राहुल से मिलने महीनों करना पड़ता है नेताओं को इंतजार!

राहुल गांधी
  • प्रदेश में पार्टी के अटके रहते हैं फैसले….

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही मप्र कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण राज्यों में शामिल है, लेकिन इसके बाद भी इस राज्य के कांग्रेस नेताओं को पार्टी आलाकमान राहुल गांधी से मिलने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता है। इसकी वजह से ही प्रदेश में पार्टी के फैसले अटके रहते हैं, जिसका खमियाजा राजनैतिक रुप से न केवल पार्टी को बल्कि प्रदेश के नेताओं को भी उठाना पड़ता है। यह हालत तब है जबकि प्रदेश से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता आते हैं। अब लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने को पूरी तरह से तैयार है। लिहाजा भाजपा का पूरा नेतृत्व पूरी तरह से मैदानी स्तर पर सक्रिय होकर अपने कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के कट्टर कांग्रेसी नेताओं का पार्टी नेतृत्व से मिलने का इंतजार समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। उनकी पीड़ा यही है कि पार्टी नेतृत्व मौजूदा विपरीत हालात में भी मिलने का समय नहीं देता है। विधानसभा चुनाव के बाद मप्र कांग्रेस के कई विधायक एवं नेताओं ने पार्टी नेता राहुल गांधी से मिलने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। यह बात अलग है कि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष जैसे चुनिंदा नेताओं को ही अब तक राहुल गांधी से मिलने का मौका मिला है। इसकी वजह से न तो प्रदेश के अन्य नेता संगठन से लेकर प्रदेश के राजनैतिक माहौल को उन तक पुहंचा पा रहे हैं और न ही अपनी बात रख पा रहे हैं। इसकी वजह से पार्टी में मैदानी हकीकत को ध्यान में रखकर फैसले नहीं हो पा रहे हैं , जिसकी वजह से प्रदेश में लगातार जनाधार कम होता जा रहा है। इसके बाद भी पार्टी में टिकट चयन से लेकर संगठनात्मक नियुक्तियों में पूराना ढर्रा ही जारी है। चुनाव की घोषणा से पहले पार्टी का कोई भी बड़ा नेता प्रदेश का दौरा कर पार्टी नेता एवं कार्यकर्ताओं के मन की बात नहीं जानता है। यह बात अलग है कि राहुल गांधी अपनी यात्रा के माध्यम से जरूर चुनाव से पहले मप्र पहुंचते हैं। इस यात्रा के दौरान भी नेता और कार्यकर्ता राहुल गांधी से अपनी मन की बात नहीं कर पाते हैं , यह जरुर है कि उन्हें अपनी फोटो खिचवाने का जरूर मौका मिल जाता है। कांग्रेस मुख्यालय की ओर से लोकसभा चुनाव के लिए नियुक्ति केंद्रीय पदाधिकारी ही प्रदेश के दौरों की खानापूर्ति कर नेतृत्व को रिपोर्ट सौंप देते है। वहीं दूसरी ओर मप्र में लगातार चुनाव जीतने के बाद भी भाजपा नेतृत्व सतत रूप से नेता और कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचकर उनकी बात न केवल सुनता है बल्कि उन्हें काम देकर सक्रिय करता रहता है। यही नहीं भाजपा में दिल्ली हो या फिर भोपाल हर जगह भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी हाईकमान से लेकर अन्य बरिष्ठ नेताओं से मुलाकात आसानी से हो जाती है और अपनी बात करने का मौका भी मिल जाता है। इतना ही नहीं चुनावों से पहले भाजपा केंद्रीय नेतृत्व और उसके सभी बड़े नेता मैदानी स्तर पर जाकर बूथ स्तर तक की बैठकों में शामिल होते हैं। पिछले दो चुनावों से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक चुनाव की घोषणा से पहले खुद मैदानी स्तर तक के दौरे कर रहे हैं।
एक दशक में भी नहीं आया बदलाव
बीते एक दशक से पार्टी केन्द्र की सत्ता में भी नहीं है, जिसकी वजह से पार्टी हाईकमान विपक्ष की राजनीति कर रहा है। इसके बाद भी बदलाव होता नहीं दिखा है। इस दौरान राहुल गांधी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे, लेकिन उनके संगठनात्मक कामकाज का तरीका वहीं पुराना बना हुआ है। यही वजह है कि प्रदेश के कई मौजूदा विधायकों ऐसे हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा था, लेकिन अभी तक नहीं मिला है। पार्टी नेता बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की नाराजगी की एक वजह भी यही है कि विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद राहुल गांधी ने उनसे मुलाकात ही नहीं की, बिना चर्चा किए मप्र संगठन में फैसले कर दिए। पार्टी सूत्रों को तो यहां तक कहना है कि कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेताओं की जहां मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और वरिष्ठ नेत्री सोनिया गांधी से आसानी से मुलाकात हो जाती हे , लेकिन राहुल गांधी से मुलाकात के लिए इंतजार करना पड़ता है।
कुछ नेताओं को ही मिलती है तबज्जो
प्रदेश के अधिकांश नेताओं का कहना है कि पार्टी हाईकमान द्वारा प्रदेश के चुनिंदा नेताओं को ही महत्व दिया जाता है। यह नेता समय के अनुसार बदलते रहते हैं। इसकी वजह से प्रदेश में न केवल गुटबाजी बढ़ती है , बल्कि दूसरे नेता अपने आपको उपेक्षित भी महसूस करते हैं। यही नहीं पार्टी हाईकमान प्रदेश के हर छोटे बड़े मामलों में खुद फैसला करता है , लेकिन बात रखने का मौका देने के लिए मिलने का समय नहीं देता है। इसकी वजह से प्रदेश में गुटबाजी को भी बढ़ावा मिलता है। अहम बातय है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी बामुश्किल से मिलने का मौका मिल पाता है , वह भी लंबे इंतजार के बाद, जिसकी वजह से उनका मनोबल भी कमजोर होता है।

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