पीढ़ी परिवर्तन की असली परीक्षा

  • मप्र में मिशन 29 का घमासान

विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद भाजपा लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का दम भर रही है। वहीं कांग्रेस दर्जनभर सीटों पर जीत का दावा कर रही है। जनता किसका साथ देती है यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन इस चुनाव में असली परीक्षा भाजपा और कांग्रेस के पीढ़ी परिवर्तन की है। दरअसल, भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की जोड़ी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है।

भोपाल/गौरव चौहान। मप्र में 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सियासी तौर पर बदलाव का काम किया। जनता ने इतना बड़ा जनादेश दिया कि भाजपा ने दो दशक से सत्ता की बागडोर संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया। डॉ. मोहन यादव को सत्ता के शीर्ष पर बैठाया। कांग्रेस की बुरी हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने युवा नेता जीतू पटवारी को पार्टी की कमान दी है। यानी विधानसभा चुनाव के बाद दोनों ही पार्टियों में पीढ़ी परिवर्तन हो चुका है। इसके बाद यहां लोकसभा का पहला चुनाव होने जा रहा है। भाजपा पूरी तरह से पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही है, जबकि कांग्रेस या विपक्ष के पास कोई चेहरा नहीं है। चुनावी रणनीति पर इसका भी असर है। मुख्यमंत्री के तौर पर मोहन यादव के लिए यह पहला चुनाव है। उनकी कोशिश सभी 29 सीटें जीतकर 2019 का रिकॉर्ड ध्वस्त करने का है, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खुद को स्थापित करने में आसानी हो सके। वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की कोशिश है कि 2014 और 2019 के चुनावी आंकड़े को सुधारा जाए और आलाकमान के सामने अपनी रणनीति का लोहा मनवाया जाए। इसलिए यह लोकसभा चुनाव पीढ़ी परिवर्तन की परीक्षा भी बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अबकी बार 400 पार के नारे को साकार करने के लिए मप्र में भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ रही है। मिशन-29 के लिए पार्टी ने बड़े-बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया है। हालांकि, छिंदवाड़ा, मंडला और झाबुआ सीट सबसे अधिक चर्चा में है, क्योंकि कांग्रेस को आदिवासी वोट बैंक पर सबसे अधिक भरोसा है। राहुल गांधी की प्रदेश में पहली जनसभा आठ अप्रैल को आदिवासी इलाके मंडला और शहडोल संसदीय क्षेत्र में ही हुई। कांग्रेस की कमान संभालने के बाद जीतू पटवारी के लिए भी यह पहला चुनाव है। जिस तरह से कांग्रेस के विधायक और कार्यकर्ता पार्टी छोडक़र भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उसको रोकना पटवारी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। कमलनाथ के बेहद करीबी रहे तीन बार के विधायक कमलेश शाह, दीपक सक्सेना कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। इससे पार्टी की स्थिति नाजुक बनी हुई है। हर इलाके से कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी छोडक़र भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में पटवारी की कोशिश है कि किसी भी तरह से प्रतिष्ठा बचाई जाए। 29 में से कुछ सीटें किसी भी तरह से कांग्रेस के खाते में चलीं जाएं, जिससे वे अपने नेतृत्व को साबित कर सकें, लेकिन मोदी के मैजिक के आगे पटवारी किस तरह से लड़ाई लड़ते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। कांग्रेस ने उमंग सिंघार को नए और आदिवासी चेहरे के तौर पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है। पटवारी और सिंघार के कंधे पर ही पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है। इसलिए भाजपा ने मध्य प्रदेश में पिछड़े वर्ग से आने वाले शिवराज को हटाया तो उनकी जगह ओबीसी से ही आने वाले मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया। ताकि किसी भी सूरत में ओबीसी वर्ग नाराज न होने पाए। राहुल गांधी की ओर से कुछ महीने पहले तक ओबीसी को लेकर प्रमुखता से मुद्दा उठाया जा रहा था।

