मप्र में जल स्रोतों का टोटा

  • नीति आयोग की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता

देश में सबसे अधिक वन संपदा, नदियों और अन्य जल स्रोतों से परिपूर्ण मप्र में जल संकट का खतरा मंडरा रहा है। वैसे तो हर साल प्रदेश में गर्मियों के दिनों में लोगों को पानी के लिए पसीना बहाना पड़ता है, लेकिन हाल ही में नीति आयोग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मप्र में तेजी से भूजल स्तर नीचे जा रहा है। वहीं प्रदेश के अधिकांश जल स्रोत अतिक्रमण की चपेट में आ गए हैं। जल स्रोतों का टोटा होने से मप्र भयंकर सूखे की कगार पर खड़ा है।

भोपाल/विनोद कुमार उपाध्याय। मप्र में लोकसभा चुनाव के प्रचार के साथ ही पारे में भी गर्माहट बढऩे लगी है। पारा जैसे-जैसे बढ़ रहा है जल स्रोत सूखने लगे हैं। इस कारण प्रदेश के कई गांवों में अभी से जल संकट गहराने लगा है। हालात बिगडऩे लगे हैं। सरकारी आंकड़ों को देखे तो कई पेयजल स्रोत सूखने लगे हैं। कुएं, हैंडपंप और ट्यूबवेल में पानी नहीं है। इसके अलावा कई जगह तो विभिन्न कारणों से भी यह संकट पैदा हुआ है। चुनाव की आचार संहिता के कारण सरकारी मशिनरी भी कुछ करने की स्थिति में नहीं है। गांवों में पेयजल के लिए परेशान हो पड़ रहा है। कहीं बिजली कनेक्शन नहीं मिलने तो कहीं मोटर पंप खराब होने से और कहीं पेयजल स्रोत सूखने से गांवों और पंचायतों में नल- जल योजनाएं बंद पड़ी होने से ऐसे हालात बने हैं। मप्र में पानी की कहानी रुलाने वाली है। मार्च 2023 में इंदौर हादसे में 36 लोगों की जान जाने के बाद प्रदेश भर में कुओं-बावडिय़ों के सर्वे कराने और अवैध कब्जे हटाने के आदेश हुए। यह रिपोर्ट भले ही तैयार न हो पाई हो, लेकिन सरकार की एक अन्य रिपोर्ट ने चौंका दिया है। प्रदेश के 8 हजार जल स्त्रोत पूरी तरह से सूख चुके हैं। 1366 वॉटर बॉडीज पर न सिर्फ कब्जा है, बल्कि इन पर निर्माण भी हो चुका है। यह स्थिति तब है, जब गर्मियों में प्रदेश के कई ग्रामीण इलाकों में लोग पानी के लिए रोते हैं। प्रदेश के आधे से ज्यादा तालाबों का पानी न पीने के लिए उपयोग हो पता है और न दूसरे काम में। जलशक्ति मंत्रालय द्वारा देश भर की वॉटर बॉडीज की रिपोर्ट तैयार कराई गई है। इस रिपोर्ट में मप्र की जल संरचनाओं को लेकर स्थिति चिंताजनक मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में कुल 16 फीसदी वॉटर बॉडीज का उपयोग ही नहीं किया जा रहा, जबकि मप्र में यह आंकड़ा करीब 45 फीसदी है। यानी प्रदेश में करीबन आधे जल स्त्रोतों का उपयोग किया ही नहीं जा रहा, जबकि मप्र के ग्रामीण इलाकों में पानी को लेकर परेशानी पैदा होती है। रिपोर्ट के मुताबिक मप्र में कुल मिलाकार 82 हजार 643 वॉटर बॉडीज मौजूद हैं। इसमें से शहरों में 1520 तालाब, 1 वॉटर कंजर्वेशन स्कीम और 110 दूसरे जल स्त्रोत हैं, इस तरह कुल 1631 वॉटर बॉडीज हैं। प्रदेश के गांवों में 78298 तालाब हैं। इसके अलावा 71 टैंक, 30 झील, 75 तालाब और 337 जल संरक्षण स्कीम और डेम, इसके अलावा 2201 दूसरे तरह के जलस्त्रोत मौजूद हैं। मप्र में मौजूद कुल जल स्त्रोतों में से 36 हजार 628 तालाबों का उपयोग सिंचाई, उद्योग और पेयजल के लिए उपयोग हो रहे हैं। 43190 तालाबों के पानी का कोई उपयोग ही नहीं हो रहा है। केन्द्र सरकार की रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रदेश की 8 हजार 36 वॉटर बॉडीज सूख चुकी है। जिसकी वजह से इसका उपयोग निस्तार और पेयजल के लिए किया जाना संभव नहीं हैं। प्रदेश में 1366 वॉटर बॉडीज ऐसी हैं, जिस पर न सिर्फ अतिक्रमण हो चुका है, बल्कि उन पर निर्माण भी किया जा चुका है। 