अनुसूचित जनजाति कल्याण के नाम पर एनजीओ हो रहे मालामाल

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भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र और प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में अनुसूचित जनजाति वर्ग सबसे ऊपर है। इस वर्ग के लिए सरकार ने योजनाओं की भरमार कर रखी है। लेकिन स्थिति यह है की अनुसूचित जनजाति कल्याण को मिले बजट से एनजीओ मालामाल हो रहे हैं, लेकिन लाभार्थियों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। पिछले पांच वर्ष में एनजीओ के जरिए आदिवासी कल्याण के 175 प्रोजेक्ट पर 33 करोड़ 48 लाख का बजट खर्च किया गया है। अभी आदिवासी कल्याण के 26 प्रोजेक्ट पर 14 एनजीओ काम कर रहे हैं, जिन्हें 5.62 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, अनुसूचित जनजाति कल्याण के लिए एनजीओ को अनुदान देने में वर्ष 2021-22 में ओडिशा सबसे आगे रहा। यहां 24 करोड़ 24 लाख 81 हजार का बजट दिया गया। इससे शिक्षा में 11329 और स्वास्थ्य में 14592 को लाभ मिला। दूसरे स्थान पर मध्यप्रदेश ने 11 करोड़ रुपए आवंटित किए। इससे शिक्षा के क्षेत्र में 2468 लोगों को लाभ मिला। स्वास्थ्य में एक रुपया तक खर्च नहीं हुआ।
करोड़ों बांटने के बाद भी स्थिति जस की तस: अब तक करोड़ों रुपए देश-प्रदेश के एनजीओ और अरबों रुपए विभिन्न योजनाओं में जनजाति समुदाय पर खर्च करने के बावजूद भी कई गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। वहां विकास के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं है। प्रदेश में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के विकास के लिए मिले बजट को सरकार खर्च भी नहीं कर पाई है, लेकिन एनजीओ को मालामाल करने का सिलसिला जारी है। अनुसूचित जनजाति कल्याण के नाम पर एनजीओ को बजट देने में मप्र पिछले साल देश में दूसरे स्थान पर था, जबकि लाभार्थियों की संख्या में बाकी राज्यों से काफी पीछे है करोड़ों रुपए बांटने के बाद भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में आदिवासी समाज के लाभार्थियों की संख्या प्रदेश में जीरो है।
अपात्रों को बांट दिए 74 करोड़
हैरत की बात यह है कि जिन राज्यों ने एनजीओ को मध्यप्रदेश से काफी कम अनुदान दिया, वहां लाभार्थियों की संख्या यहां से कई गुना अधिक हैं। मेघालय सरकार ने करीब पौने आठ करोड़ का अनुदान इन संस्थाओं को देकर स्वास्थ्य व शिक्षा में 95174 को लाभान्वित किया। झारखंड ने 7 करोड़ के अनुदान में 61 हजार, आंध्रप्रदेश ने डेढ़ करोड़ के अनुदान में 16500, केरल ने 1.42 करोड़ का अनुदान देकर स्वास्थ्य में 75592 लोगों को लाभान्वित किया है। विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीजीटी) में वर्ष 2019-20 में प्राप्त 12064 लाख में से 18098 खर्च किए गए हैं, लेकिन वर्ष 2021-22 में जारी 2188 लाख और वर्ष 2021-22 में जारी 2888 लाख का बजट खर्च ही नहीं हुआ। पिछले पांच वर्ष में केन्द्र की ओर से इस मद में प्राप्त 443.25 करोड़ में से 303.39 का हिसाब भी राज्य सरकार नहीं दे पा रही है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016-17 में मध्यप्रदेश के पात्र जनजातियों के लिए पीवीजीटी योजना के तहत जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने आवंटित 74 करोड़ रुपए की राशि अपात्र और गैर जनजातियों के बीच बांटने का मामला चर्चा में रहा था।

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