अफसरों के ‘आदेशों’ में… उलझा गेहूं भंडारण

  • गौरव चौहान
गेहूं भंडारण

मप्र में सरकार इस बार समर्थन मूल्य पर 100 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी करेगी। ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है गेहूं के भंडारण की। लेकिन  खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की अपर मुख्य सचिव स्मिता भारद्वाज और फिर मध्यप्रदेश वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कार्पोरेशन के एमडी रविंद्र सिंह  के आदेश से अफसरों के सामने समस्या खड़ी हो गई है। दरअसल, एसीएस स्मिता भारद्वाज ने समस्त कलेक्टरों को निर्देश जारी किए हैं कि निजी गोदामों में (अंदर और परिसर में) विगत वर्ष का उपार्जित अथवा अन्य व्यक्तियों का गेहूं भंडारित होने की दशा में ऐसे निजी गोदामों पर गोदाम स्तरीय उपार्जन केंद्र/ उपार्जित स्कंध का भंडारण न किया जाए। इनके आदेश के कुछ दिन बाद रविंद्र सिंह के हस्ताक्षर से संसोधित आदेश जारी किए गए हैं। अब अधिकारी असमंजस में फंस गए हैं कि वे क्या करें।
गौरतलब है कि खाद्यान्न भंडारण को लेकर विवादास्पद तुगलकी फरमान खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की एसीएस स्मिता भारद्वाज द्वारा जारी किया गया था। लेकिन जब सरकार की किरकिरी हुई तो एक हफ्ते के अंदर संशोधित आदेश जारी करना पड़ा। दिलचस्प यह है कि शासन के आदेश का संशोधन एक दूसरे अधीनस्थ आईएएस अफसर रविंद्र सिंह के हस्ताक्षर से जारी कराया गया। रविंद्र सिंह मध्यप्रदेश वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कार्पोरेशन के एमडी हैं। किसी आदेश के संशोधन की यह प्रशासनिक प्रक्रिया चर्चा का विषय है। इस प्रकरण में मूल आदेश अतिरिक्त मुख्य सचिव का था तो उसके संशोधन का अधिकार एक निगम के एमडी को कैसे संभव है। विभाग के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत तक को कुछ पता नहीं था। अब पता चला है कि संशोधित आदेश के प्रावधान भी संतोषजनक नहीं हैं और मध्य प्रदेश में खाद्यान्न भंडारण के गोदाम की संचालक अधिकतर महिलाएं नाराज हैं। इसमें पहले से 25 प्रतिशत से अधिक खाद्यान्न उपार्जित होने की स्थिति में गोदाम चालू वित्त वर्ष में अन्न भंडारण के आवेदन के लिए अभी अटके हुए हैं। पोर्टल उन्हें स्वीकार ही नहीं कर रहा।
दोनों आदेशों को लेकर गफलत
सवाल उठ रहा है कि जब मूल आदेश ही गड़बड़ था तो उसके संशोधन में पहले से उपार्जित गेहूं की शर्तें किन विशेषज्ञों की सलाह पर जोड़ी गई है। अभी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। विभाग में यह खोज हो रही है कि यह दोनों आदेश बने किसके स्तर पर हैं ,क्योंकि स्मिता भारद्वाज और रविंद्र सिंह दोनों ही बीते एक माह के भीतर हुए प्रशासनिक फेरबदल में इन विभागों में आए हैं। फूड कमिश्नर कार्यालय में पदस्थ जॉइंट डायरेक्टर परमार सरकार को मुश्किल में डालने वाले इन आदेशों की डिजाइन को लेकर विभाग में चर्चा में है। चर्चा यह है कि जिन प्रावधानों से मंत्री अनभिज्ञ हैं और नए पदस्थ आईएएस अफसर ने अपने आदेश से जारी कर दिए, वे किनके इशारे पर जोड़े गए। जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में लगभग 8000 गोदाम है जो केंद्र सरकार की अनुदान योजना के अंतर्गत अधिकतर महिलाओं द्वारा स्थापित किए गए हैं। वर्ष 2018-19 के बाद से उपार्जित खाद्यान्न का किराया आठ से दस महीनों महीने तक लंबित हैं।
नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा बिल पास होने के बावजूद भुगतान नहीं हो पा रहे। सूत्रों के अनुसार वर्ष 2018-19 के बाद से नियमित अकाउंट ऑडिट ना होने की वजह से केंद्र सरकार ने फंड रोके हुए हैं बार-बार नोटिस के बावजूद नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों द्वारा अकाउंट का ऑडिट नहीं कराया गया है। पिछले 5 वर्षों से निगम के स्तर पर भुगतान का ढर्रा लगातार बिगड़ता गया है। नागरिक आपूर्ति निगम से केंद्र का पैसा मार्कफेड और नाफेड से होकर मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक्स कॉरपोरेशन तक जाता है। इन सरकारी एजेंसियों के बीच आपसी समन्वय का अभाव है। हर स्तर पर भुगतान कई कई महीनों तक लंबित हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 के बाद ऑनलाइन व्यवस्था किए जाने के बावजूद प्रदेश में हालत लगातार बिगड़ते गए हैं। इससे एक तरफ आम किसान और हजारों गोदाम संचालक महिलाओं को परेशान होना पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ केंद्र के स्तर पर भी मध्यप्रदेश की बेकाबू अफसरशाही के कारण सरकार की किरकिरी हो रही है। लोकसभा चुनाव की दहलीज पर जब गेहूं के उपार्जन की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, प्रदेश में हजारों गोदामों के करोड़ों रुपए के बिल अटके हुए हैं। एक अफसर के तुगलक्की फरमान ने एक ऐसे मसले पर अनावश्यक विवाद खड़ा कर दिया है जिसमें एक साथ सरकार की कई एजेंसियां की अंदरूनी है। मंत्री खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण गोविंद सिंह राजपूत का कहना है कि उधर, वेयर हाउस को लेकर जो निर्णय हुआ है। इस संबंध में मुझे जानकारी नहीं है और न ही यह निर्णय लेते समय कोई चर्चा की गई या सहमति ली गई है। मैं इस मामले को दिखवाऊंगा और आवश्यकता पड़ी तो मुख्यमंत्री से चर्चा करूंगा।

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