बिना सिलेबस, बिना किताब कैसे पढ़ेगा मध्यप्रदेश…?

मध्यप्रदेश

हड़बड़ी में लागू की गई नई शिक्षा नीति की खामियां होने लगी उजागर

भोपाल/रवि खरे//बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार की नंबर वन बनने की हड़बड़ी लाखों छात्रों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। उच्च शिक्षा विभाग ने हड़बड़ी में नई शिक्षा नीति 2020 को लागू तो कर दिया है, लेकिन अब तक न तो किताबें छपी हैं न वेबसाइट पर सिलेबस खुलता है और न ही लैब का अता-पता है। ऐसे में मप्र के युवा पढ़ाई कैसे करेंगे, यह सवाल उठने लगा है। जानकारी के अनुसार, उच्च शिक्षा विभाग ने बिना तैयारी नई शिक्षा नीति 2020 लागू तो कर दिया है, लेकिन इस कवायद का नतीजा है कि प्रदेश में लाखों छात्र परेशान हो रहे हैं। हालात यह हैं कि नई नीति के लिए अलग से कोई सेल नहीं है, जिसकी वजह से कई प्रभारी और एक ओएसडी के भरोसे यह व्यवस्था है। छात्र या प्राध्यापक मदद लेना चाहें या कुछ समझना चाहें तो इसके लिए कोई हेल्पलाइन तक नहीं है।

छात्रों के सामने समस्याओं की भरमार
नई शिक्षा नीति को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए हैं। लेकिन छात्रों को 90 इलेक्टिव और 25 से ज्यादा वोकेशन विषयों में से चुने गए विषयों के सिलेबस, लैब, लाइब्रेरी में किताबों की अनुपलब्धता और फैकल्टी नहीं होने जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। ग्रेजुएशन लेवल पर प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले हजारों छात्रों ने ऑनलाइन आवेदन करते समय जब पसंदीदा विषय चुनना चाहा तो ऑप्शन ही नहीं खुला। मामले मे न्यू एजुकेशन पॉलिसी के प्रभारी अधिकारी और ओएसडी प्रो. धीरेन्द्र शुक्ला का कहना है कि नई शिक्षा नीति को लेकर जो भी समस्याएं हैं, उनकी सुनवाई के लिए हेल्पलाइन या हेल्प डेस्क शुरू करेंगे। इसका फायदा छात्रों और प्राध्यापकों को होगा। किताबें, लैब,सिलेबस सभी की उपलब्धता के लिए प्रयास तेज करेंगे। छात्रों को किसी भी हाल में परेशान नहीं होने देंगे।

इन समस्याओं का कब होगा समाधान
नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद कई समस्याएं सामने आई हैं, जिनका समाधान कब होगा यह किसी को पता नहीं है। नई शिक्षा नीति के हिसाब से किताबें उपलब्ध नहीं हैं। प्रकाशन का जिम्मा हिन्दी ग्रंथ अकादमी को दिया गया है, जहां से बार-बार समय आगे बढ़ा दिया जाता है। इस बीच कुछ शिकायतें ऐसी भी आ रही हैं कि उच्च शिक्षा विभाग की ओर से प्राचार्य, प्राध्यापक और शिक्षाविद को पत्र भेजकर कहा जाता है कि आप संबंधित विषय में दो दिन में किताब लेखन कर दें। कई प्राचार्य इतने कम समय में किताब लिखने को लेकर सवाल उठाते हुए मना कर चुके हैं। इलेक्टिव और वोकेशनल पढ़ाने के लिए विशेषज्ञ प्राध्यापक नहीं है। अगर इन्हें अन्य विषयों के शिक्षकों को पढ़ाने के लिए दिया गया तो नई शिक्षा नीति का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। विषय विशेषज्ञों की खोजबीन चल रही है लेकिन मौजूदा सत्र में कोई हल दिखाई नहीं देता। शासन की नई शिक्षा नीति का हाल इससे लगाया जा सकता है कि सतपुड़ा भवन स्थित सचिवालय में अलग से कोई व्यस्था या विशेष सेल आदि नहीं है। इसका प्रभार बतौर ओएसडी प्रो. धीरेन्द्र शुक्ला के पास है। उनके पास प्रवेश का भी प्रभार है। समय-समय पर आने वाले अन्य काम भी वह देखते हैं। छात्र-छात्राओं को होने वाली समस्याओं के निराकरण के लिए कोई हेल्प डेस्क या हेल्पलाइन नंबर भी नहीं है।

क्या कहते हैं जानकार
नई शिक्षा नीति की खामियों को लेकर विभाग के अधिकारी भी हैरान-परेशान हैं, लेकिन  कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वहीं प्रांतीय शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष डॉ. कैलाश त्यागी का कहना है कि नीति लागू करने से पहले प्राध्यापकों की कम से कम छह माह ट्रेनिंग होती। उसके बाद साधन-संसाधन जुटाते। तब कह सकते थे कि छात्रों को अब कोई समस्या नहीं आएगी। अभी लगता है कुछ अफसरों ने खुश करने के लिए हड़बड़ी में नई  नीति लागू करवा दी है। वहीं मध्यप्रदेश लाइब्रेरी एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. प्रभात कुमार पांडेय कहते हैं कि नई नीति छात्रों के सुनहरे भविष्य के लिए है। इसमें सुझाए गए पाठ्यक्रम उनको बाजार की जरूरतों के हिसाब से तैयार करने वाले हैं। पर दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश में उसे पूरी तैयारी के साथ लागू नहीं किया जा रहा है। शासन से आग्रह है कि इस ओर ध्यान दें।

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