महेश भट्ट के अतीत के पन्नों को खोलती ..‘रंजिश ही सही’

  • अमिताभ श्रीवास्तव
महेश भट्ट

शोहरत हासिल कर चुके लोग आम तौर पर अपनी निजी जिंदगी, अपने अतीत के स्याह पहलुओं को ढांककर, छुपा कर रखते हैं ताकि किसी को पता न चले। हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्माता- निर्देशक महेश भट्ट इनमें एक दिलचस्प अपवाद हैं।
महेश भट्ट अपनी निजी जिंदगी को उघाड़ कर अर्थ, जनम, जख्म जैसी संवेदनशील फिल्में बना चुके हैं और लहू के दो रंग, नाम, नाजायज जैसी ठेठ मसाला फिल्में भी, जहां उनके जीवन के अक्स देखे जा सकते हैं। इस साफगोई और बेबाकी के लिए महेश भट्ट काफी तारीफ और आलोचना भी हासिल कर चुके हैं। यह कोई इत्तिफाक नहीं कि उनकी फिल्मों में नायक का अवैध संतान होना, प्रेम त्रिकोण और विवाहेत्तर प्रेम संबंध कहानियों का केंद्रीय तत्व रहे हैं। महेश भट्ट के मन मे अपने निजी जीवन की टीस, तकलीफ और नाराजगी शायद इतनी तीखी और गहरी है कि वह बार-बार ऐसी कहानियों की तरफ लौटते हैं जहां किरदारों की आड़ में खुद को बेपर्दा कर सकें ।
मेहंदी हसन की आवाज में पाकिस्तानी शायर अहमद फराज की गजल बहुत मशहूर हो गयी है – रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
इस गजल के मुखड़े से ही शीर्षक निकालकर महेश भट्ट वूट सेलेक्ट पर वेब सीरीज रंजिश ही सही में फिर अपनी और परवीन बाबी की प्रेम कहानी को ओटीटी के दर्शकों के लिए नये रंगरूप में सामने लेकर आये हैं। निर्माता उनके भाई मुकेश भट्ट हैं और बैनर उनकी कंपनी विशेष एंटरटेनमेंट का है लेकिन, सीरीज के निर्देशक महेश भट्ट नहीं है। लेखक-निर्देशक के तौर पर पुष्पराज भारद्वाज का नाम है। आठ किस्तों में फैली इस कहानी के अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) में कहा गया है कि यह वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित एक काल्पनिक प्रोग्राम है। लेकिन सारे असली किरदार पहचाने जा सकते हैं।
महेश भट्ट और परवीन बाबी से मिलते-जुलते किरदारों शंकर वत्स और आमना परवेज की भूमिका में ताहिर राज भसीन और अमला पॉल ने ओटीटी पर पारी शुरू की है। ताहिर ने मदार्नी फिल्म में खलनायक की भूमिका से पहचान बनाई थी और हाल ही मे रिलीज हुई फिल्म 83 में सुनील गावस्कर के किरदार में नजर आए थे और उनके काम की तारीफ भी हुई थी । लेकिन 83 के बुरी तरह फ्लॉप हो जाने के बाद उसका जिक्र शायद ज्यादा न हो। तमाम अंतर्द्वंदो से घिरे नाकाम फिल्म निर्देशक शंकर वत्स की केंद्रीय भूमिका मे ताहिर ने अच्छा काम किया है। अमला पॉल दक्षिण की फिल्मों की कामयाब अभिनेत्री हैं। दीपिका पादुकोण की बहुत झलक आती है उनमें। स्कित्जोफ्रेनिया की शिकार एक उन्मादग्रस्त मानसिक रोगी फिल्म स्टार आमना की भूमिका में उन्होंने बहुत शानदार काम किया है। शंकर की पत्नी अंजू की भूमिका में अमृता पुरी ने भी अच्छा काम किया है। सीरीज मे महेश भट्ट के ओशो से जुड़ाव और मोहभंग की झलक भी है, उनके गुरु कृष्णमूर्ति भी दिखते हैं एक बदली पहचान में। शंकर की मुस्लिम मां के किरदार में जरीना वहाब कहानी का अहम हिस्सा हैं और नाटकीय घुमाव के मौकों पर प्रकट होती हैं । अवैध दांपत्य को तकलीफ और गरिमा के साथ निभाती स्त्री की भूमिका को जरीना वहाब ने अच्छी तरह निभाया है। एक दृश्य में उनके किरदार का एक संवाद है – जो आदमी यह सोच कर पेड़ लगाता है कि वह कभी उनकी छांव का सुख नहीं लेगा, उसी आदमी को जिंदगी के मायने समझ में आते हैं। रंजिश ही सही में शंकर वत्स का किरदार कथावाचक या सूत्रधार की भूमिका में भी है। लेकिन कहानी दरअसल आमना परवेज की है। या यूं भी कह सकते हैं कि यह अर्थ फिल्म से पहले वाले महेश भट्ट की कहानी है जिन्हें उलझे हुए निजी रिश्तों ने तकलीफ भरी कई कहानियां दुनिया को सुनाने के लिए दे दीं। नये दौर के दर्शक के लिए नये नजरिये से पुरानी कहानी कहना एक मुश्किल काम है। सीरीज अपने आप में अच्छी है बशर्ते इसकी तुलना अर्थ या जख्म जैसी फिल्मों से न की जाए।  जो काम स्मिता, शबाना और कुलभूषण खरबंदा ने किया, उससे मुकाबला करना नये कलाकारों के साथ न्याय नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक हैं।)

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