114 के फेर में भाजपा-कांग्रेस

भाजपा-कांग्रेस
  • 2023 में सरकार बनाने का घमासान

2023 में भाजपा और कांग्रेस की रणनीति साफ है कि हर हाल में सरकार बनाना है। इसके लिए दोनों पार्टियां रणनीति बना रही हैं। फिलहाल दोनों पार्टियों का फोकस 114 विधानसभा सीटों पर है। जहां भाजपा 2018 में हारी हुई 114 सीटों पर फोकस किए हुए है, वहीं कांग्रेस भी अपनी जीती हुई 27 सीटों के साथ ही भाजपा, सपा और बसपा की जीती हुई 87 सीटों को जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। यानी दोनों पार्टियां 114 के फेर में अटकी हुई है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मिशन 2023 को लेकर इन दिनों भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां मिशन मोड में काम कर रही हैं। भाजपा की कोर कमेटी और प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के साथ ही आला नेताओं के बीच हुए मंथन के बाद यह साफ हो गया है की अब पार्टी ने उन 114 सीटों पर विशेष फोकस करने का फैसला किया है, जिन पर पार्टी प्रत्याशियों को 2018 में हार का सामना करना पड़ा था। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा में भाजपा को 109 सीटों पर ही विजय मिली थी। कांग्रेस के खाते में 114 सीटें गई थीं, हालांकि उपचुनाव के बाद तस्वीर बदल गई और भाजपा ने 28 में से 19 सीटें जीत ली थीं। इसके बाद भी पार्टी ने बीते विधानसभा चुनाव को आधार बनाकर इन विधानसभा क्षेत्रों में हार के कारण, कमियों को तलाशने के लिए प्रभारी बनाए हैं। गत दिनों इन प्रभारियों की बैठक प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने ली, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद भी शामिल हुए। बैठक में प्रभारियों से कहा गया कि वे मंडल स्तर पर बैठकें आयोजित कर कार्यकर्ताओं से संवाद करें और हार के कारण तलाशें ताकि उन्हें दूर किया जा सके। प्रभारियों को बूथ वार जानकारी जुटाने को भी कहा गया है। विधानसभा प्रभारी कार्यकर्ताओं के अलावा समान विचारधारा वाले लोगों और बुद्धिजीवियों से भी चर्चा कर अपनी रिपोर्ट संगठन को देंगे। इसके अलावा बूथ विस्तारकों से भी संगठन नेताओं ने चर्चा की और उनसे बूथ स्तर पर किए गए कामों की जानकारी ली।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में भले ही अभी सवा महीने का समय बाकी है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस की तैयारियां जोरों पर है। दोनों पार्टियों की कोशिश है की 2023 में उनकी सरकार बने। लेकिन इस बीच विधायकों की खराब परफॉर्मेंस ने भाजपा और कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, दोनों पार्टियों के अंदरूनी सर्वे में उनके अधिकांश विधायकों की स्थिति खराब बताई गई है। ऐसे में पार्टियों में बदलाव की संभावनाओं पर चर्चा चल रही है, वहीं विधायक हार के डर से सुरक्षित सीट तलाशने लगे हैं। प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उन विधायकों का टेंशन बढ़ गया है जिनका पार्टी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस खराब निकला है। भाजपा और कांग्रेस के आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। कांग्रेस में ऐसे 27 और भाजपा में भी ऐसे ही कई विधायकों का टिकट संकट में पड़ गया है। ये विधायक अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं। इन्हें डर है कि इस बार कहीं टिकट ही न कट जाए।

भाजपा की नजर कांग्रेस की सीटों पर
