बुंदेलखंड में तेजी से शुरू हुआ पलायन, कई गांवों में पसरने लगा सन्नाटा

 पलायन
  • रोजगार के साधनों का का बना हुआ है अभाव

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। खनिज संपदा और औषधीय पौधों से परिपूर्ण प्रदेश का बुंदेलखंड अंचल सरकारी व प्रशासनिक उपेक्षा की वजह से दरिद्रता के भंवर में ऐसा फंसा की लोगों को दो जून की रोजी रोटी के लिए अपना घरवार छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यही वजह है की पंचायत चुनाव के समय राजनैतिक वजहों से गुलजार हुए इस अंचल के तमाम गांव अब तेजी से वीरान होना शुरू हो गए हैं।  इनमें सागर, टीकमगढ़ , छतरपुर , पन्ना, दमोह जैसे जिले शामिल हैं। इसकी वजह से ही  इन जिलों के रेलवे स्टेशनों पर इन दिनों 24 घंटे पलायन करने वाले लोगों की भीड़ देखी जा सकती है। यही वजह है की अब अधिकांश गांवों के घरों में ताले लटके हुए दिखना शुरू हो गए हैं। पलायन के बाद इन गांवों में महज कुछ लोग ही रह जाते हैं जो पलायन करने वाले लोगों के पालतू जानवर देखने से लेकर सूने घरों की रखवाली का काम करते हैं। यही नहीं किन घरों के लोगों ने पलायन किया है उसकी पहचान करना बेहद आसान होता है। इसकी वजह है, जब मजदूर घर छोड़ते हैं तो वे घरों के बरामदे में पत्थरों की दीवार उठा देते हैं। इससे उनके घर सुरक्षित रहते हैं। दमोह जिले के हटा ब्लॉक के मडियादो क्षेत्र व तेंदूखेड़ा ब्लॉक के अनेक गांवों में ऐसे घर मिल जाएंगे, जिनके दरवाजे पत्थरों से ढंके हुए हैं। यह लोग मुबंई, दिल्ली , फरीदाबाद, नोएडा और गुजरात के तमाम बड़े शहरों में मजदूरी की तलाश में जाते हैं। इसके बाद बीच-बीच में उनके परिजन गांव आकर जरुरी काम निपटाने के बाद फिर लौट जाते हैं। पलायन की वजह से इन दिनों तमाम रेलवे स्टेशनों पर मजदूरों और उनके परिजनों की भीड़ देखी जा सकती है।
    इस तरह के प्रयासों का अभाव
    इस अंचल में पलायन रोकने के लिए सरकारी स्तर पर रोजगार देने वाली योजनाएं बनाकर उन पर अमल किया जाना चाहिए। मनरेगा का काम जरूरतमंद हाथों को हर हाल में मिल सके , इसके भी संजीदगी से प्रयास होने चाहिए। इलाके में नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जा सकते हैं। इससे रोजगार की उपलब्धता बढ़ेगी। कई नई सिंचाई परियोजनाएं शुरू की जा सकती हैं , जिससे की खेती के लिए पानी की उपलब्धता हो सके।  इस अंचल में नए कारखानों का अभाव बना हुआ है। पुरानी बड़ी औद्योगिक इकाईयां भी बंद होती जा रही हैं। दरअसल सरकार के पास इलाके की सबसे बड़ी समस्या पलायन रोकने की कोई ठोस योजना नही है। सिंचाई सुविधा और औद्योगिक अभाव में रोजगार की समस्या बनी रहती है, जिसकी वजह से बुंदेलखंड के लोग महानगरों के लिए पलायन करने को मजबूर बने रहते हैं।
    यह है पलायन का आंकड़ा
    कोरोना काल के समय पलायन के आंकड़ों का खुलासा हुआ था। अगर उन आंकड़ों पर भरोसा करें तो दमोह में ही 1 लाख 1 हजार 768 प्रवासी मजदूर हैं। इसी तरह से छतरपुर जिले के 1210 गांवों में से 800 गांव पलायन प्रभावित हैं। इन गांवों के करीब लगभग 80 हजार प्रवासी मजबूर हैं। इनमें से चुनाव के बाद लगभग 50 हजार लोग पलायन कर चुके हैं। टीकमगढ़ जिले से हर साल लगभग दो लाख लोग और सागर जिले से करीब डेढ़ लाख लोग चुनाव बाद से पलायान कर चुके हैं। छतरपुर जिले में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर प्रवासी मजदूर परिवार व गृहस्थी के सामान के साथ बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। गांव से बोरिया बिस्तर समेटकर रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन का ये सिलसिला त्योहारों के बाद हर साल नजर आता है, लेकिन 7 साल बाद हुए पंचायत चुनाव के बाद भारी भीड़ पलायन कर रही है।

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