क्या भाजपा रचेगी इतिहास
मप्र में इस बार चार चरणों में चुनाव संपन्न होंगे। मतदान 19 व 26 अप्रैल और 7 व 13 मई को होगा। एक तरफ भाजपा ने राज्य में लोकसभा की सभी 29 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, वहीं कांग्रेस भी यहां 28 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महागठबंधन के तहत कांग्रेस ने खजुराहो की एक सीट समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी थी। सपा प्रत्याशी ने नामांकन भी किया, लेकिन तकनीकी खामियों की वजह से पर्चा निरस्त हो गया। ऐसे में अब भाजपा के मुकाबले में गठबंधन की ओर से 28 सीटों पर प्रत्याशी शेष बचे हैं। इसी के साथ देखा जाए तो राज्य की सभी सीटों पर स्थिति भी लगभग साफ हो गई है। ऐसे में हर तरफ एक ही सवाल चर्चा में है कि क्या मप्र में भाजपा 29-0 से जीत दर्ज कर पाएगी? दरअसल, भाजपा का दावा है कि वह इस बार मप्र में 29-0 से जीत दर्ज करने जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा सीट भाजपा हार गई थी लेकिन इस बार यह सीट भी भाजपा के पाले में आ सकती है। वहीं कांग्रेस दावा कर रही है कि लगभग 15 से अधिक सीटें वह जीत सकती है और अन्य सीटों पर भाजपा को कड़ी चुनौती पेश की जाएगी। दोनों पार्टियों के दावों पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि युद्ध और चुनाव संसाधन से लड़े जाते हैं लेकिन जीते मनोबल से जाते हैं। न सिर्फ मप्र में बल्कि पूरे देश में चुनाव शुरू होने से पहले ही कांग्रेस का मनोबल शून्य की ओर है और भाजपा बड़ी जीत दर्ज करती हुई नजर आ रही है। बात मप्र की करें तो कांग्रेस के पास दो बड़े चेहरे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही हैं। अब कमलनाथ भाजपा में शामिल होने के चक्कर में अपनी विश्वसनीयता खो दिए, जिसके कारण ही उनके गढ़ छिंदवाड़ा में उनका मेयर, दो विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष सहित ग्राउंड के नेता उनका साथ छोडक़र भाजपा में आ गए तो वहीं दिग्विजय सिंह तो शुरू से ही अनिच्छा से राजगढ़ सीट पर चुनाव लडऩे की बात कह चुके हैं।
जानकारों का कहना है कि कि एमपी के विधानसभा चुनाव की शर्मनाक हार के बाद से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल तो पहले से ही टूटा हुआ था लेकिन अब जिस तरह से यूपी में सपा, बिहार में आरजेडी, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस से कई ऐसी सीटें छोडऩे पर मजबूर कर चुके हैं, जहां कांग्रेस के उम्मीदवारों का हक मारा गया। इन राज्यों की खबरों का असर भी मप्र में कांग्रेस पर पड़ता दिख रहा है। वहीं इसकी तुलना में भाजपा ने मप्र में शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी के संकेत देकर विदिशा में चुनाव में उतारा तो भाजपा संगठन के तीसरी लाइन के नेता डॉ. मोहन यादव को सीएम बनाकर पार्टी कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी दे दिया कि दूसरी पार्टी से आने वाले नेताओं के ऊपर तव्वजो भाजपा कैडर को ही दी जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा भाजपा की सभी 29 सीटों पर आगे रखा गया है। ये सभी फैक्टर भाजपा के हित में काम करते हुए दिख रहे हैं। यह बात सही है कि मप्र में कांग्रेस की हालत ठीक नहीं है। लेकिन ग्राउंड से जिस तरह के समीकरण सामने आ रहे हैं, उसके अनुसार रतलाम से कांतिलाल भूरिया, राजगढ़ से दिग्विजय सिंह, मुरैना सीट से नीटू सिकरवार ये वो तीन नाम हैं, जो कांग्रेस की उम्मीदें जिंदा रख सकते हैं और जीत भी दर्ज कर सकते हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में बड़े पैमाने पर जाति की राजनीति होती है और उसका असर चुनाव परिणामों पर देखने को मिलेगा। मुरैना के अलावा ग्वालियर और भिंड लोकसभा सीट पर कांग्रेस कड़ी चुनौती दे सकती है। मालवा की रतलाम सीट पर कांतिलाल भूरिया के रूप में कांग्रेस ने बड़ा आदिवासी चेहरा उतारा है और वे कई बार इस क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव पूर्व में जीत भी चुके हैं। हालांकि भाजपा को पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा और कांग्रेस की बिखरी हुई टीम की वजह से बड़ा लाभ होना तय है।

