
- लोकायुक्त ने दर्ज किया मामला, टेंडरों में है गड़बड़ी का आरोप
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। पूर्व की सरकारों में आंख का तारा रहे अफसरों पर अब जांच एजेंसियों का शिकंजा कसना शुरु हो गया है। यही वजह है कि तमाम आरोपों व प्रत्यारोपों के बाद भी लगातार सरकारों द्वारा उपकृत किए गए अफसरों की अब मुश्किलें बढऩा शुरु हो गई हैं। पहले जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता मदन गोपाल चौबे के मामले में दस साल से लंबित मामले में अभियोजन स्वीकृति की अनुमति प्रदान की गई और अब लोक निर्माण विभाग में 8 साल तक बतौर ईएनसी रहे अखिलेश अग्रवाल के खिलाफ लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। यह वे अफसर हैं जिन्हें पूर्व की सरकार में जमकर उपकृत किया गया। दरअसल, ईएनसी रहते हुए अग्रवाल ने निविदा समिति भंग करने और अपनी मनमर्जी से समिति का गठन करने सहित टेंडरों की मंजूरी भी गड़बड़ी करने के आरोप लगे थे। अग्रवाल ने ठेकों में सरकार को करीब 200 करोड़ की चपत लगाई। शिकायत के बाद लोकायुक्त ने मामला दर्ज किया है। भोपाल निवासी संजय पारे नामक व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि पीडब्ल्यूडी के ईएनसी रहे अखिलेश अग्रवाल द्वारा शासन द्वारा गठित निविदा समिति को भंग कर बिना शासन के अनुमोदन मनमाने तरीके से स्वयं की सुविधा अनुसार निविदा समिति गठित कर मनमाने ढंग से टेंडर स्वीकृत कराने की वजह से सरकार को करीब 200 करोड़ की चपत लगी है। अखिलेश अग्रवाल ईएनसी के पद से रिटायर होने के बाद मप्र आरडीसी में सलाहकार के रूप में संविदा पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लोकायुक्त में की गई शिकायत में कहा गया था कि पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन ईएनसी अग्रवाल द्वारा शासन के आदेश क्रमांक एफ-53/3/ 3644 दिनांक 13 जुलाई 2011 को प्रमुख अभियंता स्तरीय समिति गठित की गई थी। इस पर ईएनसी ने आदेश क्रमांक 401/स/ 20/ निविदा समिति 15 जून को बदल दी और कई अन्य इंजीनियरों के नाम इसमें जोड़ दिए।
नहीं दे रहे थे अभियोजन की स्वीकृति
रिटायर्ड अधिकारियों के लिए स्वर्ग बने जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता मदन गोपाल चौबे और अन्य अफसरों के खिलाफ अभियोजन दायर करने की सहमति दे दी है। जांच के मामले में सरकार ने 10 साल बाद स्वीकार किया है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार किया गया था। अब भ्रष्टाचार को लेकर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ पूर्व प्रमुख अभियंता मदन गोपाल चौबे के खिलाफ कोर्ट में केस चलाएगा। चौबे को सरकार ने रिटायर होने के बाद पांच बार सेवा वृद्धि की गई थी। दरअसल, 2008-09 में हंसापुर और रीवा में जलाशय के करोड़ों रुपए के काम ठेकेदार को दिलाने के साथ उपयोगिता प्रमाण पत्र दिया था। टेंडर के मामले में हुई गड़बड़ी को लेकर ईओडब्ल्यू ने आर्थिक अपराध के साथ साल 2013 में केस दर्ज किया था। भष्टाचार के मामले में ईओडब्ल्यू ने अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी, जिस पर राज्य शासन ने जल संसाधन विभाग के अधिकारियों का अभिमत मांगा था। जिस पर जल संसाधन विभाग ने भ्रष्टाचार के अधिनियम के तहत अभियोजन की स्वीकृति देने के लिए इनकार कर दिया था।
टेंडर मंजूरी में किया खेल
लोकायुक्त से की गई शिकायत में बताया कि जबलपुर जिले के अंतर्गत कटंगा ग्वारीघाट मार्ग लंबाई 20 किमी के उन्नयन कार्य की निविदा लागत 16.11 करोड़ कार्यपालन यंत्री जबलपुर संभाग ने आमंत्रित की थी, जिसे प्रथम आमंत्रण की निविदा प्रतिशत दर कम करके 1595 लाख को चीफ इंजीनियर ने अस्वीकृत कर दिया। द्वितीय आमंत्रण में प्रतिशत दर कम करके लागत 1644 लाख आई। जिसे कार्यपालन यंत्री, अधीक्षण यंत्री, सीई की अनुशंसा पर विचार कर ईएनसी अखिलेश अग्रवाल ने द्वितीय निविदा आमंत्रण के स्थान पर प्रथम आमंत्रण की निविदा दर्शाकर स्वीकृक्ति की अनुशंसा के साथ प्रकरण राज्य शासन को भेज दिया और शासन के संज्ञान में यह नहीं लाने दिया कि इसके पूर्व इसी कार्य की लगभग 48.55 लाख कम लागत की निविदा अस्वीकृत की जा चुकी है। इस तरह के कई मामलों में अग्रवाल ने सरकार को करीब 200 करोड़ की चपत लगाई। लोकायुक्त ने मामले की जांच-पड़ताल के बाद शिकायतकर्ता की शिकायत पर 22 जुलाई 2024 को संगठन में प्रकरण क्रमांक 219/ई/2024 पंजीबद्ध किया है।