बड़े तालाब में अतिक्रमण करने वाले रसूखदारों पर अफसरों की मेहरबानी

अतिक्रमण

भोपाल/गौरव चौहान /बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी की लाइफ लाइन बड़े तालाब का दायरा लगातार सिमटता जा रहा है, लेकिन अफसरों की नाफरमानी से तालाब के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। बड़े तालाब में अतिक्रमण करने वाले रसूखदारों पर अफसरों की मेहरबानी का ही नतीजा है कि  सरकार की सख्ती के बावजूद अतिक्रमणकारी जमे हुए हैं।
बड़े तालाब में 300 से अधिक अवैध कब्जों में से मात्र 11 कब्जे हटाए गए हैं। यही नहीं अफसरों ने रसूखदारों को बचाने के लिए बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया के कब्जों की फाइलों को ही दबा दिया और विधानसभा में गलत जानकारी भेजी। गौरतलब है कि शहर में हर साल छह करोड़ से अधिक की राशि बड़े तालाब के संरक्षण पर खर्च की जाती है। उसके बावजूद तालाब के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण होता जा रहा है। बताया जाता है कि इसमें नगर निगम के झील संरक्षण प्रकोष्ठ के अधिकारियों की मिलीभगत होती है। यही नहीं नगर निगम के झील संरक्षण प्रकोष्ठ के अधिकारियों की मनमानी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने रसूखदारों को बचाने के लिए बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया के कब्जों की फाइलों को ही दबा दिया और विधानसभा में गलत जानकारी भेजी।
50 मीटर के दायरे में 321 अतिक्रमण
जानकारी के अनुसार बड़े तालाब में हो रहे कब्जों की एक रिपोर्ट नगर निगम के झील संरक्षण प्रकोष्ठ द्वारा पिछले साल एनजीटी में पेश की गई थी। इसमें 11 अवैध कब्जों को सिर्फ हटाने की बात कही गई है। जबकि 300 से अधिक अवैध कब्जे अभी भी बरकरार हैं। वहीं, जिला प्रशासन की 2019 में, कराए गए सर्वे की रिपोर्ट में बड़े तालाब के एफटीएल से 50 मीटर के दायरे में 321 अतिक्रमण चिह्नित किस गए थे। इसमें से सिर्फ 4 कब्जों को हटाया गया था, बाकी की स्थिति जस की तस बनी हुई है। राजनैतिक दबाव में इन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
कैचमेंट में कब्जे का सरकारी रिकॉर्ड लापता
बड़े तालाब का दायरा कम होता जा रहा है। इसकी वजह कैचमेंट एरिया में हो रहे अतिक्रमण हैं। लेकिन साल 1958-59 की खसरा-खतोनी में कैचमेंट एरिया का रिकॉर्ड ही दर्ज नहीं है। यानी बड़े तालाब के कैचमेंट में कब्जे का सरकारी रिकॉर्ड लापता है..। ये जानकारी बीते दिनों 10 मार्च, 2022 को राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत द्वारा विधानसभा में विधायक प्रदीप पटेल द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में दी गई है। बड़ा सवाल ये है कि राज्य सरकार के रिकॉर्ड में जब कैचमेंट एरिया की जानकारी दर्ज नहीं है, तो फिर तालाब के कैचमेंट में 300 से अधिक पक्के निर्माण को अवैध क्यों करार दिया गया है। तालाब के कैचमेंट का दायरा तय करने के लिए जगह-जगह मुनारें लगाई गई हैं, ताकि उसके भीतर कोई भी पक्का निर्माण न हो सके। बावजूद इसके बड़े तालाब पर कई स्थानों पर कब्जा किया गया है।
झील संरक्षण प्रकोष्ठ  मुक दर्शक बना
तालाब के संरक्षण और उसे अतिक्रमणमुक्त बनाए रखने की जिम्मेदारी झील संरक्षण प्रकोष्ठ को है। तकरीबन 40 से अधिक लोगों की फौज इस समय झील संरक्षण प्रकोष्ठ में आराम कर रही है, पर उसको तालाब के आसपास के कब्जे इसलिये नजर नहीं आते हैं क्योंकि वह लेक व्यू फ्रंट के मोह में बिल्डरों को पनपने का मौका दे रहे हैं। यही हाल खानूगांव का है, भौरी का है और कोहेफिजा का है। प्रकोष्ठ से जुड़े अधीक्षण यंत्री संतोष गुप्ता और इंजीनियर आरके गुप्ता की जुगलबंदी नगर निगम की शान पर बट्टा लगा रही है। गौरतलब है कि तीन साल पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार के निर्देश पर तय किया गया था, कि बड़े तालाब से अतिक्रमण हटाने से पहले बिल्डिंग परमिशन की जांच कराई जाएगी। बड़ा तालाब एफटीएल को देखने के लिए डोन से फोटोग्राफी कराई जाएगी। इसके अलावा बड़े तालाब की जद में आने वाले निर्माणों को भी चिन्हित किया जाएगा, लेकिन सरकार बदलते ही सारे काम ठंडे बस्ते में डाल दिए गए। अब सरकारी रिकार्ड के साथ भी छेड़छाड़ कर उसे गायब करा दिया गया है।

Related Articles