सुमेर सिंह को ट्रायबल लीडर प्रोजेक्ट करेगी भाजपा

  • हरीश फतेहचंदानी
सुमेर सिंह

चुनावी साल में मध्यप्रदेश में भी गुजरात मॉडल लागू होने की प्रबल संभावनाएं बनती हुई दिख रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रदेश में सत्ता व संगठन दोनों के कई चेहरों में बड़ा बदलाव किया जा सकता है। इस बदलाव में आदिवासी समाज को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की पूरी संभावना बनती दिख रही है। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस बदलाव के लिए पार्टी हाईकमान ने सांसद सुमेर सिंह सोलंकी को ट्रायबल लीडर प्रोजेक्ट करने का मन बना लिया है। पार्टी उन्हें प्रदेश का बड़ा आदिवासी चेहरा बनना चाहती है। इससे जहां प्रदेश में पार्टी का आदिवासी नेतृत्व का संकट दूर हो जाएगा , वहीं पार्टी इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की वैतरणी भी पार कर लेगी।
सोलंकी के साथ एक और खासियत हैं कि वे पढ़े लिखे होने के साथ ही युवा भी हैं, जिससे पार्टी को नया और युवा नेतृत्व भी मिल जाएगा। माना जा रहा है कि उनके नाम पर राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के बाद मुहर लग सकती है। इसकी वजह है प्रदेश में अब तक भाजपा के पास ऐसा कोई आदिवासी बड़ा चेहरा नही है , जिसका प्रभाव इस समाज में पूरे प्रदेश में हो। इस मामले में भाजपा ने पहले केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते पर दांव लगाया था , लेकिन वे खुद को साबित करने में अब तक सफल नहीं हो सके हैं। वे अपने इलाके तक ही सीमित हैं। पूर्व में जरूर महाकौशल में कुलस्ते और निमाड़ इलाके में दिलीप सिंह भूरिया पार्टी के बड़े आदिवासी चेहरे हुआ करते थे। इनमें से भूरिया कांग्रेस से भाजपा में आए थे, लेकिन उनके निधन के बाद से ही पार्टी को मालवा -निमाड़ इलाके में एक बड़े प्रभावशाली आदिवासी चेहरे की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
 इसी अंचल से आने वाली आदिवासी महिला नेत्री रंजना बघेल जरूर कुछ सालों पहले तक सक्रियता दिखा रही थीं, लेकिन वे बीता चुनाव हारने के बाद से निष्क्रिय नजर आ रही हैं। भूरिया के बाद रंजना बघेल ही मालवा -निमाड़ अंचल में भाजपा की आदिवासी वर्ग का बड़ा चेहरा मानी जाती थीं। इसकी वजह भी है। वे ऐसी भाजपा नेता थीं, जिन्होंने जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) के खिलाफ अकेले ही बेहद संघर्ष किया है। उनकी निष्क्रियता के चलते ही अब भाजपा को इस वर्ग का नया चेहरा खोजना पड़ रहा है। पार्टी की यह तलाश प्रदेश से राज्यसभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी पर जाकर समाप्त होती दिख रही है। माना जा रहा है कि उन्हें बड़ा चेहरा बनाने के लिए संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है या फिर मोदी मंत्रिमंडल के पुर्नगठन में उन्हें मंत्री बनाया जा सकता है। यह बात अलग है कि शिवराज मंत्रिमंडल में एक और आदिवासी चेहरे के रूप में लंबे समय से विजय शाह शामिल हैं, लेकिन वे भी अपने ही क्षेत्र तक सीमित बने हुए हैं। यही वजह है कि उनकी पकड़ अब तक निमाड़ के बाहर नहीं बन सकी है। दरअसल वे राजघराने से आते हैं, जिसकी वजह से वे आम आदिवासी के बीच सक्रियता नहीं दिखा पाते हैं।
