जैविक खेती में मप्र ने सभी राज्यों को पीछे छोड़ा

जैविक खेती

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। देश में बढ़ती खाद की खपत के बीच अच्छी खबर है कि मप्र में एक बार फिर जैविक खेती को प्राथमिकता दी जाने लगी है। इससे पर्यावरण के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य को भी फायदा होगा। हाल ही में दिए गए आंकड़ों को देखें तो मप्र ने इस मामले में पहला स्थान हासिल किया है। प्रदेश में जैविक खेती का सबसे बड़ा रकबा 15 लाख 92 हजार हेक्टेयर है। इस मामले में 13 लाख हेक्टेयर के साथ महाराष्ट्र को दूसरा नंबर मिला है। इसके बाद गुजरात में नौ लाख 37 हजार हेक्टेयर, राजस्थान में छह लाख 78 हजार हेक्टेयर में यह खेती की जाती है। इन राज्यों को छोड़ दिया जाए तो शेष राज्यों में इससे आधा रकबा भी जैविक खेती का नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 64 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती की जा रही है। इस हिसाब से मप्र ऐसा राज्य है जिसका हिस्सेदारी अकली 25 फीसदी है। इस पंरपरागतम खेती को अब राज्यों के साथ ही केन्द्र सरकार भी बढ़ावा दे रही है। यही वजह है कि  केंद्र सरकार की पारंपरिक कृषि विकास योजना के अंतर्गत मप्र में तीन हजार से अधिक क्लस्टर बनाए गए हैं। प्रदेश की इस उपलब्धि के पीछे की वजह है, प्रदेश सरकार द्वारा शुरु की गई जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली योजनाएं।
मप्र में एक दशक पहले बन गई थी नीति
केंद्र सरकार की जैविक उत्पादन कृषि नीति (एनपीओपी) के अनुसार राज्य सरकार ने वर्ष 2011 में अपनी जैविक कृषि नीति बना ली थी। इसमें जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रविधान किए गए हैं। उत्पादों का सीधे विक्रय की जगह ब्रांड नाम उपलब्ध कराना, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराना, जैविक उत्पाद विपणन केंद्रो का विकास, प्रसंस्करण की सुविधाएं प्रदान करना, उत्पादों का जैविक प्रमाणीकरण शामिल है।
यह होता है फायदा
जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता और सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है । रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है और फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। इसी तरह से जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ ही भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं। और भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है। इस तरह की खेती पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। इसकी वजह है भूमि के जलस्तर में वृद्धि होने के साथ ही मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है । फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होती है।
हर साल 15 लाख टन तैयार होते हैं जैविक उत्पाद
किसान एवं कृषि कल्याण विभाग के अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 14 से 15 लाख टन जैविक उत्पाद तैयार हो रहे हैं। इसमें से करीब   पांच लाख टन से अधिक जैविक उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। सहकारिता के माध्यम से भी इसे और विस्तार दिया जा रहा है। वर्ष 2021-22 में जैविक उत्पाद का उत्पादन 14 लाख टन रहा था। इसमें से पांच लाख टन से अधिक जैविक उत्पाद का निर्यात किया गया था। इसे और विस्तार देने के लिए सरकार ने जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने कृषि, उद्यानिकी के साथ सहकारिता विभाग को जोड़ा है।

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