बड़ी जीत की संभावना
भाजपा को पीएम नरेंद्र मोदी की वजह से बड़ा लाभ मिलना तय है। मप्र में भाजपा का कैंडिडेट कोई भी हो, लोग तो पीएम मोदी को देख रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने राजगढ़, मुरैना, सतना, रतलाम, ग्वालियर सहित कुछ सीटों पर अच्छे कैंडिडेट उतारे हैं, जिनकी वजह से चुनाव कुछ सीटों पर कांटे का हो सकता है। लेकिन कांग्रेस को जीत मिल जाएगी, ऐसा नजर नहीं आता है। भाजपा ने कुछ सीटों पर अति आत्मविश्वास में टिकट दिए हैं, जिसकी वजह से भी कांग्रेस के उम्मीदवारों के साथ मुकाबला टक्कर का हो सकता है। लेकिन फिलहाल के जो समीकरण बनते दिख रहे हैं, उसमें भाजपा ही मप्र में बड़ी जीत दर्ज करती दिख रही है। भले ही चुनाव को देखते हुए भाजपा बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेताओं को पार्टी में शामिल करा रही है लेकिन भविष्य में इसके कुछ दुष्परिणाम भाजपा को भी झेलने पड़ सकते हैं। भाजपा संगठन के लिए चुनाव के बाद चुनौती होगी, कांग्रेस से आए नेताओं को भाजपामय बनाने और भाजपा के पुराने नेताओं के साथ सभी को एडजस्ट करने में। भाजपा और संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि इस बार भाजपा 29-0 से जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड बना सकती है। सिर्फ छिंदवाड़ा ही वह सीट थी, जिसे कांग्रेस बचा सकती थी। लेकिन जिस तरह से भाजपा ने पूरी योजना के तहत छिंदवाड़ा सीट की घेराबंदी की और एक-एक करके कमलनाथ के सभी खास और करीबी नेताओं को तोडक़र भाजपा में शामिल करा दिया, उसके बाद अब छिंदवाड़ा सीट भी कांग्रेस के हाथ से फिसलती हुई नजर आ रही है। भाजपा में शामिल होने के चक्कर में कमलनाथ ने अपनी रही-सही विश्वसनीयता भी खो दी है। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है। हालांकि ग्वालियर, मुरैना, रतलाम, राजगढ़ जैसी कुछ सीटें हैं जहां पर कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। किसी एक सीट पर कांग्रेस चौंका भी सकती है। लेकिन आज की तारीख में बात की जाए तो भाजपा की 29-0 के साथ रिकॉर्ड जीत दर्ज करने की संभावनाएं काफी प्रबल नजर आ रही हैं।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के चार महीने बाद ही लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 163, कांग्रेस ने 66 और भारतीय आदिवासी विकास पार्टी ने एक सीट जीती थी लेकिन इन परिणामों को यदि लोकसभा क्षेत्रों में आने वाली कुल सीटों के मतों के अंतर की दृष्टि से देखा जाए तो कांग्रेस केवल पांच लोकसभा सीटों पर भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में दिखाई दे रही है। प्रदेश में भाजपा ने 24 लोकसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी। इसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने विशेष रणनीति बनाई और दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारने के साथ दस सीटों पर नए चेहरों पर दांव लगाया। प्रदेश में कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी की रणनीति उन सीटों पर विशेष ध्यान देने की है, जहां विधानसभा चुनाव में परिणाम उसके अनुकूल रहे हैं। मतों के अंतर के हिसाब से मुरैना लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने 21,024 मतों से भाजपा पर बढ़त बनाई। भिंड में 6,904 और ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में 23,250 मतों की बढ़त रही। इन तीनों सीटों पर पार्टी ने नए चेहरे दिए हैं। इसी तरह छिंदवाड़ा में 96,646 और मंडला लोकसभा क्षेत्र में 16,082 मतों से कांग्रेस आगे रही। छिंदवाड़ा में कांग्रेस ने सभी सात विधानसभा सीटें जीती