…वरना हो जाती बिजली उपभोक्ताओं से 130 अरब रुपए की धोखाधड़ी

बिजली उपभोक्ताओं

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में पहले से ही शामिल है, जहां पर देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिजली सबसे अधिक महंगी है। इसके बाद भी बिजली कंपनी के कर्ताधर्ता लगातार बिजली उपभोक्ताओं की जेब काटने की रणनीति बनाते रहते हैं। हाल ही में इन कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं के साथ 130 अरब की धोखाधड़ी करने की पूरी तैयारी कर ली गई थी, लेकिन भला हो विद्युत नियामक आयोग का कि उसने इस धोखाधड़ी के प्रयास को पकड़ कर बिजली कंपनियों की मंशा पर पूरी तरह से पानी फेर दिया। दरअसल बिजली कंपनियां कुप्रबंधन का शिकार हैं। इसकी वजह से अरबों रुपए खर्च किए जाने के बाद भी न तो लाइन लॉस कम हो पा रहा है और न ही प्रबंधन गैर जरुरी खर्च करने में सफल हो रही है। इसकी वजह से कंपनियों को बड़ा घाटा हो रहा है।
इस घाटे की भरपाई कंपनी प्रबंधन द्वारा ईमानदार उपभोक्ताओं की जेब पर भार डालने का सरल तरीका खोज लिया गया है। यही वजह है कि बिजली कंपनियां लगातार सिर्फ बिजली दर में वृद्धि के प्रयासों में लगी रहती हैं। इसके लिए इन कंपनियों द्वारा तरह-तरह की चालबाजियां चलाई जाती हैं। दरअसल हाल ही में बिजली कंपनियों ने राज्य विद्युत नियामक आयोग को धोखे में रखकर 130 अरब रुपए की वसूली की योजना बनाई थी। यह वो राशि है जिसे केन्द्र सरकार द्वारा पहले ही भुगतान किया जा चुका है। कंपनियों ने आयोग को दिए दर वृद्धि के प्रस्ताव में इस राशि का केन्द्र से मिलने का उल्लेख तक नहीं किया था। यह जानकारी सामने आने के बाद न केवल नियामक आयोग ने इस पर नाराजगी जाहिर की, बल्कि कंपनियों के छह फीसद वृद्धि को भी ठुकरा दिया।
यह होता है टुअप प्लान
बिजली कंपनियां आमदनी व खर्च के अंतर के हिसाब से बिजली दर वृद्धि के लिए नियामक आयोग को प्रस्ताव देती हैं। इसके बाद आयोग आंकलन कर दर वृद्धि को मंजूरी प्रदान करता है। इसके बाद कंपनियां मंजूर टैरिफ के आधार पर राशि की वसूली करती हैं। यह लेखा-जोखा कंपनियों द्वारा पूरे साल की वसूली के बाद तैयार किया जाता है। इसे ही टुअप कहा जाता है।  इसमें कंपनियां लगभग हर साल घाटा बताती हैं।
यह हाल हैं कंपनियों के: प्रदेश में बिजली कंपनियों ने घाटे के लिए ऐसा चक्रव्यूह बना रखा है कि जिसे समाप्त करने के तमाम प्रयास असफल साबित हो रहे हैं।
2003 में घाटे को खत्म करने बिजली बोर्ड को भंग कर कंपनियों का गठन किया गया था , पर घाटा तो कम नहीं हुआ बल्कि वह साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। हालत यह है कि हर साल औसतन रुप से यह कंपनियां 3 से 4 हजार करोड़ घाटे की जानकारी विद्युत नियामक आयोग को देती हैं। खास बात यह है कि सरकार द्वारा इन कंपनियों का घाटा समाप्त करने के लिए  21 हजार करोड़ से अधिक की सब्सिडी और सालाना 6 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज दिए जाने के बाद भी इनका घाटा समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
