6 दिन में ही सिमट गया बजट सत्र

  • मप्र विधानसभा में 5 साल में कम होती गई सत्रों की अवधि
  • विनोद उपाध्याय
बजट सत्र

संसद हो या विधानसभा, जनता के मुद्दों पर चर्चा, सवाल-जवाब और फिर निर्णय पर पहुंचना ही आदर्श संसदीय व्यवस्था है, लेकिन अब स्थितियां बदलती जा रही हैं। विधानसभा सत्रों में चर्चा के नाम पर हंगामा, विरोध और फिर कार्यवाही का स्थगन। बीते कई वर्षों में यही चिंताजनक ट्रेंड मध्य प्रदेश विधानसभा में दिखाई दे रहा है। मप्र की 16वीं विधानसभा के बजट सत्र में नौ बैठकों के साथ 13 दिन चलने वाली कार्यवाही 5 दिन पहले ही खत्म हो गई। जारी अधिसूचना के अनुसार इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा का सत्र 7 फरवरी से 19 फरवरी तक का था, लेकिन इसे 14 फरवरी की कार्यवाही के साथ स्थगित कर दिया गया। यह पहला मौका नहीं, जब मप्र विधानसभा का सत्र निर्धारित अवधि से पहले स्थगित किया गया। मप्र में पांच वर्षों से विधानसभा सत्र की अवधि सिमटती जा रही है। 15वीं विधानसभा में कोई भी सत्र पूरे दिन नहीं चला। वहीं 16वीं विधानसभा का पहला सत्र महज शपथ ग्रहण की औपचारिकता के लिए था। जबकि 7 फरवरी से शुरू हुआ बजट सत्र पूरे समय तक नहीं चल पाया। विधानसभा सत्रों में चर्चा के नाम पर हंगामा, विरोध और फिर कार्यवाही का स्थगन। बीते कई वर्षों में यही चिंताजनक ट्रेड मप्र विधानसभा में दिखाई दे रहा है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मप्र विधानसभा में हाल में हुए प्रबोधन कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सत्र की अवधि छोटे होने को लेकर चिंता जाहिर करते हुए लंबी अवधि के सत्र आयोजित किए जाने की बात कही थी, लेकिन मप्र विधानसभा में 13 दिन का बजट सत्र निर्धारित अवधि से पांच दिन पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया।
सत्र चलाने में किसी की रुचि नहीं
दरअसल, सत्ता पक्ष हो या विपक्ष किसी की भी रुचि अब अधिक अवधि तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरुआत से ही हंगामा करना प्रारंभ कर देता है। स्थिति अब तो यह बनने लगी है कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। बजट सत्र में यही स्थिति बनी। इससे अध्यक्ष व्यथित भी नजर आए पर सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का आरोप है कि सरकार सदन में चर्चा कराने से भागती है। विपक्ष लोक महत्व के विषयों पर चर्चा करना चाहता है पर सत्ता पक्ष हंगामा करने लगता है। भाजपा के मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं कि कांग्रेस कभी जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं करती। हंगामा करना ही इनका मकसद रहता है। जबकि, सदन का मंच हमें जनहित पर चर्चा करने के लिए दिया है और सबकी प्रक्रिया निर्धारित है। बड़ी तैयारी के साथ विधायक विधानसभा सत्र के लिए प्रश्न लगाते हैं। एक घंटे के प्रश्नकाल में 25 प्रश्नों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है। जिन सदस्यों के प्रश्न इसमें शामिल होते हैं वे सदन में सरकार का उत्तर चाहते हैं और पूरक प्रश्न भी करते हैं पर हंगामे के कारण प्रश्नकाल ही पूूरा नहीं हो पा रहा है। इससे विधायकों के प्रश्न पूछने के अधिकार का हनन भी हो रहा है। अपनी बात रखने का उन्हें मौका भी कम मिल रहा है। इसे लेकर विधायक आपत्ति भी दर्ज करा चुके हैं। विधेयकों को लेकर भी स्थिति अलग नहीं है। इस दौरान अधिकतर विधायक हंगामे के बीच ध्वनिमत से चंद मिनटों में पारित हो जाते हैं।
 28 घंटे 9 मिनट चला बजट सत्र
16वीं विधानसभा का बजट सत्र कुल 28 घंटे 9 मिनट चला और छह बैठकें हुईं। जिसमें विधायी, वित्तीय तथा लोक महत्व के अनेक कार्य संपन्न हुए। सदन ने अन्य वित्तीय कार्यों के अलावा वर्ष 2024-25 के वार्षिक वित्तीय विवरण पर चर्चा कर लेखानुदान पारित किया, वहीं वर्ष 2023-24 के द्वितीय अनुपूरक मांगों को स्वीकृति प्रदान की गई। सत्र में कुल 2,303 प्रश्न प्राप्त हुए। ध्यानाकर्षण की कुल 541 सूचनाएं प्राप्त हुई, जिनमें 40 सूचनाएं ग्राहय हुई। दरअसल, पक्ष हो या विपक्ष किसी की भी रुचि अब अधिक अवधि तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरुआत से ही हंगामा करना प्रारंभ कर देता है। स्थिति अब तो यह बनने लगी है कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं। पंद्रहवीं विधानसभा की बात करें, तो तीन सत्रों को छोड़कर पांच साल में अन्य कोई भी सत्र (बजट, मानसून और शीतकालीन) अपनी निर्धारित अवधि पूरी नहीं कर सका। यहां तक की बजट सत्र की बैठकें भी समय से पहले ही समाप्त हो गई, जबकि यह सबसे लंबा होने की परंपरा रही है। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के समय लंबी अवधि के विधानसभा सत्र होते थे। बजट सत्र एक महीने से ज्यादा अवधि तक चलता था, लेकिन साल-दर-साल सत्रों की अवधि छोटी होती जा रही है।
प्रश्नकाल नहीं हो पा रहा पूरा
बड़ी तैयारी के साथ विधायक विधानसभा सत्र के लिए प्रश्न लगाते हैं। एक घंटे के प्रश्नकाल में 25 प्रश्नों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है। जिन सदस्यों के प्रश्न इसमें शामिल होते हैं, वे सदन में सरकार का उत्तर चाहते हैं और पूरक प्रश्न भी करते हैं। पर हंगामे के कारण प्रश्नकाल ही पूरा नहीं हो पा रहा है। इससे विधायकों के प्रश्न पूछने के अधिकार का हनन भी हो रहा है। अपनी बात रखने का उन्हें मौका भी कम मिल रहा है। इसे लेकर विधायक आपत्ति भी दर्ज करा चुके हैं। विधेयकों को लेकर भी स्थिति अलग नहीं है। इस दौरान अधिकतर विधेयक हंगामे के बीच ध्वनिमत से चंद मिनटों में पारित हो जाते हैं।

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