थीं। हालांकि, अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर भाजपा की सदस्यता ले चुके हैं। वहीं, मंडला में भाजपा ने आठ में से पांच सीटें जीती पर लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से देखें तो कांग्रेस से पिछड़ गई। इसके उलट भाजपा ने खरगोन में तीन सीटें ही जीतीं पर उसे 1548 मतों की बढ़त मिली। यहां कांग्रेस ने पांच विधानसभा सीटें जीती थीं। बालाघाट में भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर रहीं। यहां दोनों ने चार-चार विधानसभा क्षेत्रों में जीत प्राप्त की पर लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से भाजपा को 3,506 मतों की बढ़त मिली। इसी तरह धार लोकसभा में आने वाले पांच विधानसभा कांग्रेस और तीन पर भाजपा जीती लेकिन मतों के अंतर में कांग्रेस पिछड़ गई। यहां 4,046 मतों से भाजपा को बढ़त मिली थी। नजदीकी मुकाबला होने के कारण कांग्रेस ने इन तीनों सीटों पर भी नए चेहरों पर दांव लगाया है। भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है कि भाजपा मोदी गारंटी के साथ सभी 29 लोकसभा सीटों पर आगे है। लोकसभा चुनाव में मतदाता राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में वोट करते हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में हमें 40 प्रतिशत मत मिले थे और उसके चार माह बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 58 प्रतिशत मत मिले थे। इस बार मोदी जी की गारंटी के साथ सभी रिकार्ड ध्वस्त होंगे।

लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस
छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद हुए अब तक के चार आम चुनावों में केवल 2009 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 12 सीटें जीती हैं। राज्य विभाजन के बाद उसका यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। यहां तक कि छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने 145 सीटें जीतकर केंद्र में सरकार बना ली थी, लेकिन तब उसे मध्य प्रदेश में महज चार सीटों से ही संतोष करना पड़ा। पार्टी के उम्मीदवार केवल गुना, छिंदवाड़ा, ग्वालियर व झाबुआ में ही जीत पाए थे। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। नवंबर, 2000 में मध्य प्रदेश से अलग कर छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। तब से अब तक चार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें कांग्रेस अपने कुल 19 प्रत्याशियों को ही संसद की दहलीज तक पहुंचा पाई है। दरअसल, अविभाजित मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ अंचल में कांग्रेस की स्थिति शुरुआत से ही अच्छी थी। लेकिन, शेष मध्य प्रदेश में पार्टी की स्थिति उतनी अच्छी नहीं रही। ऐसे में 2004 के आम चुनावों में कांग्रेस को यहां से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। 2009 में 12 सीटों के साथ कांग्रेस ने अच्छी वापसी की, लेकिन 2014 की मोदी लहर में एक-एक कर उसके सभी सूरमा चुनाव हार गए और छिंदवाड़ा से कमलनाथ और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया ही केवल अपनी सीट बचा सके। 2019 में स्थिति और बिगड़ गई जब छिंदवाड़ा को छोडक़र सभी 28 सीटों पर कांग्रेस को भाजपा से हार का सामना करना पड़ा।
मध्य प्रदेश में भी रीवा, सतना, सीधी व शहडोल समेत चार लोकसभा सीटों वाला विंध्य क्षेत्र भाजपा का ऐसा किला है, जिसमें कांग्रेस पूरी कोशिश के बाद भी सेंध नहीं लगा सकी है। विंध्य में भाजपा की मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले पांच आम चुनावों में से सिर्फ शहडोल एकमात्र सीट रही है, जहां 2009 में कांग्रेस के टिकट पर राजेश नंदिनी सिंह जीतने में सफल रही थीं। 19 अप्रैल को पहले चरण में सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट व छिंदवाड़ा की सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों में छिंदवाड़ा को छोडक़र बाकी सभी जगह कांग्रेस को कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। 