मध्यप्रदेश का कोदो-कुटकी देश को बना रहा बलवान

कोदो-कुटकी

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। कभी आदिवासियों की भूख मिटाने वाले कोदो और कुटकी की आज देश ही नहीं विदेशों में भी मांग बढ़ी है। दरअसल, अपने औषधीय गुणों के साथ ही आदिवासियों का यह उत्पाद स्वास्थ्यवर्द्धन में भी लाभकारी है। कोदो व कुटकी एनीमिया, डायबिटीज, ब्लड कैंसर, थायराइड व लीवर के लिए भी फायदेमंद हंै। इसलिए इसकी मांग प्रदेश के बाहर भी खूब हो रही है।
कोदो व कुटकी की मांग बढ़ते ही आदिवासियों ने इसकी खेती पर और अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया है। जाहिर है मांग बढ़ने के कारण अच्छे दाम भी मिल रहे हैं। ऐसे में इन फसलों के रकबे और उत्पादन में भी कई गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2007 में डिण्डौरी में महिला एवं बाल विकास विभाग के उपक्रम व केन्द्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन से शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब अन्य जिलों में भी पहुंच गया है। डिण्डौरी, मण्डला, सिवनी एवं जबलपुर के अलावा  छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ में भी इसकी पैदावार अब तेजी से बढ़ रही है और इससे अब करीब 4500 बैगा परिवार जुड़े हैं।
चार से आठ गुना बढ़ी कीमत
कोदो व कुटकी के बढ़ते महत्व और मांग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में जो कोदो और कुटकी 6 रुपए किलो तक बिकती थी। वतर्मान में कोदो 20 से 24 रुपए किलो और कुटकी 40 से 45 रुपए बिक रही है। प्रदेश के नेशनल पार्कों में भी इसकी ब्रांडिंग की जा रही है। इनकी उपयोगिता और बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार ने भी इनकी खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।
लगातार बढ़ रही पैदावार
प्रदेश में सरकार की सक्रियता और बढ़ावा मिलने से कोदो और कुटकी की पैदावार लगातार बढ़ रही है। प्रदेश में वर्ष 2014 में जहां 1,500 किसान 750 एकड़ में कोदो और कुटकी की खेती करते थे, अब 2021 में 17,230 किसान 35,000 एकड़ में खेती कर रहे हैं। दरअसल कोदो व कुटकी एनीमिया, डायबिटीज ब्लड कैंसर, थाइरोइड व लीवर के लिए भी फायदेमंद है। कुपोषितों के लिए यह रामबाण सिद्ध हुआ है। इसलिए इनकी मांग बढ़ी और उत्पादन भी बढ़ा है। जेएनके विवि के कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन का कहना है कि सरकार की ओर से आदिवासी फसलों को लेकर योजनाओं पर काम हो रहा है। इन फसलों व इनसे बने उत्पादों की बिक्री पर बेहतर कार्य किया जा रहा है।
सरकार कर रही है प्रोत्साहित
गौरतलब है कि वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र ने मोटे अनाज (मिलेट) के वर्ष के रूप में घोषित किया है, जिसकी तैयारी के लिए मप्र कोदो-कुटकी जैसे पौष्टिक मोटे अनाज का उत्पादन करने वाले स्व सहायता समूहों को प्रोत्साहित कर रहा है। योजना के राज्य समन्वयक फिलहाल हमारे क्षेत्र में दिल्ली, महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत के काफी सारे शहरों में कोदो और कुटकी के साथ अन्य अनाजों को डिमांड पर भेजा जा रहा है। हमारे पास अमेजन और अन्य ऑनलाइन माध्यमों से भी आर्डर आ रहे है। इनके जरिए भी यह अनाज मुहैया कराया जा रहा है। राज्य समन्वयक यशवंत सोनवानी ने बताया कि आदिवासियों की जीवन शैली में उनकी फसलों से होने वाली आय ने परिवर्तन किया है। सरकारी योजनाओं के लाभ से काफी सुधार संभव हो सका है।

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