नए कृषि कानूनों से हुआ प्रदेश की मंडियों को दो अरब रुपए का घाटा

कृषि कानूनों
  • मंडी के नाके फिर से शुरू करने की तैयारी में सरकार

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। नए कृषि कानून भले ही कृषि और किसानों के लिए बेहद मुफीद हों , लेकिन उनकी वजह से प्रदेश की मंडियों की खजाना खाली हो गया है। हालत यह है कि एक साल में ही मंडियों को दो अरब का नुकसान हो चुका है। इस नुकसान की वजह से मंडी कर्मचारियों को वेतन तक के लाले पड़ने लगे हैं।
    मंडियों की लगातार आर्थिक हालत बिगड़ने से उनका संचालन भी मुश्किल होता जा रहा है। प्रदेश सरकार की भी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है ऐसे में सरकार भी मंडियों की मदद करने की स्थिति में नही है। इसकी वजह से अब सरकार ने मंडियों की आय वृद्धि के लिए सालों पहले बंद किए गए 52 नाकों को फिर से शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी है। इस संबंध में मंडी बोर्ड ने प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है। अब इस मामले में उन कानूनों पहलुओं पर विचार किया जा रहा है जिससे कि नए कानून के दायरे से बचा जा सके। उल्लेखनीय है कि प्रदेश की मंडियों से पहले सरकार को एक साल में करीब औसतन 12 सौ करोड़ की आय होती थी, जिसमें इस साल अब तक करीब 18 प्रतिशत यानि की दो अरब रुपए की कमी आ चुकी है। लगातार गिर रही आय से बोर्ड के अफसरों की चिंता बड़ी हुई है। इस आय की पूर्ति के लिए ही उनके द्वारा अब तरह तरह की योजनाएं बनाई जा रही हैं। दरअसल केन्द्र के नए कृषि कानून में यह छूट दी गई है कि किसान अपनी फसल को मंडी से बाहर व्यापारियों को बेच सकते हैं। इसकी वजह से मंडियों की आय में लगातार गिरावट हो रही है। इसकी वजह से किसानों को तो फायदा हो रहा है पर मंडियों में आवक कम होने से उसकी आय में लगातार कमी आ रही है। इसके अलावा एक और बड़ा कारण है मंडी शुल्क में की गई कमी। राज्य सरकार ने पहले मंडी शुल्क दो प्रतिशत फिर डेढ़ रुपए और इसके बाद पचास पैसे प्रति सौ रुपए कर दिया था।
    रिक्त जमीनों पर उद्योग लगाने का भी प्रस्ताव
    इस मामले में सबसे बुरी स्थिति प्रदेश की सी और डी ग्रेड की मंडियों की है। यह वे मंडी हैं जिनमें एक बड़ा भू भाग खाली पड़ा हुआ है। अब इन जमीनों पर  बोर्ड कृषि आधारित उद्योग लगाने की भी योजना तैयार की जा रही है। यह काम केन्द्र की एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत किया जाएगा। प्रदेश में सी वर्ग की 52 और डी वर्ग की 122 कृषि मंडिया हैं। इनमें वेयर हाऊस, कोल्ड स्टोरेज, ट्रेडिंग प्लेटफार्म, दाल, चावल, आटा मिलें आदि स्थापित की जाएगी। इसके लिए मंडी बोर्ड लैंड बैंक बनाने में लगा हुआ है।
    भोपाल मंडी की आय में कोई फर्क नहीं पड़ा
    खास बात यह है कि बीते एक साल में भोपाल मंडी को छोड़ सभी मंडियों की आय में कमी आयी है। इसमें भी खास बात यह है कि भोपाल में मंडी की आय में एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस बीच इंदौर मंडी की आय में तो 36 फीसदी की सर्वाधिक आय में कमी आयी है। इसी तरह से उज्जैन में दस, ग्वालियर में 14, जबलपुर में 20, रीवा में 6 और सागर में 12 प्रतिशत आय घटी है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 259 मुख्य मंडियां हैं। इनके साथ 297 उपमंडियां भी हैं।  इन मंडियों के बंद होने से करीब तीन हजार सुरक्षाकर्मी और एक हजार डाटा एन्ट्री आपरेटर, ग्रेडर और सैंपल की भी नौकरी जा चुकी है।

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