26 अप्रैल को दूसरे चरण में भी छह सीटों पर मतदान होगा। इनमें होशंगाबाद एकमात्र सीट है जहां 2009 में उदय प्रताप सिंह कांग्रेस की तरफ से जीतने में सफल रहे थे। हालांकि, वह अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं और मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। 2004 से 2019 तक कांग्रेस जो सांसद बने हैं, उनमें गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया (2004,2009,2014), छिंदवाड़ा से कमलनाथ (2004,2009,2014) व नकुलनाथ (2019), ग्वालियर से रामसेवक सिंह (2009), झाबुआ से कांतिलाल भूरिया (2004), शहडोल से राजेश नंदिनी सिंह (2009), मंडला से बसोरी सिंह मसराम (2009), होशंगाबाद से उदय प्रताप सिंह (2009), राजगढ़ से नारायण सिंह (2009), देवास से सज्जन सिंह वर्मा (2009), उज्जैन से प्रेमचंद गुड्डू (2009), मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन (2009), रतलाम से कांतिलाल भूरिया (2009), धार से गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी (2009) व खंडवा से अरुण यादव (2009) आदि शामिल हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस भी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जोरो-शोरों से जुट गई है। पार्टी ने कमजोर बूथों को मजबूत बनाने की कवायद शुरू कर दी है, जिसके तहत बूथ स्तर पर 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल करने के उद्देश्य से संगठनों को उनके प्रभाव क्षेत्र वाले समूहों की मदद लेने का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा पार्टी के यूवा कैडर की ओर से 5-5 ऐसे युवाओं की टीम बनाई जा रही है, जो प्रत्येक बूथ के मतदाताओं से संपर्क साधेंगे और उन्हें कांग्रेस नेतृत्व की ओर से किए गए वादों से अवगत कराएंगे। हर टीम में इंटरनेट मीडिया में दक्ष एक या दो युवा शामिल होंगे। युवा कांग्रेस की टीम जनता को यह भी बताएगी कि भाजपा ने अपने संकल्प पत्र के कौन-कौन से वादे पूरे नहीं किए हैं। इसी तरह महिला कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर महिलाओं से और कांग्रेस किसान को किसानों से संपर्क साधने को कहा गया है। इसके अलावा कांग्रेस ने चुनाव की तैयारी के तहत पिछले तीन लोकसभा और विधानसभा चुनाव का बूथ स्तर पर विश्लेषण किया है। कमजोर बूथों की लिस्ट भी बनाई गई है, जिसे बूथ से लेकर मंडल, ब्लॉक और जिला स्तर की ईकाई को उपलब्ध कराया गया है। इसी के आधार पर कमजोर बूथों पर ज्यादा ध्यान देने का प्रयास किया जा रहा है। प्रदेश के युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रांत भूरिया का कहना है कि पार्टी सभी युवा मतदाताओं से संपर्क करने का प्रयास कर रही है।

कौन रोकेगा भाजपा को
विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस लोकसभा में स्थिति सुधारना चाहती है। इसलिए पार्टी ने जहां राजगढ़ से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को मैदान में उतार दिया है, वहीं कमलनाथ ने छिंदवाड़ा सीट बचाने का भार उपने ऊपर ले लिया है। इससे पार्टी के दो बड़े दिग्गज अपने-अपने गढ़ में फंस गए हैं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की स्थिति दो नाव पर सवार जैसी हो गई है। वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि चुनाव प्रचार पर जोर दें या संगठन में मची भगदड़ पर ध्यान दें। गौरतलब है कि भाजपा मिशन 29 के तहत प्रदेश की सभी सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए पार्टी ने चुनावी चौसर इस तरह बिछाई है कि कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह तक अपने गढ़ों यानी चुनाव क्षेत्रों में सिमटे हुए हैं। वे प्रदेश के दूसरे हिस्सों में जा नहीं पा रहे हैं। कमलनाथ अपने बेटे की जीत तय करने के लिए छिंदवाड़ा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो दिग्विजय सिंह अपनी साख बचाने के लिए राजगढ़ में ही सीमित हैं। भाजपा की कोशिश