एक साल में दलहन के रकबे में आई 17 लाख हेक्टेयर की कमी

दलहन

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। दलहन का बड़ा उत्पादक प्रदेश रहने वाले मप्र में अब किसानों का तेजी से दलहन की फसल से मोह भंग हो रहा है। यही वजह है कि सिर्फ एक साल में ही प्रदेश में दलहन फसल के रकबे में 25 फीसदी तक की कमी आ चुकी है। इसकी वजह है किसानों द्वारा अब अधिक उपज के फेर में दलहन की जगह गेहूं की फसल को अधिक तवज्जो देना। इस कारण से अब इस साल प्रदेश में अरहर, चना, उड़द, मूंग, मसूर तथा मटर का उत्पादन तेजी से गिर गया है।  
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में दलहन का क्षेत्रफल 65 लाख 95000 हेक्टेयर था जो अब कम होकर 48 लाख 89000 हेक्टेयर ही रह रह गया है। खास बात यह है कि इसके उलट प्रदेश में धान, मक्का और गेहूं के क्षेत्रफल में तेजी से वृद्धि हुई है। प्रदेश में अकेले गेहूं का उत्पादन 1 लाख हेक्टेयर के रकबे में होने लगा है। बताया जाता है कि किसानों को दलहन फसलों के लिए समय पर बीज नहीं मिल पाता है। यही नहीं उनमें कीटनाशक दवाओं का भी अधिक उपयोग होता है, जिसकी वजह से उसका उत्पादन लगातार कम होता जाता है। दलहन का कम उत्पादन होने की वजह से अब व्यापारियों को दालों का आयात करना पड़ रहा है। इस वजह से दालों के दामों में भी डेढ़ गुना तक वृद्धि हो गई है।
दरअसल किसानों को दलहन का बीज 7 से 10 हजार रुपए क्विंटल मिलता है जबकि उन्हें अपनी फसल 2500 से 3500 हजार रुपए प्रति क्ंिवटल में बेचनी पड़ती है। किसानों का दलहन फसल से रुझान कम होने की एक यह भी वजह है। कहा जा रहा है कि इन फसलों को अगर प्रोत्साहित नहीं किया गया तो इस मामले में प्रदेश आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा। उधर सरकार द्वारा मक्का को अधिक प्रोत्साहित किए जाने का असर भी दलहन की उपज पर पड़ा है। इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार गेहूं के उत्पादन पर अधिक जोर दे रही है जिसकी वजह से दलहन की फसलों का उत्पादन घटा है।

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