सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा, अरबों डूबे

सीएजी

लोग भटकते रहे, लेकिन नहीं मिल सकीं सुविधाएं

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।  स्वयं की सुख सुविधाओं की बात हो तो अफसरशाही ऐसी सक्रिय होती है कि उससे संबंधित फाइल का निराकरण तक तत्काल हो जाता है और उसके बाद चंद घंटो में ही आदेश भी जारी हो जाते हैं, लेकिन अगर मामला आम आदमी के हितों का हो तो फिर वह फाइल ऐसी रेंगती है कि आम आदमी की चप्पलें तक घिस जाती हैं।  यही हाल उन मदों का भी है, जिनका लाभ जनता को मिलना था, लेकिन कई विभागों ने मिले बजट का पूरा उपयोग ही नहीं किया है। यह हाल तब है जबकि, अधिकांश विभाग पूरे सालभर तक बजट न होने का रोना रोते रहे हैं। दरअसल बीते साल बर्ष 2021-22 में केन्द्र सरकार से लेकर लोक ऋण और विदेशी कर्ज से जुटाई गई राशि को सरकार द्वारा प्रदेश के विभिन्न विभागों को बजट का आंवटन कई तरह के कामों के लिए किया था, लेकिन विभागों के अफसरों ने उसे खर्च करने में ही रुचि नहीं ली, जिसकी वजह से बीते साल 100 अरब रुपए की राशि खर्च ही नहीं हो सकी।  इसका नुकसान किसानों से लेकर आम आदमी तक को उठाना पड़ा है। खास बात यह है कि इस तरह की गंभीर लापरवाही पर भी सरकार ने जिम्मेदारों के खिलाफ कोई कार्रवई करने तक की जहमत नहीं उठाई है।
सीएजी की रिपोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए 486 करोड़ रुपए की राशि दी थी, जिसे खर्च ही नहीं किया गया।  इसी तरह से ग्रामीण विकास के लिए विदेशी लोन के रुप में मिले 769 करोड़ रुपए को भी खर्च नहीं किया गया।  यही नहीं प्रदेश में सड़कों व पुल के निर्माण  और किसानों को उद्यानिकी फसलों के लिए मिलने वाली सब्सिडी का पैसा भी खर्च नहीं कर पाना कई तरह के सवालों को खड़ा कर रहा है। सीएजी की जिस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है उसे हाल ही में विधानसभा पटल पर रखा जा चुका है।  सीएजी द्वारा पेश की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मप्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार सहित लोक ऋण और विदेशी कर्ज के रूप में 35 हजार 676 करोड़ रुपए लिए थे, जिसमें से करीब दो दर्जन विभाग 25 हजार 54 करोड़ रुपए का ही उपयोग कर सके और 10,621 करोड़ रुपए की राशि खर्च ही नहीं की गई। यही नहीं इस राशि को बचत के रुप में बता दिया गया। हद तो यह हो गई कि केंद्र सरकार से प्राकृतिक आपदा से निपटने 486 करोड़ रुपए प्रदेश को मिले थे, जिसमें से एक ढेला तक खर्च नहीं किया गया। यही नहीं पंचायत एवं ग्रामीण विकास ने ग्रामीण सड़कों के लिए विदेशी बैंक से 1,131 करोड़ का कर्ज ले तो लिया, लेकिन उसमें से 769 करोड़ का उपयोग ही नहीं किया।  विभाग द्वारा इसमें से महज 361 करोड़ ही खर्च किए गए। इसी तरह से मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए केंद्र से 775 करोड़ रुपए मिले थे, जिसमें से भी 570 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए। यही नहीं हद तो यह रही की बजट का अभाव बताकर आदिवासी विकास की योजनाओं की अनदेखी करते हुए इस वर्ग के छात्रों को  दो साल से छात्रवृत्ति तक नहीं  बंटी जा रही है, जबकि जनजातीय कार्य विभाग 446.72 करोड़ रुपए खर्च तक नहीं कर सका है।

इन्होंने समर्पित नहीं की राशि
बीते साल में राशि खर्च नहीं कर पाने वाले विभागों में स्वास्थ्य से लेकर स्कूल शिक्षा विभाग तक शामिल हैं। हालात यह रही  की वित्त वर्ष की समाप्ती पर कई विभागों को कई सौ करोड़ रुपए तक की राशि समर्पित करनी पड़ी है। इनमें वित्त विभाग 2,626 करोड़, वाणिज्यिक कर 422 करोड़, राजस्व विभाग 100 करोड़, फॉरेस्ट 117 करोड़, पशुपालन विभाग 92 करोड़, सहकारिता 39 करोड़, स्वास्थ्य विभाग 304 करोड़, पीएचई 116 करोड़, पीडब्ल्यूडी 206 करोड़, स्कूल शिक्षा के 908 करोड़ रुपए शामिल हैं।

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