
इंदौर/बिच्छू डॉट कॉम। सड़कों पर जमा पानी को देखकर जो लोग वॉटर प्लस पर सवाल उठा रहे हैं दरअसल वह नगर निगम की दूरगामी योजना को समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। उन्हें वॉटर प्लस का संधी विच्छेद करना होगा। वॉटर यानि पानी…। प्लस यानि जोड़ना, बढ़ाना..। कुल मिलाकर वॉटर प्लस मतलब पानी बढ़ाना…। नगर निगम भी तो यही कर रहा है। पानी की कमी…। पानी की कमी…। कहने वाले शहर को अपनी सोची-समझी इंजीनियरिंग के दम पर ऐसा बना दिया गया है ताकि बरसात का पानी बहे नहीं, जमा हो। ताकि शहर में किल्लत नहीं, जहां देखो वहां पानी ही पानी हो…। और पूरा शहर पर्यटन स्थल बन जाए । कहीं जाने की जरूरत ही नहीं यहीं, लुफ्त उठाइए अपने ही इंदौर में… ।
यह आसान नहीं था….। मुश्किल था…। इसके लिए बाकायदा सिविल के इंजीनियरों से ढाल की उम्मीद करके उन्हें सीवरेज प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपी गई…। सड़कों से ऊंचे फुटपाथ बनाए गए…। गली, मोहल्ले से लेकर बाजार, बड़े चौराहों तक…। पुख्ता इंतजाम किए गए…। ऐसे में पानी की क्या मजाल जो निकासी तलाश सके…। यह निगम के अति बुद्धिजीवी अफसरों का उन कथित ज्ञानियों के मुंह पर तमाचा है जो कहते आए हैं कि आजादी के बाद से अब तक नगर निगम ने कोई तालाब नहीं बनाया…। नदी को प्रवाहमान नहीं बना सका। निगम अफसरों ने बता दिया कि हम चाहें तो नदी क्या चीज हैं, सड़कों को प्रवाहमान बना दें। मैदान क्या हैं, बिना खोदे ही उन्हें ताल बना दें…। अफसरों ने इंदौर को ऐसा बना दिया है कि भले झड़ी न लगे…आधा-एक इंच पानी ही बरसे…। मगर, सड़कें भाई साहब आपको फुल मिलेगी…। पानी से…। बुराई करने वाले जान लो… एक दिन हमारे अफसर पूरी दुनिया को सीखाएंगे कि छटाकभर बरसात से पूरा शहर कैसे पानी-पानी करें…।
आखिर ग्रेविटी भी तो कोई चीज हैं भाई…। जो निगम का साथ आज से नहीं, कई साल से दे रही है। तब से जब नर्मदा का पानी 70 किलोमीटर दूर से लिफ्ट करके इंदौर तक लाया गया। इसी ग्रेविटी को अपनी समझ से समझ चुके इंटेलिजेंट इंजीनियरों ने शहर की हर सड़क, चौराहे और मैदान को जल जमा करने का जरिया बना दिया। अंगुली उठाने वाले, अंगुली उठाते हैं, यह नहीं समझ पाते कि ठीक बरसात से पहले सीवरेज के चेम्बरों को बंद करना कितना मुश्किल है। कई-कई दिन लग जाते हैं, इस काम में..।
पर्यटन के लिहाज से भी यह फायदेमंद हैं…। महंगे मोल का पेट्रोल जलाकर और जान जोखिम में डालकर अब लोगों को नदी का बहाव देखने के लिए चोरल जाने की जरूरत नहीं है, निगम ने यह व्यवस्था बीआरटीएस, बायपास और सकरी गलियों में ही कर दी है…। यहां पानी की लहरों के बीच वाहन चलाने का जो मजा है, चोरल में थोड़ी मिलेगा…। धीरे-धीरे यह फेसिलिटी शहर की सभी प्रमुख सड़कों पर मिलने लगी है…। अभी कुछ दिन पहले चंद्रभागा में भी सड़क को नदी बनाने का सफल परीक्षण किया गया।
हर बड़े सीरियल में इंदौर का व्यक्ति जा चुका है…। बस रोहित शेट्टी का खतरों के खिलाड़ी में कोई नहीं गया…। लोग खतरों के खिलाड़ी बने, वॉटर स्टंट सीखें…। इसके लिए बरसात थमने के बाद सड़कों के गहरे गड्ढे नहीं भरे जाते। भर दें तो फिर पानी के बहाव और गड्ढों के झटकों के बीच वाहन लेकर चलने का मजा नहीं आएगा।
सबकी मेहनत का यह फल है…इंदौर नंबर-1 है…, यहां हमें उन नेताओं के सफल योगदान को नहीं भुलना चाहिए जो बड़ी खामौशी से निगम की अद्भूद इंजीनियरिंग को निहारते आए हैं…। सवाल खड़े करके अफसरों का मनोबल नहीं गिराते। बल्कि अपना कमीशन लेकर अफसरों को ऐसे कारनामों को करने की प्रेरणा देते रहते हैं। हम भी कम नहीं है। हमने भी बहुत साथ दिया है। घर के सामने कीचड़ न हो.. इसीलिए सड़क से ऊंचे पेवर लगा दिए। ओटले बना दिए। कॉलोनियों में पैसा देकर कौन बसता…। हमने नालों में ही अपने आशियाने बना लिए…। चूकि नाला सरकारी था और सरकार भी अपनी, इसीलिए हर सरकारी चीज पर अपना हक है यही सोचकर नदी-नाले की सरकारी जमीनें विकसित करते चले गए। अफसरों ने मूंद ली आंखें, इन्हें गड्ढे दिखते ही नहीं बायपास रोड पर कई ऐसे जानलेवा गड्ढे बने हुए हैं जहां से लोगों को निकलना मुश्किल हो गया है। लेकिन इन गड्ढों को भी कोई ठीक करने वाला नहीं है। जिस कारण लोगों को इस रोड से गुजरने में मुश्किल हो रही है। इतना ही नहीं इस रोड पर बने गड्ढों के चलते आए दिन हादसे भी हो रहे हैं। जिससे सरकारी अस्पताल का फायदा हो रहा है इसीलिए अफसरों ने आंख मूंद ली हैं… !
तो ज्यादा गंभीर बातें न करें…। जो हो रहा है…। होने दें…। नेताओं से शिकवा न करें…। अफसरों की शिकायत न करें….। भगवान से झमाझम की आस न करें..। क्योंकि आप तो एक दिया और दो अगरबत्ती लगाकर भगवान से अच्छी बरसात मांग लेते हो…। बाद में आधा-एक इंच बरसात होते ही बेचारे अफसरों को 33 करोड़ देवी देवता याद आने लगते हैं।