मप्र की राजनीति में फेल हो गए धाकड़ नौकरशाह

नौकरशाह

-2023 के चुनावी मैदान में ताल ठोकने की तैयारी कर रहे कई अधिकारी

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। अपनी प्रशासनिक क्षमता और कार्यप्रणाली से प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में धाक जमाने वाले कई नौकरशाह राजनीतिक वीथिका में अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। उनके द्वारा  बड़े-बड़े दावों और उम्मीद के साथ राजनीति का दामन थामा गया, लेकिन यहां के दांव-पेंच में इस कदर उलझ गए की न तो उन्हें जनता का साथ मिला और न ही राजनीतिक पार्टी का। इसके बावजूद कई नौकरशाह 2023 के विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं।
दरअसल, अपनी प्रशासनिक क्षमता से शासन-प्रशासन में लोकप्रियता हासिल करने के बाद जब अफसर राजनीति में आने के बाद मुकाम हासिल नहीं कर पाये हैं। यदि दो-चार अपवाद छोड़ दिया जाय तो, इस श्रेणी में कई नाम लिये जा सकते हैं। खास बात यह है कि यह स्थिति सभी दलों के मामले में सामने आई है। क्योंकि इनमें सत्तारूढ़ दल भाजपा से जुड़ने के बाद भी कई जहां गुमनाम है। वहीं राजनीति में अलग राह तय करने वाले भी जनता के बीच पैठ बनाने में असफल साबित हुए हैं। दरअसल सरकारी नौकरी में रहने के बाद राजनीति की ओर न केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बल्कि भारतीय पुलिस सेवा के साथ भारतीय वन सेवा के अधिकारी आकर्षित हुए। शुरूआती दौर में इनके नामों की चर्चा रही, बावजूद इसके समय के साथ यह राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गये। जबकि इनकी पैठ न केवल सत्तारूढ़ दल, बल्कि विपक्ष में भी रही है।
विधानसभा में जोर अजमाने की तैयारी: राजनीति के मैदान में कई नौकरशाहों की असफलता देखने के बाद भी कुछ अफसर 2023 के विधानसभा चुनाव में जोर अजमाने की तैयारी कर रहे हैं। हीरालाल त्रिवेदी हों या फिर  हाल में ही नौकरी से इस्तीफा देकर अलग दल बनाने की इच्छा रखने वाले वाले वरदमूर्ति मिश्रा का नाम उदाहरण के रूप में लिये जा सकते है। हालांकि आईपीएस अधिकारी रहे रूस्तम सिंह और आईएएस भगीरथ को इस मामले में अपवाद के रूप में गिना जाता है। बावजूद इसके यह भी मौजूदा समय में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा को त्याग कर अलग दल बनाने का दावा करने वाले वरदमूर्ति मिश्रा अभी भी नया दल नहीं बना पाये हैं।  जबकि इन्होंने करीब 45 दिन का समय लिया था।  इसके पीछे  उनका कहना है कि यह जल्द हो जाएगा। क्योंकि व्यवस्था में समय लगता है। बता दें कि इसके पहले हीरालाल त्रिवेदी कांग्रेस व भाजपा जैसे दलों से इतर नये दल सपाक्स की जिम्मेदारी संभाली थी।
कुछ सफल तो अधिकांश असफल
प्रदेश की राजनीति में हाथ अजमाने वाले कुछ अफसर सफल रहे हैं तो अधिकांश असफल रहे हैं। राजनीति में दिवंगत आईएएस अधिकारी रहे सुशील चंद्र वर्मा और आईपीएस अधिकारी रहे शिवमोहन सिंह सफल माने जाते हैं। इसके बाद रूस्तम सिंह और भगीरथ प्रसाद को इस श्रेणी में रखा जाता है। क्योंकि जनता के बीच लोकप्रिय रहे एमएन बुच, निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले एचएम जोशी, बीएसपी का दामन थामने वाले सुभाष चंद्र त्रिपाठी और विजय वाते, बीजेपी के साथ गये पूर्व सीएस शरदचंद्र ब्योहार, कांग्रेस के पन्नालाल और सपा में गये आईपीएस अधिकारी हरि सिंह यादव राजनीति की गलियों में दौड़ नहीं पाये हैं। प्रदेश में ऐसे अधिकारियों की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने सेवानिवृत्ति या फिर नौकरी छोड़कर राजनीति का दामन थामनें में संकोच नहीं किया। यदि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की बात करें तो भागीरथ प्रसाद, अजय शर्मा, हीरालाल त्रिवेदी, वीणा घाणेकर, शशि कर्णावत, वीके बाथम, अजिता वाजपेयी पांडे, एसएस उप्पल, डीएस राय और वरदमूर्ति मिश्रा के नाम अहम है। जबकि भारतीय पुलिस सेवा के मामले में पन्नालाल, विजय वाते, हरि सिंह यादव ,सुभाष चंद्र त्रिपाठी  और एके सिंह के नाम भी हैं। आईएफएस आजाद सिंह डबास तो कांग्रेस का दामन छोड़कर अब आम आदमी पार्टी में चले गये हैं। आखिर क्या वजह है कि अधिकारी राजनीति में सफल नहीं हो पाते हैं, इसका उत्तर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डीएस राय से जानने की कोशिश की। मौजूदा समय में यह कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं। इनका कहना है कि राजनेता अभी भी इनको अधिकारी मानते हैं और अधीनस्थों जैसा व्यवहार करते हैं। चूंकि एक अधिकारी को यह रास नहीं आता है। इसलिये वह किनारा कर लेता है। वहीं दूसरी ओर अधिकारी चुनावी राजनीति में समीकरण पूरा नहीं कर पाते हैं। इसलिये भी वह मुख्यधारा के बजाय हाशिये में चले जाते हैं। क्योंकि आंतरिक राजनीति में बड़े धुरंधर इनको अपना नहीं मान पाते हैं।

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