मध्य प्रदेश में मिशन-2023 की तैयारियों में जुटी भाजपा ने कांग्रेस के कब्जे वाली 96 विधानसभा सीटों को छीनने के लिए पुख्ता तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी का इन सीटों पर विशेष फोकस रहेगा। सभी सीटों पर वरिष्ठ भाजपा नेताओं को प्रभारी बनाया गया है। उनकी निगरानी में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को घेरने की तैयारी की जाएगी। इसके अलावा उन सात सीटों पर भी भाजपा फोकस कर रही है, जिन पर सपा-बसपा और निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। 230 सीटों वाली मप्र विधानसभा में भाजपा के पास 127 सीटें हैं। वहीं, कांग्रेस के कब्जे में 96 और अन्य के पास सात सीटें हैं। भाजपा इस तैयारी में है कि कांग्रेस के मौजूदा विधायकों के प्रति नाराजगी का वह फायदा उठा ले। इसी उद्देश्य से भाजपा ने कुल 103 सीटों पर चुनाव तैयारी प्रारंभ कर दी है। इनमें सभी सीटों पर कद्दावर नेताओं को प्रभारी बनाया गया है। इनमें प्रदेश के मंत्री, पूर्व सांसद और पूर्व विधायक शामिल हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा के प्रभारी सबसे पहले पिछले विधानसभा चुनाव में मिली हार के कारण जानेंगे। पार्टी ने सभी प्रभारियों से कहा है कि संबंधित विधानसभा में भाजपा की कमजोरी का अध्ययन करें। कमजोरी को कैसे दूर कर सकते हैं, उस पर सभी मोर्चा-प्रकोष्ठ और संगठन के नेताओं के साथ समन्वय बनाना है। सामाजिक और जातिगत समीकरणों का अध्ययन कर उनके हिसाब से चुनावी जमावट करना। भाजपा कांग्रेस के बड़े नेताओं की 2023 के चुनाव से पहले घेराबंदी करना चाहती है ताकि उन्हें बाहर प्रचार का मौका न मिल पाए। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमल नाथ को उनके घर में ही घेरने की रणनीति भाजपा ने बनाई है। दिग्विजय के अनुज और चाचौड़ा विधानसभा क्षेत्र के विधायक लक्ष्मण सिंह की सीट पर सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया को प्रभारी बनाया गया है। दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह की राघौगढ़ सीट की कमान उच्च शिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव को सौंपी गई है। दोनों मंत्री कद्दावर और बाहुबली हैं। इसी तरह कमल नाथ के छिंदवाड़ा के लिए भाजपा ने दो स्तर पर नेताओं को लगाया है। लोकसभा सीट की तैयारी के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को जिम्मेदारी दी गई है। वहीं, प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल को भी लगाया गया है। भाजपा की रणनीति आने वाले चुनाव में विपक्ष की ज्यादा से ज्यादा सीट छीनना है। पार्टी का मानना है कि अपनी सीटें बचाने के साथ ही विपक्ष की सीट छीनने की रणनीति से सत्ता की राह आसान होगी। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के 28 विधायक चुनाव हार गए थे। यही वजह है कि भाजपा इस बार सत्ता के अंाकड़े तक पहुंचने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाह रही है।

विधायकों की खराब परफॉर्मेंस
चुनावी तैयारियों के बीच विधायकों की खराब परफॉर्मेंस ने भाजपा और कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, दोनों पार्टियों के अंदरूनी सर्वे में उनके अधिकांश विधायकों की स्थिति खराब बताई गई है। ऐसे में पार्टियों में बदलाव की संभावनाओं पर चर्चा चल रही है, वहीं विधायक हार के डर से सुरक्षित सीट तलाशने लगे हैं। प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उन विधायकों का टेंशन बढ़ गया है जिनका पार्टी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस खराब निकला है। भाजपा और कांग्रेस के आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। कांग्रेस में ऐसे 27 और भाजपा में भी ऐसे ही कई विधायकों का टिकट संकट में पड़ गया है। ये विधायक अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं। इन्हें डर है कि इस बार कहीं टिकट ही न कट जाए। मप्र में अगले साल 2023 में विधानसभा चुनाव होना हैं। कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सर्वे में मौजूदा 27 विधायकों की स्थिति खराब बताई गई है। कमलनाथ ने बीते दिनों प्रदेश कांग्रेस दफ्तर में हुई पार्टी की प्रदेश