सरकारों की देरी पड़ेगी प्रदेश पर भारी

दस महीने में अपने हिस्से के नर्मदा जल का उपयोग नहीं कर सका तो गुजरात को मिलेगा हक

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती अपने हिस्से के नर्मदा जल के समय से उपयोग करने की बनी हुई है। इस मामले में अब पूरी तरह से उलटी गिनती शुरू चुकी है। जिस तरह से इस मामले में काम चल रहा है, उससे लग रहा है कि प्रदेश को अफसरों और सरकार की देरी का खामियाजा  अपने हिस्से का पानी गंवाने के रूप में भुगतना होगा। इसकी वजह है इस पानी के उपयोग संबधित अधिकांश योजनाओं पर अभी काम चल रहा है, जबकि  अब सिर्फ दस माह का समय ही बचा है। सरकारों की बेरुखी और अफसरों की नाकाबलियत की वजह से प्रदेश में नर्मदा जल समझौते के तहत अपने हिस्से का पानी पूरी तरह से 44 साल बाद भी उपयोग में नहीं आ पा रहा है।  मप्र सरकार को 45 साल में अपने हिस्से के पानी का उपयोग करना है। दरअसल इसके लिए तय की गई समय सीमा इस साल दिसंबर में समाप्त हो जाएगी। इसकी वजह से अब सरकार के पास अब सिर्फ 10 माह का ही समय रह गया है। इस समय में प्रदेश सरकार को न केवल अपने हिस्से के पानी का उपयोग करना है, बल्कि नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के सामने पानी के उपयोग के सबूत भी पेश करने होंगे। यदि सरकार इसमें असफल रहती है तो फिर प्रदेश के हिस्से का पानी गुजरात को प्रदान कर दिया जाएगा।  यही वजह है कि अब सरकार आनन -फानन में 15 हजार करोड़ के सिंचाई प्रोजेक्टों को स्वीकृति देने जा रही है। जिनके पूरा होने पर प्रदेश में पांच लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा में वृद्धि हो जाएगी। हाल ही में सरकार ने कई सिंचाई योजनाओं के लिए राशि भी भी स्वीकृत की है।
सर्वाधिक पानी मप्र को
नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने 1979 में नर्मदा जल समझौते के तहत चार राज्यों के बीच पानी का बंटवारा किया था। नर्मदा के कुल 28.0 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी में से मप्र को सबसे ज्यादा 18.25 एमएएफ, गुजरात को 9.0 एमएएफ, राजस्थान को 0.5 एमएएफ और महाराष्ट्र को 0.25 एमएएफ पानी दिया गया था। चारों राज्यों को दिसंबर, 2024 तक अपने हिस्से के पानी का पूरा उपयोग करना है। नर्मदा घाटी विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मप्र सरकार ने नर्मदा जल समझौते के बाद शुरुआती वर्षों में अपने हिस्से के नर्मदा जल के उपयोग को लेकर जरूरत के अनुसार गंभीरता नहीं दिखाई। वर्ष 2019 में सरकार ने इस मुद्दे पर फोकस करना शुरु किया। यही वजह है कि 1979 से 2019 तक 40 वर्षों में मप्र महज 13.14 एमएएफ पानी का ही उपयोग कर सका था। शेष बचे हुए 5.11 एमएएफ पानी का उपयोग करने के लिए अधिक सिंचाई व पेयजल परियोजनाओं के निर्माण की जरूरत थी। वर्ष 2019 में 2024 तक शेष 5.11 एमएएफ पानी का उपयोग करने के लिए 70 हजार करोड़ रुपए लागत की परियोजनाओं के निर्माण का अनुमान लगाया गया था। तब से तब से अब तक 50 हजार करोड़ से ज्यादा की सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। गौरतलब है कि तथ्यों से स्पष्ट है कि नर्मदा नदी पर निर्भरता तो हमारी अधिक है पर न तो इसके जल के समय पर उपयोग को लेकर ठोस काम ही नहीं हुआ है। और न ही इसके स्वास्थ्य की चिंता की गई।
परियोजनाओं पर काम
प्रदेश में बंजलवाड़ा उद्वहन माइक्रो सिंचाई परियोजना, चौंडी जामनिया परियोजना, बलकवाड़ा, अंबा रोडिय़ा, सिमरोल अंबाचंदन, कालीसिंध चरण एक और दो, नर्मदा पार्वती चरण एक, दो, तीन और चार, जावर, नर्मदा क्षिप्रा, पीपरी, नर्मदा-झाबुआ-पेटलावद-थांदला-सरदारपुर, डही, बदनावर परियोजनाओं पर काम चल रहा है।
पेयजल की आपूर्ति
नदी से सिंचाई के साथ जबलपुर, नर्मदापुरम(होशंगाबाद), भोपाल, देवास सहित अन्य जिलों में पेयजल की आपूर्ति भी की जा रही है। पेयजल आपूर्ति के लिए दूर से पानी लाने के कारण संबंधित निकायों का खर्चा बढ़ता जा रहा है। नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक योजना के माध्यम से इंदौर के उज्जैनी गांव के पास क्षिप्रा के उद्गम स्थल से जल प्रवाहित किया जा रहा है।
नर्मदा को प्रदूषण से बचाने की भी चुनौती
नर्मदा जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। हालत यह है कि इसके पानी में जगह -जगह अधिकतम गंदगी का स्तर पाया गया। इसी तरह पानी में कैल्शियम कार्बोनेट का स्तर अधिकतम 200 के स्थान पर 300 पार कर चुका है।  सबसे चौंकाने वाली स्थिति पानी में बैक्टीरिया को लेकर है, क्योंकि नर्मदा के जल में अब केलीफॉर्म और ई-कोलाई बैक्टीरिया भी पाया गया है, जो नर्मदा में सीवरेज और जीव जंतुओं द्वारा दूषित होने वाले पानी का दुष्परिणाम है। पर्यावरण विधि के मुताबिक इस तरह के बैक्टीरिया ना केवल स्वास्थ्य के लिए घातक हैं बल्कि नदी के जल ही जीवन के भी इससे खतरा बढ़ेगा।नर्मदा नदी शुरू से ही अपने आसपास रहने वाली रिहायशी बस्ती के लिए अवशिष्ट निस्तारण का सुविधाजनक जरिया बनी है। नर्मदा के उद्गम स्थल से लेकर उसके समुद्र में मिल जाने तक विभिन्न शहरों और ग्रामीण कस्बों का अवशिष्ट जल नर्मदा में प्रवाहित हो रहा है। मंडला जिले से लेकर नर्मदापुरम जिले तक में गंदगी नदी में मिल रही है। इसी तरह से जबलपुर के ग्वारीघाट समेत डिंडोरी, नरसिंहपुर का बरमान घाट, सीहोर जिले के शाहगंज सहित देवास में नेमावर और खंडवा के ओमकारेश्वर व मंडलेश्वर समेत धार जिले के धरमपुरी बड़वानी के राजघाट और अलीराजपुर के ककराना घाट पर भी प्रदूषण की यही स्थिति है।

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