यादव- श्रीमंत विवाद: सियासी बिछात पर बढ़ेगा शह और मात का खेल

यादव- श्रीमंत

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। एक माह पहले लिखे गए गुना-शिवपुरी के भाजपा सांसद केपी यादव के पत्र के अब सामने आने से मप्र में भाजपा की सियासत गर्मा गई है। माना जा रहा है कि इन दोनों ही नेताओं के बीच अभी सियासी बिसात पर शह और मात का खेल और बढ़ना तय है। इस सियासती लड़ाई का असर न केवल ग्वालियर चंबल अंचल में भाजपा की राजनीति पर पड़ेगा, बल्कि प्रदेश स्तर पर भी पड़ना तय माना जा रहा है। यही वजह है कि अब तो कांग्रेस भी इस मामले को हवा देने में जुट गई है। इसकी अपनी वजह भी है। प्रदेश की नाथ सरकार को गिराकर भाजपा की सरकार बनवाने की वजह से श्रीमंत तो पहले ही कांग्रेस के निशाने पर हैं, ऐसे में पिछड़े  वर्ग से आने वाले सांसद यादव का पत्र कांग्रेस के लिए मुफीद बन गया है। अब इस विवाद के मामले में श्रीमंत के समर्थकों ने भी मोर्चा खेलना शुरू कर दिया है।
 उधर मामले को शांत कराने के लिए अब प्रदेश संगठन भी सक्रिय होने की तैयारी में लग गया है। यह बात अलग है कि जिस तरह से श्रीमंत को सत्ता व संगठन में महत्व मिल रहा है उससे पार्टी के पुराने दिग्गज नेताओं से लेकर मूल कार्यकर्ता तक में असंतोष बना हुआ है। यादव की चिट्ठी को इस असंतोष की चिंगारी के रूप में भी देखा जा रहा है। दरअसल पार्टी के कई पुराने व दिग्गज नेता ऐसे हैं जिनके अस्तित्व पर इन दिनों सवाल बना हुआ है। माना जा रहा है कि इन नेताओं को अब अगले आम विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनावों तक में श्रीमंत की वजह से टिकट तक के लाले पड़ सकते हैं। यही वजह है कि अब पार्टी के पुराने नेताओं और दलबदलू नेताओं के बीच में गोलबंदी के हालात बन रहे हैं।
माना जा रहा है कि सांसद केपी यादव ने पीड़ा जाहिर करने के बहाने अभी से रणनीति के तहत दूर का दांव चला है। इस दांव के पीछे वर्ष 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति है। माना जा रहा है कि अब श्रीमंत के भगवा रंग में रंगने की वजह से वे अब भाजपा के टिकट पर गुना संसदीय सीट से ही लोकसभा टिकट के सबसे प्रबल दावेदारी कर यादव द्वारा दी गई मात का बदला लेने की तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में यादव के सामने टिकट का संकट खड़ा हुआ है। इस संकट से बचने के लिए ही यादव द्वारा अभी से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर बिसात बिछाने और उसे परखने की शुरूआत की गई है। दरअसल गुना संसदीय सीट को श्रीमंत की पारिवारिक सीट मानी जाती है। यह बात यादव भी जानते हैं। इसी तरह से विधानसभा चुनावों में भी यादव के लिए अपने किसी समर्थक के लिए टिकट दिला पाना मुश्किल बना हुआ है, जबकि इसके उलट श्रीमंत के लिए यह बेहद आसान है। यादव का कद पार्टी में और महल की राजनीति के मुकाबले बेहद कम है, जिसकी वजह से उन पर श्रीमंत और उनके समर्थक कई नेता भारी पड़ जाते हैं।
इस कारण वे न केवल सिंधिया, बल्कि उनके खेमे के कई नेताओं से सियासी कद में मात खा जाते हैं। इस बीच जिन भाजपा नेताओं को श्रीमंत की वजह से अपना राजनैतिक नुकसान उठाना पड़ा है, वे इन दिनों देखो व इंतजार करो की रणनीति पर अमल कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस रणनीति के बाद भी वे पर्दे के पीछे से यादव को अपना समर्थन प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रुप से दे रहे हैं।
पार्टी से अधिक व्यक्तिगत निष्ठावान है श्रीमंत समर्थक
भाजपा में आने के बाद भी श्रीमंत समर्थक अब तक पार्टी की राीति व नीति में नहीं ढल पाए हैं। वे अब भी पुराने व मूल भाजपा कार्यकर्ताओं व नेताओं के साथ समन्वय बनाने के साथ ही उनसे करीबी नहीं बढ़ा रहे हैं। वे अब भी पार्टी की जगह व्यक्तिगत निष्ठा में लगे रहते हैं। यही वजह है कि अब ग्वालियर की राजनीति में श्रीमंत के विरोध में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और पूर्व में उनके विरोधी रहे नेताओं ने मिलकर नया खेमा बना लिया है। इस खेमेबंदी में आग में घी डालने का काम किया है निगम मंडलों में की गई श्रीमंत समर्थकों की नियुक्तियों ने।
श्रीमंत समर्थक भी हुए सक्रिय
यादव के पत्र के सार्वजनिक होने के बाद जिस तरह से उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मोर्चा खोला , उसके बाद अब श्रीमंत समर्थक भी सक्रिय होने लगे हैं। श्रीमंत के समर्थकों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को पत्र लिख कर उन पर बेवजह का रोना रोकर पार्टी की छवि धूमिल करने का आरोप लगाते हुए उन्हें प्रदेश प्रवक्ता पद से हटाए जाने की मांग की है। इसी तरह से श्रीमंत समर्थक रामकुमार दांगी कांग्रेस में आईटी सेल प्रभारी रहे हैं। उन्होंने खुद को भाजपा कार्यकर्ता बताते हुए लिखा कि सांसद के आरोप निराधार व गलत हैं। सच्चाई यह है कि केपी यादव ने क्षेत्र के विकास में आज तक कोई काम नहीं किया है। इसी तरह से पत्र में श्रीमंत के राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र सेवा की भावना का उल्लेख करते हुए लिखा कि इसी से प्रेरित होकर पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। इसके अलावा उसमें श्रीमंत द्वारा अपने राजनीतिक जीवन को दांव पर लगाकर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाने का भी जिक्र किया गया है।
चौधरी व शेजवार समर्थकों में बंटे कार्यकर्ता
श्रीमंत समर्थक मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी और भाजपा के पूर्व मंत्री रहे डॉ.गौरीशंकर शेजवार के समर्थकों में अभी तक समन्वय नहीं बन पाया है। यह बात अलग है कि भाजपा में रहते हुए डॉ. शेजवार के विरोधी रहे भाजपाइयों को जरुर प्रभु राम के रूप में नया नेता मिल गया। ऐसे पुराने और नए भाजपाइयों का एक गुट तथा शेजवार समर्थक भाजपाइयों का दूसरा गुट सांची विधानसभा में अपनी ढपली-अपना राग की तर्ज पर सक्रिय हैं। लगभग यही स्थिति देवास
जिले की हाटपिपलिया सीट पर भी बनी हुई है।

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