इस तरह से बढ़ता गया घाटा: जितनी दवा की गई उतना ही मर्ज बढ़ता गया जैसे हाल बिजली कंपनियों के हैं। दो दशक पहले वर्ष 2000 में विद्युत मंडल का घाटा 2100 करोड़ और दीर्घकालीन कर्ज करीब 4892.6 करोड़ था , जो  2014-15 में घाटा 30 हजार 282 करोड़ और दीर्घकालीन कर्ज बढ़कर 34 हजार 739 करोड़ से अधिक हो गया था।
इसी तरह से बीते साल तक इन कंपनियों का घाटा 40 हजार करोड़ से अधिक हो चुका है। खास बात यह है कि इन कंपनियों को घाटे से उबारने के प्रयासों में प्रदेश सरकार भी कर्जदार बन चुकी है। सरकार बिजली कंपनियों को 21 हजार करोड़ से ज्यादा की सब्सिडी देती है। इसके अलावा 4 साल पहले प्रदेश सरकार  कंपनियों का करीब 26 हजार करोड़ का घाटा केंद्र की योजना के तहत खुद वहन कर चुकी है।
इस तरह से  समझें
बिजली कंपनियों द्वारा 2014 -15 से 2018 -19 तक का अलग-अलग टुअप प्लान आयोग को भेजे गए थे। इसके तहत लगभग 24 हजार करोड़ तक की वसूली की मांग के लिए अनुमति मांगी गई थी। इसके लिए कंपनियों ने आमदनी और खर्च में वास्तविक अंतर बताया था। आयोग ने इस अंतर की राशि में से करीब 13 हजार करोड़ रुपए को  वसूली लायक माना , लेकिन जैसे ही आयोग ने इस मामले के दस्तावेज खंगाले तो पता चला कि यह 130 अरब की राशि तो बिजली कंपनियां केंद्र से उदयपुर प्रोजेक्ट  के तहत पहले ही ले चुकी हैं। खास बात यह है कि अगर नियामक आयोग अपने स्तर पर अतिरिक्त रूप से दस्तावेजों की जांच पड़ताल नहीं करता तो इस 130 अरब की राशि की वसूली उपभोक्ताओं से कर लेती। इस तरह से कंपनियों द्वारा इस राशि की डबल वसूली की तैयारी कर ली गई थी। अगर ऐसा होता तो प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं पर औसतन 6 फीसदी तक की दर वृद्धि का बोझ बढ़ जाता।
बिजली चोरी रोकने में नहीं रुचि
दरअसल बिजली कंपनियों को सबसे अधिक लाइन लॉस का नुकसान बिजली चोरी के रुप में उठाना पड़ता है। इन बिजली चोरों पर कंपनियां कभी भी कोई प्रभावी कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाती है। हालत यह है कि राजधानी में ही कई बस्तियां ऐसी हैं , जो पूरी तरह से चोरी की बिजली से खुलेआम रोशन रहती हैं, लेकिन मजाल है कि उनमें रहने वाले उपभोक्ताओं पर कार्रवाई की जाए। दरअसल इस तरह की बस्तियों के बिजली चोरों को राजनैतिक संरक्षण भी मिला रहता है।
किस साल में कितना बताया घाटा
वर्ष राशि
2014-15 में 5156.88 करोड़ रुपए
2015-16 में 7156.94 करोड़ रुपए
2016-17 में 7247.55 करोड़ रुपए
2017-18 में 5327.54 करोड़ रुपए
2018-19 में 7053.00 करोड़ रुपए
2020-21 में 2000 करोड़ लगभग
कब कितनी की गई घाटे के नाम पर दर वृद्धि  
वर्ष दर वृद्धि (प्रति. में)
2010-11 10.65
2011-12 6.14
2012-13 7.17
2013-14 0.77
2014-15 00
2015-16 9.83
2016-17 8.39
2017-18 9.98
2018-19 00
2019-20 7.0
2020-21 1.98
2021-22 0.63

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