917 जल स्त्रोतों की हालत तो यह है कि इसमें अब सुधार कर पाना भी संभव नहीं है। जल स्त्रोतों पर अतिक्रमण के कई उदाहरण हाल ही में सामने आ चुके हैं। इसमें एक इंदौर का है, जिसमें मंदिर में मौजूद बावड़ी के ऊपर पक्का निर्माण किया गया था। जिसके टूटने से 36 लोगों की जान गई थी। घटना के बाद यहां से प्रशासन ने अतिक्रमण को हटाया। ग्वालियर में एक बावडी के ऊपर मल्टी का निर्माण कर दिया गया, जिसकी जांच जिला प्रशासन द्वारा कराई जा रही है। झीलों की नगरी के रूप में पहचानी जाने वाली भोपाल के कई छोटे तालाबों पर कब्जे किए जा चुके हैं, जिससे वह खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। इन पर से अतिक्रमण हटाने कोर्ट तक निर्देश दे चुका है। सागर जिले की प्रसिद्ध बंजारा झील अतिक्रमण की चपेट में है। रसूखदारों के कब्जे को हटाने के लिए एनजीटी भी आदेश दे चुकी है।

10 साल में 10 मीटर खिसका भूजल
केंद्रीय जल आयोग के साप्ताहिक आंकडे तो और डराने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश भर के 91 बड़े जलाशयों में पानी का स्तर पिछले 10 सालों में सबसे कम है। पूर्व के जलाशयों में 44 फीसदी, दक्षिण भारत में 20 फीसदी, मध्य भारत में 36 फीसदी, पश्चिमी में 26 फीसदी और उत्तर के जलाशयों में मात्र 27 फीसदी पानी शेष है। मप्र में वर्तमान में 16 शहरों में बड़ा जल संकट देखने को मिल रहा है। इंदौर शहर के कई हिस्सों में पिछले दस सालों की तुलना में 10 मीटर तक भूजल स्तर कम हुआ है, लेकिन वॉटर लेवल बढाने के लिए जिम्मेदारों के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। बल्कि वह आंख बंदकर भयावह स्थिति बनने का इंतजार कर रहे हैं। कई साल पहले जल संचय के लिए बने रिचार्ज पिट पिछले कुछ सालों से खराब हैं। गर्मी शुरू होने से पहले जिम्मेदारों ने टैंकर संचालन और उसकी योजना तैयार कर ली, लेकिन रिचार्ज पिट सुधारने पर ध्यान नहीं दिया और ना ही रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को लेकर योजना बनाई है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट के अनुसार, इंदौर में भूजल का स्तर क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गया है। इसी तरह लगातार भूजल दोहन के कारण भविष्य में सूखे का खतरा बढ़ सकता है। भूजल स्तर पिछले 10 वर्षों में 10 मीटर से अधिक गिर गया है। यह गिरावट बढ़ती आबादी, अनियंत्रित भूजल दोहन, अनियंत्रित शहर विस्तार और जल संचय की कमी के कारण हुई है। इसके लिए करीब 8-10 वर्ष पहले शहरभर में 100 से अधिक रिचार्ज पिट बनाए गए थे। यह रहवासी, व्यवसायिक और सार्वजनिक स्थानों पर थे, ताकि बल्क में निकलने वाला पानी यहां पहुंचे और फिर से यह पानी भूमि जल में मिल सके। यह रिचार्ज पिट अब खराब हो चुके हैं। पिट में जमा गाद को निकाल कर फिल्टर मैटेरियल डालना है। इसमें मामूली खर्च ही होगा।