समिति प्रदेश बैठक में उन विधायकों को चेताया है जिनकी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस पुअर है। कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के बाद अब कांग्रेस के कई मौजूदा विधायक सीट बदलने के मूड में आ गए हैं। स्थानीय स्तर पर एंटीइंकंबेंसी के चलते पार्टी के कई सीनियर विधायक से लेकर नए विधायक सेफ सीट की तलाश में जुट गए हैं। यही वजह है कि कई विधायकों ने अपने विधानसभा से लगी दूसरी विधानसभा सीट पर भी अपनी सक्रियता तेज कर दी है। बताया जा रहा है कि कमलनाथ के इस गोपनीय सर्वे में उनकी सरकार में मंत्री रहे 8 विधायकों की रिपोर्ट खराब आई है। बताया जा रहा है कि पहली बार में इन्हें अपना परफॉर्मेंस सुधारने की चेतावनी दी जाएगी और फिर भी सुधार नहीं हुआ तो इनके टिकट भी काटे जा सकते हैं। कमलनाथ अगले साल होने वाले चुनावों को लेकर काफी गंभीर हैं। सभी जानते हैं कि कमलनाथ की एक निजी एजेंसी लगातार सर्वे करती है। सूत्रों का कहना है कि अभी जो सर्वे करवाया गया है, उसमें कांग्रेस के कई विधायकों का परफार्मेंस गड़बड़ आया है। इसको लेकर कमलनाथ ने उन्हें चेतावनी भी दी है। सोशल मीडिया पर दौड़ रही इस गोपनीय सर्वे रिपोर्ट में 8 पूर्व मंत्रियों के नाम शामिल हैं, जिनका प्रदर्शन खराब आया है। इनमें कमलेश्वर पटेल, लखन घनघोरिया, हर्ष यादव, सज्जनसिंह वर्मा, हुकुमसिंह कराड़ा, लाखन यादव, पीसी शर्मा और विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति शामिल हैं। इनकी रिपोर्ट आने के बाद कमलनाथ ने इन्हें अपने क्षेत्र में सक्रिय रहने को भी कहा है।
सिर्फ कांग्रेस के अंदर ही विधायक सीट बदलने की तैयारी में नहीं हैं बल्कि भाजपा के अंदर भी आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में आधा दर्जन मंत्री ऐसे निकल कर आए हैं जिनके प्रभाव वाले जिले में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है। पार्टी की सर्वे रिपोर्ट में भी कई विधायकों की स्थिति ठीक नहीं बताई गई है। यही वजह है कि भाजपा के अंदर भी कई विधायकों ने दूसरी सीट तलाशना शुरू कर दिया है। हालांकि भाजपा विधायक कृष्णा गौर का कहना है भाजपा के अंदर पार्टी आलाकमान का फैसला ही सर्वमान्य होता है। जिस विधायक को पार्टी जहां से बोलेगी वहां से वह चुनाव लड़ेगा। भाजपा और कांग्रेस के अंदर मौजूदा विधायकों के साथ और भी कई दावेदार सक्रिय हैं। इनमें तो कई नये चेहरे भी हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के आंतरिक सर्वे में कई मंत्रियों के विधानसभा में चुनाव हारने की रिपोर्ट आई थी। कई मंत्रियों की सीट बदल दी गयी थी। लेकिन अपनी परंपरागत सीट पर चुनाव लडऩे वाले कई मंत्री विधायकी से हाथ धो बैठे थे। अब यही वजह है कि पार्टी सर्वे के आधार पर विधानसभा में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश में विधायक हैं। जहां स्थिति नहीं सुधरेगी वहां विधायक दूसरी विधानसभा सीट पर अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं।

भाजपा की माइक्रोप्लानिंग
2023 के चुनाव के लिए इस बार प्लानिंग नहीं माइक्रो प्लानिंग हो रही है। 2018 में अपने ओवर कॉन्फिडेंस या कुछ अन्य फेक्टर्स के चलते सत्ता में आने से चूकी भाजपा, इस बार कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। चुनाव में भले ही सवा साल बाकी हो लेकिन भाजपा की रणनीति अभी से बनना शुरू हो चुकी है। तरकश में रखे तीरों से तीन खास निशान भेदने हैं। ये तीर संभालेंगे त्रिदेव और पूरा करेंगे भाजपा का मिशन 114। मिशन 114 सुनकर आप जरूर सोच सकते हैं कि सत्ता में आने के लिए सिर्फ शतक लगाना काफी नहीं। एक मुतमईन सरकार बनाने के लिए सीटें तो इससे बहुत ज्यादा चाहिए। ताकि पांच साल इत्मीनान से काटे जा सकें। फिर भाजपा की सुई सिर्फ 114 पर ही क्यों अटक गई है, तो बता दें