बिजली बिलों का भुगतान न करने वाले विभागों के बजट से कटेगी राशि

बिजली बिलों

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। कोयला संकट के साथ ही आर्थिक संकट से बेहद परेशान चल रही बिजली कंपनियों ने अब अपनी बकाया बिजली बिलों की राशि वसूलने की कवायद तेज कर दी है। इसके तहत अब  ऊर्जा विभाग द्वारा बड़े बकायेदार विभागों पर शिकंजा कसा जा रहा है।
विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने संबंधित विभागों को पत्र लिखकर राशि जमा कराने को कहा है। तो राज्य सरकार बड़े बकायादार विभागों के बजट से बिजली बिल की राशि समायोजित करने की तैयारी कर रही है।  यदि विभागों ने समय से बिल नहीं चुकाया, तो बिल की राशि सीधे उनके बजट से काट ली जाएगी। बिजली कंपनियों का अकेले पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग पर 636 करोड़ रुपये बकाया है। इसमें से पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का 99 करोड़, मध्य क्षेत्र कंपनी का 133 करोड़ और पश्चिम क्षेत्र कंपनी का 404 करोड़ रुपये बकाया है। यह राशि ग्राम पंचायतों में सप्लाई की जा रही बिजली के बिलों की है, जो लंबे समय से नहीं चुकाई जा रही है। यह तो सिर्फ उदाहरण है। अन्य विभागों पर भी ऐसी ही भारी-भरकम राशि बकाया है। ऊर्जा विभाग संबंधित विभागों को कई बार लंबित राशि का भुगतान करने को कह चुका है, पर विभाग राशि नहीं चुका रहे हैं। इसलिए अब सीधे ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखना पड़ा। वहीं प्रमुख सचिव ने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को भी वस्तुस्थिति बता दी है। इसके बाद ही अधिक राशि का बिल लंबित रखने वाले विभागों के बजट से सीधे वसूली करने की तैयारी की जा रही है।
इन विभागों पर राशि बकाया
सूत्र बताते हैं कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अलावा नगरीय निकाय, पुलिस, महिला एवं बाल विकास विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा विभाग, परिवहन विभाग, जनजाति कल्याण विभाग, स्वास्थ्य विभाग, सामाजिक न्याय आदि बड़े विभागों पर बिलों की राशि बकाया है।
मैदानी स्तर पर भी सख्ती
ऊर्जा विभाग ने मैदानी स्तर पर भी बिजली बिलों की राशि वसूलने में सख्ती दिखाना शुरू कर दिया है। विभाग ने मैदानी अधिकारियों को इस संबंध में निर्देश दिए हैं। सभी का लक्ष्य तय कर दिया है। वहीं बिजली चोरी रोकने पर भी ध्यान दिया जा रहा है। कंपनियों के पास लंबित बिलों का भुगतान आएगा, तो कोयला भी आएगा और फिर प्रदेश के सभी ताप विद्युत संयंत्र पूरी क्षमता से चल सकेंगे। अभी संयंत्र आधी से भी कम क्षमता से चल रहे हैं। क्योंकि कंपनियां कोयले की 950 करोड़ रुपये से अधिक राशि कोल कंपनियों को नहीं चुका पाई हैं। इसलिए उन्हें कोयले के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। क्योंकि कोल कंपनियां नकद भुगतान करने वालों को पहले और गुणवत्ता का कोयला दे रही हैं। यही कारण है कि प्रदेश को कम गुणवत्ता का कोयला मिल रहा है।

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