जानकारी के मुताबिक, इंदौर में भूजल का स्तर 2012 में 150 मीटर था, जो 2023 में 160 मीटर से अधिक हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भूजल दोहन इसी गति से जारी रहा, तो 2030 तक भूजल स्तर 200 मीटर से अधिक गहरा हो सकता है। भूजल स्तर में गिरावट के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इंदौर शहर में पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत नर्मदा नदी है। नर्मदा नदी का पानी शहर में पाइपलाइन के माध्यम से पहुंचाया जाता है। हालांकि, बढ़ती आबादी और अनियंत्रित भूजल दोहन के कारण नर्मदा नदी पर भी दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ ही शहर में पानी सप्लाइ के लिए यशवंत सागर भी मददगार साबित होता है, लेकिन रिपोर्ट में हवाला दिया गया कि इंदौर और आसपास के क्षेत्र में जितना पानी का दोहन किया जा रहा है, उससे कम जल संचय और पुनर्भरण किया जा रहा है, जो घातक है। शहर में पिछले कई सालों से पानी बचाने की बातें की जा रही हैं, लेकिन पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए। इसी का नतीजा है कि इंदौर शहर का ग्राउंड वॉटर क्रिटिकल (गंभीर) कैटेगरी में आ गया है। इंदौर में महू सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में है। इंदौर अर्बन क्रिटिकल और देपालपुर, इंदौर और सांवेर ओवर एक्सप्लॉइटेड कैटेगरी में है। यहां क्षमता से अधिक पानी का दोहन किया जा रहा है। शहर में कई क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां जल स्तर बढ़ा है, लेकिन पानी दोहन अधिक किया गया जबकि संचय कम हुआ है। शहर के भूजल की मौजूदा स्थिति को जानने के बाद भी जिम्मेदार अफसरों की ओर से पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। हाल ही में एमआइसी बैठक में शहरभर में जलसंकट से निपटने के लिए टैंकरों के संचालन के लिए योजना बना ली गई, लेकिन जल का पुनर्भरण कैसे हो ? इसका संचय कैसे हो ? इस पर अब भी कोई खास ध्यान नहीं है। शहरभर में एक साल पहले एक लाख से अधिक रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इंस्टाल किए गए थे, लेकिन वर्ष 2023 में सिर्फ तीन हजार रैन वॉटर हार्वेस्टिंग ही हो सके। कई सरकारी भवनों में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं। बावजूद शहर में धड़ल्ले से बोरिंग किए जा रहे हैं। इस साल भी अब तक निगम ने वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए कोई कार्य योजना नहीं बनाई है, जबकि कई कंपनियां सीएसआर से यह काम करने को तैयार भी हैं।

नीति आयोग ने किया अलर्ट
हाल ही में नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि अगले एक दशक में देशभर के करीब 30 शहरों में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। इसमें दक्षिण राज्य के कई शहर हैं और एमपी का इंदौर इस सूची में शामिल है। जिन शहरों की स्थिति सेमी क्रिटिकल वाली है, उनमें बड़ोद, कोतमा, इशागड, चंदेरी, राजपुर, बैतूल, मुलताई, बैरसिया, भोपाल उर्बन, फंदा, बुरहानपुर, छतरपुर, बिजावर, नौगाँव, मोखेड़ा, पांदूर्ना, पथरिया, खातेगांव, ग्वालियर अर्बन, महू आदि हैं। वहीं अतिदोहित शहरों की श्रेणी में नलखेड़ा, पानसेमल, सोनकच्छ, देवास, नालछा, धार, बदनावर, देपालपुर, इंदौर, सांवेर आदि शामिल हैं। जबकि क्रिटिकल श्रेणी में छिंदवाड़ा, तिरला, इंदौर अर्बन का नाम है। पीएचई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट जारी हुई है। जल संचय के लिए अधिक प्रयास अभी से करना होगा, हालांकि पहले से ही नियम है कि सभी स्थानों पर वॉटर हार्वेस्टिंग किया जाना चाहिए, लेकिन इस नियम का सख्ती से पालन नहीं हो पा रहा है। अब इसका पालन करवाने के लिए प्लान बनाना होगा। जल्द ही इसको लेकर काम शुरू करेंगे। जल प्रबंधन विशेषज्ञ सुरेश एमजी का कहना है कि फिलहाल शहर में भूजल स्तर बिलकुल ठीक स्थिति में नहीं है। शहर को जितने पानी की मांग है, उससे कम सप्लाई है। इसके अतिरिक्त पानी की खपत भूमि के पानी से ही पूरी होती है। यह एक तरीके से शहर का फिक्स डिपॉजिट था। अब इसे भी खत्म कर लिया गया है। जल संचय पर काम करना होगा और धड़ल्ले से हो रहे बोरिंग पर रोक लगाना होगी। नहीं तो इसी साल जलसंकट के हालात शहर में होंगे।
