- संगठन चुनाव में भाजपा ने बदली रणनीति
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में आगामी दिनों में संगठन का चुनाव होना है। पिछले कुछ साल से युवा नेतृत्व पर फोकस करने वाली भाजपा ने अब संगठन चुनाव की रणनीति में बदलाव किया है। इसके तहत इस बार भाजपा प्रदेश से लेकर मंडल तक गठित होने वाले संगठन में युवाओं के साथ ही अनुभवी नेताओं को भी महत्व देगी। इसके पीछे पार्टी की मंशा है कि युवा और अनुभव के संगम से संगठन मजबूत होगा। यानी पार्टी इस बार मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक के पदों के लिए आयु सीमा का कोई बंधन नहीं रख रही है। दरअसल, मप्र में वर्ष 2020 में हुए संगठन चुनाव में भाजपा ने मंडल अध्यक्षों के लिए 35 और जिलाध्यक्षों के लिए 50 वर्ष तक की आयु सीमा तय कर दी थी। इसके चलते पार्टी के कई अनुभवी और पुराने कार्यकर्ता संगठन से बाहर हो गए थे। पार्टी ने यह प्रयोग संगठन में पीढ़ी परिवर्तन के लिए किया था। बाद में पार्टी को यह अहसास हुआ कि अनुभवी कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग अपनी उपेक्षा के कारण नाराज हो गया था। पार्टी में अनुभवी नेताओं को महत्व देने का संकेत 2023 के विधानसभा चुनाव में ही दे दिया गया था। उल्लेखनीय है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2023 से ही आयुसीमा का बंधन समाप्त कर दिया था। मध्य प्रदेश में भाजपा से 11 ऐसे विधायक निर्वाचित हुए हैं, जिनकी आयु 70 से 80 वर्ष तक की है। इससे आशय साफ है कि भाजपा अब संगठन चुनाव में भी उम्र सीमा लागू कर कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती है।
वर्ष 2023 में विधानसभा चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे 70 पार भाजपा विधायक नागेंद्र सिंह नागौद (80) नागेंद्र सिंह (79), जयंत मलैया (76), जगन्नाथ सिंह रघुवंशी (75), सीताशरण शर्मा (73), बिसाहूलाल सिंह (73), हजारीलाल दांगी (72), प्रेमशंकर वर्मा (72), जयसिंह मरावी (71) और गोपाल भार्गव (71) अजय विश्नोई (71) हैं। भाजपा ने यह संकेत दे दिया था कि पार्टी में अनुभवी नेताओं का महत्व और सम्मान कम नहीं होगा। भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2023 से ही आयु सीमा का बंधन समाप्त कर दिया था। मध्य प्रदेश में भाजपा से 11 ऐसे विधायक निर्वाचित हुए हैं, जिनकी आयु 70 से 80 वर्ष तक की है।
जोखिम उठाना नहीं चाहती पार्टी
भाजपा अब संगठन चुनाव में भी उम्र सीमा लागू कर कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती है। अब सदस्यता अभियान आरंभ होते ही मंडल अध्यक्ष के लिए जमावट शुरू हो गई है। भाजपा युवाओं के साथ इस बार संगठन में अपने अनुभवी और बुजुर्ग नेताओं को भी मौका देना चाहती है। पार्टी युवाओं के जोश और बुजुर्गों के अनुभव का समायोजन कर संगठन को मजबूती देना की कोशिश में है। भाजपा ने 2020 में पीढ़ी परिवर्तन कर युवाओं को संगठन में मौका देकर पीढ़ी परिवर्तन का संकल्प पूरा किया था। इस कारण मंडल में 35 वर्ष और 50 की उम्र आयु वाले ही जिला अध्यक्ष बन पाए थे। इनमें से कुछ तो भाजपा के लिए बेहद उपयोगी रहे और कुछ को राजनीतिक अनुभव ना होने से चुनाव में पार्टी को संकट भी झेलना पड़ा।
युवा व अनुभव का समायोजन चाहती है भाजपा
भाजपा अब पांच साल बाद हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखते हुए उम्र बंधन के बजाए मिला-जुला प्रयोग करना चाहती है। पार्टी चाहती है कि अब संगठन चुनाव में युवा और बुजुर्ग, लेकिन अनुभवी का समन्वय के साथ समायोजन किया जाए। दरअसल, भाजपा ने 1990 के बाद 2020 में पीढ़ी परिवर्तन की शुरुआत की थी। पार्टी ने युवाओं को तो जोड़ लिया, लेकिन पुराने चेहरों को लेकर असमंजस में है। युवाओं को मौका देने के बाद अब पुराने दिग्गजों का समायोजन पार्टी के लिए चुनौती बना हुआ है। पार्टी का अब तक का अनुभव अच्छा भी रहा और कुछ जगह पुराने नेताओं के सामने नए नेतृत्व को काम करने में व्यावहारिक रूप से मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। दूसरी परेशानी ये भी है कि युवाओं को कमान देने से परिवारवाद की उपेक्षा से भी कई दिग्गज परेशान हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से समन्वय की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। आने वाले संगठन चुनाव में उनके समर्थकों को भी जिले की कार्यकारिणी में अवसर देना भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण बन सकता है। इसे भांपते हुए संगठन हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है।
मौजूदा नेतृत्व कर चुका 60 की सीमा पार
मौजूदा नेतृत्व चाहे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल हों, सभी साठ की उम्र पार कर चुके हैं। पूर्व सीएम उमा भारती से लेकर मोहन कैबिनेट के ज्यादातर सदस्य पार्टी में 30 से 35 साल की उम्र में सक्रिय हुए थे। पार्टी ने सरकार में मोहन यादव का नया चेहरा तो दे दिया, लेकिन संकट यह है कि युवाओं में नया नेतृत्व प्रदेश में पनप नहीं रहा है। पार्टी ने नए नेतृत्व के लिए संगठन में पीढ़ी परिवर्तन तो कर लिया, लेकिन चुनावी राजनीति में वटवृक्षों के चलते पार्टी नई पीढ़ी को आगे नहीं ला पाई।