है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं को उनके घर में ही घेरे रखना है। छिंदवाड़ा में लगातार इसके लिए कमलनाथ के वफादारों को भाजपा तोड़ रही है। वहीं, विधानसभा चुनाव में ही दिग्विजय सिंह को उनके गढ़ में चुनौती देकर डरा दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए उनके गढ़ छिंदवाड़ा को बचाना अब चुनौती से कम नहीं है। उनके करीबी एक के बाद एक लगातार पार्टी छोड़ रहे हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने बहुत कम मार्जिन से जीता। विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ सिर्फ 25 हजार वोटों से ही चुनाव जीते। ऐसे में अब वह छिंदवाड़ा में इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि कमलनाथ अपने गढ़ को बचाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं। यह चुनाव उनके लिए कठिन होता जा रहा है। इसलिए वह छिंदवाड़ा से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने राजगढ़ सीट पर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है। वह टिकट के एलान के पहले भी राजगढ़ पहुंचे गए और अपना आखिरी चुनाव बताकर जनता से समर्थन मांगा। 75 साल के दिग्विजय सिंह 1984 और 1991 से राजगढ़ से सांसद चुने गए थे। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी। सिंह चुनाव लडऩा नहीं चाहते थे लेकिन शीर्ष नेतृत्व के कहने पर वह चुनाव लडऩे को तैयार हो गए। भोपाल से 2019 के लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था। दिग्विजय सिंह की पकड़ प्रदेश के जमीनी कार्यकर्ताओं से है। उनको भाजपा हिंदूत्व के मुद्दे पर लगातार घेरती रहती है। भाजपा को उनको राजगढ़ में घेरने की रणनीति पर काम कर रही है। राजगढ़ लोकसभा सीट पर पिछले दो बार से भाजपा का कब्जा है। 2023 के विधानसभा चुनाव में आठ विधानसभा सीटों में सिर्फ दो पर कांग्रेस को जीत मिली। चाचौड़ा से उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव हार गए। गृह नगर राघौगढ़ से उनके बेटे जयवर्धन सिंह बहुत कम वोटों से विधानसभा का चुनाव जीत पाए। पिछले चुनाव में भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर से उनको साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा। अब उनको डर सता रहा है कि कहीं चुनाव हार ना जाएं। दिग्विजय सिंह अब राजनीति से संन्यास लेने की उम्र में है। ऐसे में वह सम्मान जनक विदाई चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपने आपको राजगढ़ में ही झोंक दिया है।

नाथ को मिल रही चुनौती!
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इनदिनों अपने गढ़ छिंदवाड़ा में ही भाजपा के गेम प्लान में घिर गए हैं। अपने सहयोगियों के कांग्रेस छोडऩे से परेशान कमलनाथ ने सत्तारूढ़ भाजपा पर झूठ और धोखे का खेल खेलने का आरोप लगाया है। एक्स पर एक पोस्ट में, कमलनाथ ने कहा कि भाजपा लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्षी नेताओं को धमकाने के लिए धन, बाहुबल और प्रशासनिक विशेषाधिकारों का दुरुपयोग कर रही है। विधायक कमलेश शाह और छिंदवाड़ा के मेयर विक्रम अहाके सहित उनके कई भरोसेमंद सहयोगियों के भाजपा में शामिल होने के बाद कमलनाथ का गुस्सा फूट पड़ा। कमलनाथ ने रिकॉर्ड नौ बार छिंदवाड़ा का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया है। 2019 के आम चुनावों में, यह मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा जीती गई एकमात्र सीट थी। उनके बेटे नकुलनाथ इस क्षेत्र से मौजूदा सांसद हैं। उन्होंने लिखा कि मैं 45 वर्ष से छिंदवाड़ा को भारत का सबसे विकसित इलाका बनाने की तपस्या कर रहा हूं। छिंदवाड़ा मेरे लिए कर्मभूमि और तपोभूमि है। उन्होंने कहा कि भाजपा वाले इस पवित्र भूमि को रणभूमि बनाना चाहते हैं। इस चुनाव में भाजपा धनबल, बाहुबल और सत्ता बल का दुरुपयोग करने में लगी है। नेताओं को डराया धमकाया जा रहा है। कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि छिंदवाड़ा की जनता भाजपा की इस कारस्तानी को बड़े गौर से देख रही है और उसने ठान लिया है कि जो लोग छिंदवाड़ा के ऊपर आक्रमण कर रहे हैं, उनको करारा जवाब देगी। हर चुनाव के पहले भाजपा झूठ, फरेब और सौदेबाजी का खेल खेलती है लेकिन जब चुनाव परिणाम आता है तो पता चलता है कि छिंदवाड़ा की जनता ने भाजपा को उसके अपराध का उचित दंड दिया है। छिंदवाड़ा अपने सम्मान से कोई गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं करेगा और अपनी विकास यात्रा पर अविरल आगे बढ़ता रहेगा।
