पिछले 3 साल से मनरेगा के बजटीय आवंटन में कटौती

  • मध्यप्रदेश में ग्रामीण रोजगार पर चली कैंची
    भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम।
    मनरेगा ग्रामीण रोजगार का सबसे बड़ा साधन है। लेकिन केंद्र सरकार पिछले 3 साल से मनरेगा के बजटीय आवंटन में कटौती कर रही है। इसका असर ग्रामीण रोजगार पर भी पड़ रहा है। अगर मप्र की बात करें तो 3 साल में 4000 करोड़ मनरेगा बजट कम हुआ है। इस कारण मरनेगा के तहत होने वाले कामों के बिल अटके रहे हैं, वहीं 3-4 माह में मजदूरी मिल रही है। यही नहीं ग्रामीण रोजगार के अवसर भी कम हो रहे हैं।
    वित्तीय वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए बजटीय आवंटन में 14 प्रतिशत की कटौती की है। इसे 2023-24 के लिए घटाकर अब 61,032.65 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह 2022-23 के बजट अनुमान 72034.65 करोड़ रुपए से 14 फीसदी कम है। इससे राज्यों के बजट आवंटन में भी कटौती की गई है। आलम यह है की मप्र में पिछले 3 सालों में मनरेगा का बजट लगातार घटकर 9000 करोड़ से 5000 करोड़ रह गया है। योजना के तहत जनरेट हुए मानव दिवस (मजदूरी के दिन) की संख्या भी लगातार कम हुई है। मजदूरी और बिलों का भुगतान समय पर नहीं होने से सरपंचों में नाराजगी बढ़ रही हैं।
    गांवों में रोजगार की लाइफलाइन है मनरेगा
    बता कें केंद्र की ओर से चलाई जाने वाली योजनाओं में बजट कटौती से सबसे ज्यादा असर मनरेगा पर देखने को मिलेगा जहां, ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा को गरीबों के जीवन यापन और रोजगार का अहम साधन माना जाता है। वहीं मनरेगा के बजट में की गई कटौती का असर अब मप्र को मिलने वाले हिस्से पर भी पड़ेगा। मनरेगा में इस साल केंद्र से 5081 करोड़ का बजट मिला था, वही बजट यूटिलाइजेशन 108 प्रतिशत रहा। 19 राज्यों में बजट ओवरशूट देखने को मिला है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह मनरेगा योजना पर पड़ रहे दबाव को दिखता है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक श्रम क्षेत्र में अधिक मांग होने पर बजट ओवरशूट हो जाता है।
    मजदूरी का भुगतान 3-4 महीने में
    मनरेगा पोर्टल में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 99.82 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान आधार लिंक्ड खातों से 15 दिन में एक्ट के मेंडेट अनुसार हो रहा है लेकिन राष्ट्रीय सरपंच संघ के प्रदेश अध्यक्ष निर्भय सिंह यादव की मानें तो मजदूरी का भुगतान अनियमित रूप से 3-4 महीने में हो रहा है। कभी 1 माह की मजदूरी आ जाती है कभी दो की निर्माण सामग्री, डंपर आदि वाहनों से संबंधित बिल का भुगतान 1-3 सालों से अटका है। सरपंच संघ के मुताबिक हेल्पलाइन 181 भी लंबे समय से मनरेगा निर्माण कार्यों के बारे में असत्य शिकायत करने का जरिया बन चुकी हैं। शिकायतों की सत्यता जांचने का कोई मैकेनिज्म संघ के मुताबिक मौजूद नहीं है। निर्भय सिंह यादव का कहना है कि हम लगातार शिकायत कर रहे हैं लेकिन सरकार इन समस्याओं पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही। अब जल्द ही संघ प्रदेश भर में आंदोलन करेगा।
    लगातार घट रहा मानव दिवस
    महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना देश भर के ग्रामीण परिवार को हर वित्तीय वर्ष में 100 दिनों का वेतन आधारित रोजगार प्रदान करती है। मनरेगा को 2005 में संसदीय अधिनियम के माध्यम से पेश किया गया था, और महिलाओं के लिए एक तिहाई ग्रामीण नौकरियों को निर्धारित किया गया था। वर्षों से, लाखों ग्रामीण परिवारों ने इसके माध्यम से रोजगार प्राप्त किया है। कोरोना काल के दौरान भी लाखों प्रवासी श्रमिकों को इसके तहत काम मिला था, जब वह अपने मूल स्थानों पर लौटने के लिए मजबूर हुए थे। 2020-21 और 2021-22 में कोविड काल में प्रदेश में 34.20 करोड़ और 29.99 करोड़ मानव दिवस जनरेट हुए, वहीं इस साल अब तक 21.64 करोड़ मानव दिवस ही जनरेट हुए हैं। हालांकि इस चुनावी साल में कहीं अधिक काम शुरू हुए हैं।

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