कि ये सौ का आंकड़ा भाजपा के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है और अगर रणनीति कामयाब रही जो भाजपा का ये मिशन 114 अगले चुनाव में कांग्रेस की सिट्टी-पिट्टी गुम कर देगा। वैसे भाजपा के इस मिशन के आगाज से पहले कांग्रेस नींद से तो जाग चुकी है। चुनाव के मद्देनजर भाजपा में हर स्तर पर फेरबदल का दौर जारी है। सत्ता, संगठन और प्रशासनिक स्तर पर तेजी से चेहरे बनाने और बदलने की कवायद चल रही है। कोशिश यही है कि अगला चुनाव यानी 2023 का विधानसभा चुनाव किसी हाल में हाथ से फिसलना नहीं चाहिए। इसके लिए भाजपा के आला नेता हर दूसरे दिन एक साथ मिलकर माथा पच्ची कर रहे हैं। प्लानिंग ऐसी करने की कोशिश है जो बारीक से बारीक फेक्ट भी चूक न जाए। यही वजह है कि खास फोकस तो उन 96 सीटों पर है जो कांग्रेस के खाते में हैं। इन 96 सीटों पर अपनी कमजोरी तलाश कर भाजपा इन सीटों को भी अपनी झोली में लाना चाहती है। सवाल ये है कि जब सीटें 96 है तो फिर मिशन 114 का सबब क्या है। ये समझने के लिए 2018 के चुनावी नतीजे दोहराने होंगे। इस चुनाव में भाजपा को मिली थी 109 सीटें। 114 सीटें हासिल कर कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। 4 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे। दो सीटें बसपा और एक सपा को मिली थी। यानी किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। पहले कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। लेकिन बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा ने सरकार बनाई थी। जबकि एक निर्दलीय एक सपा और एक बसपा विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। मौजूदा स्थिति में भाजपा 126 सीटों पर काबिज है। लेकिन दलबदलुओं के भरोसे मिली सीट पर जीत के लिए भाजपा पूरी तरह आश्वस्त नहीं होना चाहती। लिहाजा फोकस 96 की जगह पूरी 114 सीटों पर रखा है।
इन 114 सीटों पर भाजपा अपनी प्लानिंग में ऐसी कोई कसर नहीं छोड़ता चाहती जिससे कांग्रेस को जीत का एक भी मौका मिल सके। हालांकि कांग्रेस में कमलनाथ भी भाजपा की इस प्लानिंग से अनजान नहीं है और अपनी स्टाइल में काम शुरू कर चुके हैं। अपनी शैली में डिजाइन की गई रणनीति का कमाल, कमलनाथ नगरीय निकाय चुनाव में दिखा ही चुके हैं। भाजपा को उनके तजुर्बे से भी पार पाना है। इसलिए शुरूआत में तीन खास फेक्टर्स पर भाजपा हर सीट पर सर्जरी कर रही है। इस पर नजर रखने के लिए त्रिदेव भी तैयार हैं जो हर सीट पर भाजपा की रणनीति को सफल बनाने में जुटे हुए हैं। मिशन 114 के बहाने सिर्फ ताबड़तोड़ तरीके से शतक लगाने का भाजपा का कोई इरादा नहीं है। प्लानिंग ऐसी की जा रही है कि वोट प्रतिशत भी बढ़ें और रूठा मतदाता भी गुस्सा थूक दे। इन मतदाताओं में भी सबसे ज्यादा उन मतदाताओं को रिझाना है, जो अनुसूचित जाति, जन जाति से आते हैं। पार्टी ने दिग्गज नेताओं को इन सीटों पर तैनात करने का प्लान बनाया है, ताकि हर एक सीट पर बूथ मैनेंजमेंट को मजबूत किया जा सके और 2023 में इन सीटों पर भाजपा की वापसी हो। भाजपा ने हर सीट पर चुनाव होने तक सांसद-विधायकों और जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी तय कर दी गई है। पार्टी ने सभी नेताओं को इन सीटों को जीतने के लिए माइक्रो प्लानिंग बनाने की भी सलाह दी है। जबकि संगठन की निगरानी में इन नेताओं को इन सीटों पर लगातार दौरे होते रहेंगे। इसका पूरा मैनेजमेंट संगठन की निगरानी में होगा। राज्यसभा सांसदों, प्रदेश के केंद्रीय मंत्री और प्रदेश पदाधिकारियों को भी इन सीटों पर जाना पड़ेगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार के मंत्री भी इन सीटों पर विशेष फोकस रखेंगे। दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश के कुछ अंचलों में नुकसान हुआ था। पार्टी को ज्यादातर मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड अंचल की सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। बता दें कि मालवा-निमाड़ मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा अंचल है। इस अंचल में प्रदेश की 65 विधानसभा सीटें आती है। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा की सीटें घटकर आधी रह गई थी। ऐसे में पार्टी सबसे ज्यादा मालवा-निमाड़ पर फोकस कर रही है। जबकि ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड अंचल की सीटों पर भी भाजपा सक्रिए है। इन सीटों पर अपनी माइक्रोप्लानिंग में भाजपा तमाम पहलुओं पर नजर जमा रही है।

घर-घर दस्तक देंगे मंत्री
चुनाव का बिगुल बजने से पहले सत्ता और संगठन जीत के लिए पूरी तरह आश्वस्त होना चाहते हैं। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का भरपूर प्रचार-प्रसार करने की रणनीति भी बनाई गई है। इसके तहत प्रदेश सरकार के सभी मंत्री 31 अक्टूबर तक गांव और शहरों में घर-घर दस्तक देंगे। इस दौरान वे हितग्राहियों से संवाद कर यह जानेंगे कि मोदी-शिवराज सरकार की योजनाओं से उनके जीवन में क्या बदलाव आया है। उन्हें योजना की जानकारी कैसे मिली और लाभ प्राप्त करने के लिए कोई परेशानी का सामना तो नहीं करना पड़ा। वे योजना में किसी तरह के सुधार और चाहते हैं। इसी तरह की अन्य जानकारियां मंत्री जिलों का भ्रमण कर प्राप्त करेंगे और फिर प्रतिवेदन तैयार होगा। इसके आधार पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान योजनाओं की विभागवार समीक्षा भी करेंगे। प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्म दिवस से एक-एक पात्र व्यक्ति को केंद्र और राज्य की विभिन्न् योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान प्रारंभ किया गया है। इसके लिए दो-दो मंत्रियों के समूह बनाकर जिले आवंटित किए हैं। मुख्यमंत्री भी हितग्राहियों से संवाद करेंगे। उन्होंने इसकी शुरुआत भी कर दी है। उधर, लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव की अध्यक्षता में बने जिलों में भ्रमण के दौरान किए जाने वाले कार्यों संबंधी मंत्री समूह ने तय किया है कि दूसरे चरण में जब पंचायत और नगरीय निकायों के वार्डों में शिविर होगा और लाभ वितरण किया जाएगा तो मंत्री वहां रहकर हितग्राहियों से चर्चा करेंगे। इसके साथ ही वे हितग्राहियों के घर जाएंगे और केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं से उनके जीवन में आए बदलाव पर चर्चा करेंगे। साथ ही यह भी पूछेंगे कि वे योजना में किस तरह का परिवर्तन चाहते हैं। योजनाओं की क्रियान्वयन की स्थिति पता करके रिपोर्ट देंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय रिपोर्ट के आधार पर प्रतिवेदन तैयार करेगा। मुख्यमंत्री द्वारा की जाने वाली आगामी विभागीय समीक्षा में प्रतिवेदन के बिंदुओं पर चर्चा होगी।

दोनों पार्टियों के रणनीतिकार तैनात
उधर, भाजपा ने 2023 में होने वाले विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नए प्रभारियों और सह प्रभारियों को नियुक्त कर दिया है। मध्यप्रदेश के प्रभारी पी. मुरलीधर राव और सह प्रभारी पंकजा मुंडे को बनाए रखा गया है जबकि सांसद रामशंकर कठेरिया को उनके साथ अब शामिल किया गया है। विश्वेश्वर टूडू की जगह रामशंकर कठेरिया को तैनात किया गया है। यानी मप्र में मिशन 2023 और 2024 के लिए मुरलीधर, पंकजा और कठेरिया की तिकड़ी रणनीति बनाकर वीडी और शिव को ताकत देने का काम करेगी। बताया जाता है कि प्रदेश में जातिगत समीकरणों को साधने के लिए इस तिकड़ी को प्रदेश की कमान सौंपी गई है। राव पिछले महीनों से प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इसलिए सरकार और संघ में तालमेल और दलितों को साथ लाने के लिए रामशंकर कठेरिया की नियुक्ति बड़ा रणनीतिक कदम माना जा रहा है। गौरतलब है कि मप्र में ओबीसी और दलित वर्ग सबसे बड़ा वोट बैंक है। इस वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए सभी पार्टियां प्रयास कर रही हैं। ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने दलित वोटरों को साधने के लिए उत्तरप्रदेश के बड़े अनुसूचित जाति वर्ग के नेता सांसद रामशंकर कठेरिया को मध्यप्रदेश भाजपा का सहप्रभारी बनाया है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने मप्र में कठेरिया की नियुक्ति की है। इसे प्रदेश के करीब 80 लाख दलित वोटों को साधने की कोशिश माना जा रहा है। बता दें कि मप्र में एससी वर्ग के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। फिलहाल कांग्रेस के पास 35 में से 14 सीट हैं। वहीं भाजपा के खाते में एससी वर्ग की 21 सीटें हैं। प्रदेश में करीब 16 फीसदी दलित आबादी है। 50 सीटों पर दलित वोटर्स का दबदबा है। गौरतलब है कि मप्र में एससी और एसटी वोटरों को सत्ता की चाभी माना जाता रहा है। दोनों वर्गों के लिए प्रदेश की 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इनके वोटरों की बात की जाए तो इनकी संख्या 40 फीसदी है। ऐसे में जिस दल को इन वर्गों का साथ मिलता है, उसका सत्ता तक पहुंचने का रास्ता आसान हो जाता है। पिछले 2018 विधानसभा चुनावों में इन दलों ने कांग्रेस का साथ निभाया था। आदिवासी क्षेत्रों की अधिकतर सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। वहीं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। राजनीति के जानकार मानते है कि भाजपा ने अगले विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव में मप्र के दलित वर्ग को साधने के लिए कठेरिया को जिम्मेदारी सौपी है। दरअसल कठेरिया का मध्यप्रदेश की सीमावर्ती उन क्षेत्रों में खासा प्रभाव है, जहां दलित वर्ग चुनावी दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनमें से कई विधानसभा क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी का वर्चस्व है। ऐसे में भाजपा इन्हें क्षेत्र के वोटरों को अपने साथ करने के लिए रणनीति के तहत प्रयास कर रही है और उसी प्रयास के लिए कठेरिया को मध्यप्रदेश का सह प्रभारी बनाया गया है।
वहीं मध्यप्रदेश कांग्रेस में व्यापक बदलाव किया जा रहा है। प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने इसके संकेत दे दिए हैं। सभी 52 जिलों के संगठन प्रभारी बदलने के बाद कमलनाथ अब जिलों के अध्यक्षों को बदलने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार जिन पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों की परफॉर्मेंस संतोषजनक नहीं है उन्हें बदला जा सकता है। बताया जाता है कि करीब 25 से 30 जिलाध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष के निशाने पर हैं। इनकी जगह पार्टी परिणाम देने वाले और मेहनती कार्यकर्ताओं को मौका देगी। पीसीसी के सूत्रों के अनुसार आधे जिलों के कांग्रेस अध्यक्षों को बदला जा सकता है। इनमें निष्क्रिय जिलाध्यक्षों के साथ ही ऐसे जिलाध्यक्ष भी शामिल हैं,जिन्होंने निकाय चुनाव में पार्टी के साथ गड़बड़ी की। ऐसे कांग्रेस नेताओं की छुट्टी तय है। दरअसल प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस सक्रिय हो चुकी है। मप्र कांग्रेस ने कांग्रेस संगठन को मजबूती देने की कवायद शुरू कर दी है। हाल ही में नगरीय निकाय चुनाव में 5 नगर निगमों में कांग्रेस को मिली कामयाबी से कार्यकर्ताओं के हौसले भी बुलंद हुए हैं। इसके बाद कमलनाथ ने प्रदेश में कांग्रेस को जमीनी स्तर पर खड़ा करने की पूरी जिम्मेदारी खुद ले ली है। वे विधायकों से जिलाध्यक्षों का प्रभार भी वापस ले रहे हैं। उनके स्थान पर पार्टी के फुल टाइम वर्कर को कांग्रेस जिलाध्यक्ष बनाया जा रहा है।

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