कमलनाथ का गढ़ बन चुकी छिंदवाड़ा सीट को जीतने के लिए भाजपा ने इस बार ऐसा चक्रव्यूह रचा है जिससे कांग्रेस के विधायक, महापौर, पार्षद सहित कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। वहीं अब पार्टी के स्टार प्रचारक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी वहां रैली नहीं करेंगी। ऐसी स्थिति में कमलनाथ भाजपा के चक्रव्यूह में अकेले पड़ गए हैं। उनके सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। इस बार लोकसभा चुनाव में मप्र की छिंदवाड़ा सीट हॉट सीट बन गई है। दरअसल, भाजपा की मप्र की सभी 29 लोकसभा सीट जीतने के दावे में सबसे बड़ा रोड़ा छिंदवाड़ा सीट है। इस सीट से कांग्रेस के कमलनाथ 9 बार सांसद रहे और उनके बाद बेटे नकुलनाथ यहां से सांसद हैं लेकिन इस बार भाजपा ने छिंदवाड़ा सीट को नाक का सवाल बना लिया है। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मप्र की 29 सीटों में से एकमात्र छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। यहां से नकुलनाथ सांसद निर्वाचित हुए थे। इस बार नकुलनाथ फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने युवा नेता विवेक घंटी साहू को छिंदवाड़ा से प्रत्याशी घोषित किया है। भाजपा को क्लीन स्वीप करने के लिए कांग्रेस के छिंदवाड़ा रूपी अभेद्य गड़ को भेदना जरूरी है। छिंदवाड़ा की राजनीति को करीब से देखने और समझने वाले भी मानते हैं कि इस बार कमलनाथ या कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा में मुकाबला एकतरफा नहीं रहने वाला है। नकुलनाथ 2019 में सांसद बने जरूर लेकिन उनकी जीत का अंतर महज 37 हजार 536 मतों का रहा था। इस आंकड़े से भाजपा को बल मिल रहा है। सिर्फ एक बार (1998 का उप चुनाव) को छोडक़र 1952 से छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कांग्रेस के कब्जे में है। कमलनाथ छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद निर्वाचित हुए हैं. जबकि एक बार उनकी पत्नी अलका नाथ और एक बार उनके पुत्र नकुलनाथ की यहां से जीत मिली है। 1998 के उप चुनाव में कमलनाथ भाजपा प्रत्याशी सुंदरलाल पटवा से चुनाव हार गए थे। वर्ष 2018 में एमपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने पहली बार विधानसभा का उप चुनाव लड़ा और जीतकर दिल्ली की जगह प्रदेश की राजनीति शुरू की। 2019 के चुनाव में छिंदवाड़ा से नकुलनाथ प्रत्याशी बने और चुनाव में जीत दर्ज की। हमेशा मिशन मोड में रहने वाली भाजपा ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को जीतने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान पार्टी के लगभग सभी बड़े नेताओं ने छिंदवाड़ा का दौरा किया है और मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। इन्हीं कोशिशों के आधार पर मप में भाजपा इस लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप के इरादे में मैदान में उतरी है। यही वजह है कि भाजपा ने कांग्रेस के कब्जे वाली एकमात्र छिंदवाड़ा सीट को जीतने के लिए आर-पार की लड़ाई छेड़ दी है। पूर्व सीएम कमलनाथ भी अपनी पारंपरिक सीट को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है। खास बात यह है कि एक तरफ जहां भाजपा के दिग्गज नेताओं से लेकर सैकड़ों कायकर्ताओं ने छिंदवाड़ा में डेरा डाल रखा है, वहीं कमलनाथ अकेले ही भाजपा का मुकाबला कर रहे हैं। अब तक कांग्रेस का कोई बड़ा नेता छिंदवाड़ा नहीं पहुंचा है।

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