प्रदेश में छोटी सी बात पर हो रहे तलाक

 मप्र

कोर्ट के कूलिंग पीरियड को भी करा दे रहे माफ…

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में छोटे-मोटे झगड़ों के कारण तलाक के मामले बढ़े हैं। 2021 की तुलना में 2022 में  तलाक और भरण-पोषण के मामले दोगुने हो गए हैं। आलम यह है कि कोरोना काल ने जिन परिवारों को फिर एक सूत्र में पिरोया था, अब वे फिर अलग-अलग होने पर आमादा है। छोटे-छोटे झगड़े की वजह से पति और पत्नी साथ नहीं रहना चाहते हैं। ऐसे में दोनों तलाक के लिए आवेदन देते हैं। इसमें काउंसलिंग की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट से डिक्री पारित होती है। तलाक के कई मामलों में पति और पत्नी कोर्ट द्वारा छह माह तक दिए जाने वाले कूलिंग पीरियड को भी माफ करा लेते हैं।
जानकारों का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद बढ़ा तनाव परिवारों तक पहुंच गया है। आर्थिक तंगी के कारण भी कई परिवारों के बीच बिखराव आने लगा है। विवादों का मुख्य कारण दंपती के बीच सहनशीलता की कमी, इंटरनेट मीडिया का इस्तेमाल,अविश्वास और स्वजन का बढ़ता दखल है। कुटुंब न्यायालय में पहुंच रहे मामले खुलासा करते हैं कि भोपाल में इस साल हर दिन आठ से 10 परिवार टूटने की कगार पर पहुंचे हैं। वहीं अन्य तीन बड़े शहरों की स्थिति भी कमोबेश यही है। इंदौर में जहां यह आंकड़ा 12 मामले हर दिन का है। वहीं जबलपुर में छह और ग्वालियर में करीब पांच प्रकरण हर दिन आ रहे हैं। चारों बड़े शहरों में इंदौर पहले और भोपाल दूसरे नंबर पर है।
कुटुंब न्यायालय में दोगुनेबढ़ गए मामले
कुटुंब न्यायालय में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में मामले दोगुने बढ़ गए हैं। तलाक व पति-पत्नी को बुलाने के मामले में सबसे ज्यादा केस इंदौर में 2250 और भरण-पोषण के 1598 केस दर्ज हुए हैं। तलाक के केसों को लेकर भोपाल दूसरे, ग्वालियर तीसरे और जबलपुर चौथे नंबर पर है। कुटुंब न्यायालय में पति-पत्नी की काउंसलिंग करने वाले  काउंसलरों का मानना है कि पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल, अविश्वास, झगड़े तलाक की वजह बन रहे हैं। केसों के साथ न्यायाधीश भी बढ़ गए हैं। 2016 के पहले कुटुंब न्यायालय में एक ही न्यायाधीश सुनवाई करता था। ये झगड़े जब दोनों परिवारों से नहीं सुलझ सके तो उन्होंने न्यायालय का रुख किया। केसों की संख्या में इजाफा होता गया है। वर्तमान में ग्वालियर, जबलपुर में 3-3 और इंदौर, भोपाल में 4-4 न्यायाधीश केसों की सुनवाई रहे हैं।
विवाद के अजीबो-गरीब कारण
कोविड काल के दौरान नौकरियां छूटने, व्यापार बंद होने से कई परिवार आर्थिक तंगी से परेशान हुए हैं।  ऐसे में परिवार के बीच तनाव होना आम बात हो गई है। इसके साथ ही आजकल दंपती के बीच सामंजस्य की कमी है। उनके बीच अहंकार आड़े आने लगा है। दोनों में से कोई भी सामंजस्य बैठाने को तैयार नहीं होता। वहीं संयुक्त परिवार की भूमिका भी नहीं रही। इनके अलाव पति उन्हें बाहर घुमाए, खुलापन प्रदान करे, उनके शौक पूरा करे, लेकिन खर्चों की पूर्ति के लिए पति की आय नहीं होती है। मोबाइल की वजह से एक-दूसरे को समय नहीं दे पाना, पति-पत्नी के बीच दूरी का बड़ा कारण है। सहन शक्ति कम होना। यदि परिवार में कोई कुछ कहता है तो तत्काल अपनी मां को फोन किया जाता है। उनके हस्तक्षेप से मामला और बढ़ जाता है। संयुक्त परिवार में खाना बनाने को लेकर अधिक विवाद हैं। घरेलू काम करना नहीं चाहती हैं। अलग रहने पर भी खाने को लेकर विवाद हो रहे हैं। कुटुंब न्यायालय के काउंसलर हरीश दीवान का कहना है कि छोटी-छोटी बातें बड़ी बन रही है। एक-दूसरे के बारे में भी नहीं सोचते। पति-पत्नी के बीच अविश्वास, आपसी तालमेल, सहनशीलता का अभाव देखने को मिल रहा है, इसलिए झगड़े होते हैं और झगड़े इतने बढ़ जाते हैं कि तलाक की नौबत आ जाती है। तलाक के लिए एक कारण लड़की के माता-पिता का ब्लाइंड सपोर्ट भी है। काउंसलिंग के जरिए 10 में से 6 केस में पति-पत्नी अपनी गलतियों को मान लेते हैं और नए सिरे से जिंदगी शुरू करते हैं।

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