉक्टर नहीं मिलेंगे।
पॉलिसियों में खामी, बढ़ा रही है परेशानी
जानकारी के अनुसार चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग की पॉलिसियों के खामी के कारण परेशानी बढ़ रही है। डॉक्टरों की अरुचि की वजह असमान प्रमोशन नीति भी है। मेडिसिन सर्जरी पीडियाट्रिक गाइनेकोलॉजी एनेस्थीसिया जैसे विषय में 5 साल में प्रमोशन मिल जाता है। नेत्र रोग  ऑर्थोपेडिक्स ईएनटी पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी विषयों के डॉक्टरों को पहला प्रमोशन पाने में 30 साल तक लग जाता है। वहीं मेडिकल रीइंबर्समेंट यानी  सभी विभागों के कर्मचारियों की बीमारी कर पूरा खर्च मिल जाता है लेकिन मेडिकल टीचर को सिर्फ 3000। नेशनल पेंशन स्कीम के तहत सभी विभागों के कर्मचारियों को पेंशन देती है सिर्फ मध्य प्रदेश डीएम इसमें शामिल नहीं है। चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले चिकित्सकों का ग्रेड पे और अन्य सेवा शर्ते अलग अलग है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में अन्य राज्यों के मुकाबले निजी प्रैक्टिस पर पाबंदियां है। घर में जांच उपकरण रखने की छूट नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में डॉक्टर में असुरक्षा की भावना है और निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र में चिकित्सकों को कई बार मध्यप्रदेश में राजनीतिक दबाव में काम करना पड़ता है।

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