इसी तरह से शिवराज मंत्रिमंडल में जिन अन्य आदिवासी विधायकों को जगह दी गई है, लेकिन वे भी समाज पर पकड़ बनाने में नकारा साबित हुए हैं। इनमें मंत्री प्रेम सिंह पटेल और मीना सिंह के नाम शामिल हैं। दरअसल इन दोनों ही मंत्रियों की पकड़ अपने क्षेत्र से बाहर अब तक बनती नहीं दिख रही है। इसके अलावा पार्टी ने पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे को भी राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में लेकर आगे पदाधिकारी बनाया, लेकिन वे भी प्रदेश में कोई पकड़ नहीं बना सके हैं। इसकी वजह से ही भाजपा को कांग्रेस से बिसाहू लाल सिंह और सुलोचना रावत जैसे चेहरों को आयतित करना पड़ा है। यह बात अलग है कि वे भी अप्रभावशाली ही बने हुए हैं। खास बात यह है कि प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी इस मामले में कई प्रयास करते हुए कुछ आदिवासी चेहरों को आगे बढ़ाने का काम किया लेकिन उनके यह प्रयास भी असफल ही रहे हैं। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके गजेंद्र सिंह पटेल को भी पार्टी ने लोकसभा चुनाव जिताकर आगे बढ़ाने का काम किया , लेकिन भी सांसद बनते ही अपनी सक्रियता दिखाने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं।
संपत्तियां उइके भी नहीं छोड़ सकीं कोई प्रभाव
प्रदेश का मालवा निमाड़ व महाकौशल अंचल आदिवासी बाहुल्य है। यही वजह है की पार्टी द्वारा मालवा-निमाड़ के अलावा महाकौशल अंचल में भी कई आदिवासी चेहरों को प्रभावी बनाने के प्रयास किए गए , लेकिन वे भी असफल ही रहे हैं। इनमें मंडला की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी संपतिया उईके भी शामिल हैं। उन्हें पार्टी ने राज्यसभा सदस्य भी बनाया। पार्टी उन्हें केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते का विकल्प बनाना चाहती थी , लेकिन वे भी संगठन की मंशा पर खरा उतरती हुईं अब तक नहीं दिखी हैं। इसी तरह से पार्टी ने इस अंचल में एक और चेहरे पर भी दांव लगाया था। यह चेहरा नरेन्द्र मरावी का है। संगठन मान रहा था की उनके पढ़े-लिखे होने का फायदा मिलेगा , लेकिन वे भी दम नहीं दिखा सके। मरावी पहले कांग्रेस की राजेश नंदिनी के खिलाफ शहडोल लोकसभा चुनाव हारे और फिर कांग्रेस के फुंदेलाल मार्कों के खिलाफ पुष्पराजगढ़ से भी विधानसभा चुनाव हारे। मरावी को अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष भी बनाया, लेकिन फिर भी मरावी अपना प्रभाव नहीं दिखा पाए। यह बात अलग है कि इस अंचल में पहले ज्ञान सिंह बड़े आदिवासी नेता हुआ करते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट तक नहीं दिया। वे ऐसे आदिवासी चेहरा थे, जो आरक्षित सीट के अलावा सामान्य सीट से भी चुनाव जीत चुके हैं।
वीडी के हाथ में ही रहेगी संगठन की कमान
प्रदेश में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह तय हो गया है कि भले ही उनका कार्यकाल पूरा हो गया है, लेकिन चुनाव होने तक उनके हाथ में ही संगठन की कमान रहने वाली है। इसकी वजह है पार्टी हाईकमान जेपी नड्डा के कार्यकाल में वृद्धि की जाना। उन्हीं की ही तर्ज पर वीडी शर्मा का कार्यकाल भी बढ़ाया जाना लगभग तय कर लिया गया है। इसकी घोषणा औपचारिक रूप से कुछ दिनों बाद कर दी जाएगी। वैसे भी उन्हें प्रदेश में भाजपा के लिए शुभंकर माना जाता है।

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