मप्र में स्वास्थ्य सेवाएं वेंटिलेटर पर

  • सरकार की योजनाएं नहीं हो पा रहीं सफल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। लेकिन योजनाएं सफल नहीं हो पा रही है। आलम यह है कि सरकार ने सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी)पर भी जोर दिया है, लेकिन उसका असर होता नजर नहीं आ रहा है। जिससे स्वास्थ्य सेवाएं वेंटिलेटर पर हैं।
ऐसे में बड़े जिलों को छोड़ दें तो अन्य जगह लोगों को बड़ी स्वास्थ्य सुविधाएं देना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। प्रदेश में कई सुविधाएं आउटसोर्स पर जा चुकी हैं। मेडिकल कालेज, जिला अस्पताल और सीएचसी-पीएचसी में जांच सुविधाएं आउटसोर्स पर हैं। वहीं प्रयोग के तौर पर कुछ सीएचसी, पीएचसी और सिविल अस्पताल को पीपीपी मोड पर संचालित करने के लिए सरकार निर्णय ले चुकी है। जानकारों का कहना है कि बजट की कमी के चलते सरकार खुद सुविधाएं शुरू करने की जगह सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल अपनाने पर जोर दे रही है। इसके बाद भी लोगों को राहत नहीं मिल पा रही है। इस संदर्भ में स्वास्थ्य अधिकार मंच मप्र के संयोजक अमूल्य निधि का कहना है कि  देश में प्रदेश में कहीं भी आज तक पीपीपी मॉडल सफल नहीं रहा है।  स्वास्थ्य अत्यावश्यक सेवा है। सरकार को खुद उपलब्ध कराना चाहिए। बीपीएल हो या एपीएल सभी को निशुल्क उपचार मिलना उसका अधिकार है। राजस्थान सहित कई राज्यों में सभी सेवाएं बिना शुल्क दी जा रही हैं। सरकार के प्रयास इस दिशा में सही होते तो शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और अन्य सूचकांकों में प्रदेश की बुरी स्थिति नहीं होती। अन्य स्वास्थ्य सूचकांक भी नहीं सुधर रहे हैं।  निजी निवेशक जितना कमा कर जा रहे हैं उतने से कई गुना कम में सरकार खुद सेवा दे सकती है।
 सरकार का पीपीपी पर जोर
गौरतलब है कि इसी माह स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा और उसके दो दिन बाद पीएम श्री एयर एंबुलेंस सेवा की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव खुद बोल चुके हैं कि जहां अस्पताल नहीं हैं, वहां पीपीपी से प्रयास किए जाएं। एक बैठक में उन्होंने यह भी कहा था कि जो अस्पताल हम नहीं चला पा रहे हैं, उन्हें पीपीपी से संचालित करना चाहिए। उधर, निजी निवेशकों को निवेश लाभ का धंधा नहीं लग रहा है, जिससे वे रुचि नहीं ले रहे हैं। इस तरह रोगियों को न तो पीपीपी से सुविधा मिल पा रही है न ही सरकार दे पा रहे हैं। हाल यह है कि कैंसर जैसी बीमारी के उपचार की भी पर्याप्त सुविधाएं सरकार रोगियों को नहीं दे पा रही है।  कैंसर की सिकाई (रेडिएशन) के लिए लीनियर एक्सीलेरेटर (लीनैक) मशीन किसी भी सरकारी अस्पताल में नहीं है। लगभग पांच वर्ष पहले पीपीपी से यह मशीनें लगाने के लिए निविदा जारी की गई, जिसे बाद में रद कर दिया गया। इसके बाद अब  सरकार ने खुद कुछ बड़े कॉलेजों में लीनैक लगाने के लिए टेंडर किया, पर उसे भी रद कर दिया गया। चिकित्सा शिक्षा विभाग पिछले आठ साल से यह सुविधा देने की योजना बना रहा है, पर रोगियों को लाभ आज तक नहीं मिला।
अस्पतालों में कई जरूरी सुविधाएं नहीं
प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं कैसी हैं इसका आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि अस्पतालों में कई जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। इनमें एमआरआई मशीन जरूरी हैं। हड्डी रोगों के अतिरिक्त कैंसर, हार्ट और फेफड़े की गंभीर बीमारियों में कई बार तुरंत एमआरआई जांच की आवश्यकता होती है। इंदौर, भोपाल जैसे कुछ बड़े मेडिकल कॉलेज छोड़ दें तो बाकी में एमआरआइ मशीन न तो सरकार ने लगाई न पीपीपी मोड में लगी। छोटे जिलों के अस्पतालों में मरीज कम होने से निजी निवेशक भी आगे नहीं आते। इंदौर, भोपाल में पीपीपी से मशीनें चल रही हैं तो यहां के लिए सरकार भी खरीद रही है। वहीं निजी मेडिकल कालेज ऐसी ही स्थिति पीपीपी से निजी कॉलेज खोलने की है। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने 12 जिलों में पीपीपी से मेडिकल कॉलेज खोलने के निर्देश दिए हैं। नीति भी बन चुकी है। इसमें निवेशक को एक रुपये की लीज पर 25 एकड़ जमीन दी जाएगी। दो बार की निविदा में किसी निवेशक ने रुचि नहीं ली। अब तीसरी बार निविदा जारी की गई है जो दो मई को खुलेगी। इसमें सामने आएगा कि कालेज खोलने के लिए निवेशक रुचि ले रहे हैं या नहीं।

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