प्रदेश में बुंदेलखंड गरीबी और सूखे के लिए कुख्यात है। अभी गर्मी पूरे शबाब पर नहीं पहुंची है, लेकिन छतरपुर में लोग शाम होते ही घर छोड़ देते हैं और कई कई किलोमीटर का सफर करने के बाद एक पहाड़ से बहने वाले झरने से बूंद बूंद पानी इक_ा कर सुबह घर लौटते हैं। मौसम विज्ञानी इसका कारण बढ़ते सूखे के प्रभाव को मानते हैं। जिसकी वजह से जमीन के नीचे मौजूद जल तो तेजी से सूख ही रहा है पर्याप्त वर्षा न होने के कारण धरती भी लगातार बंजर होती जा रही है। लोगों पर इसकी दोहरी मार पड़ रही है एक ओर जहां देश की आधे से ज्यादा आबादी पीने के पानी के लिए तरस रही है वहीं साल दर साल खेती भी चौपट होती जा रही है। मोटे मोटे अनुमान के मुताबिक पिछले तीन सालों में देश में दस फीसदी कम वर्षा हुई है। जिसका परिणाम अनाज की आसमान छूती कीमतों के रूप में हम देख चुके हैं। पानी की यह किल्लत सरकारी फाइलों में बेशक अभी उतनी विकराल नजर न आ रही हो लेकिन तमाम सर्वेक्षण और शोध साफ तौर पर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि हम समय रहते न सुधरे तो साल 2025 तक देश की 50 फीसदी आबादी भयंकर जल संकट झेलने को मजबूर होगी। हालांकि पानी को लेकर यह स्थिति भारत ही नहीं तमाम देशों में देखने को मिल रही है लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में इस संकट से निपटना ज्यादा मुश्किल होगा। भारत में बढ़ती आबादी का दबाव, आर्थिक विकास और लचर सरकारी नीतियों ने जल स्त्रोतों के अत्याधिक प्रयोग और प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। पुनर्भरण से दुगनी दर पर जमीन के पानी को बाहर निकाला जा रहा है जिससे जलस्तर हर साल 1 से 3 मीटर नीचे गिर जाता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की बीस बड़ी नदियों में से पांच का नदी बेसिन पानी की कमी के मानक 1000 घन मीटर प्रति वर्ष से कम है और अगले तीन दशकों में इसमें पांच और नदी बेसिन भी जुड़ेंगे।

बेहिसाब भूजल दोहन से बिगड़ रहे हालात
हालांकि सूखे और अकाल की समस्या के लिए सारा दोष प्रकृति के सिर मढऩा भी सही नहीं है, यह समस्या कुछ हद तक मानवजनित भी है। पानी की बेहिसाब बर्बादी, भूजल का अकूत दोहन, जल का उचित प्रबंधन न होना और जल स्रोतों का लगातार दूषित होना भी इस समस्या को और बढ़ावा दे रहा है। भारत में आधे से ज्यादा नदियां सूखकर जहां आज गंदे नाले का रूप ले चुकी हैं वहीं सदा नीरा कही जाने वाली गंगा और यमुना अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। खुद जल मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि भारत का 70 फीसदी सतही जल जैविक व जहरीले रसायनों से प्रदूषित है। इसके अलावा सूखे से बचाने और भूजल स्तर को नियंत्रित रखने में सबसे बड़े मददगार कहे जाने वाले तालाब और पोखर तो अब अपना अस्तित्व ही खो चुके हैं। ये सरकारी विभागों के नक्शे में तो हैं लेकिन धरती के नक्शे में नहीं। केन्द्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में दायर रिपोर्ट में मान चुकी है कि देश में 80 फीसदी से ज्यादा तालाबों पर कब्जे हो चुके हैं। अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी पीढिय़ों को विरासत में ऐसी धरती देकर जाएंगे जहां जीवन जीने की गुंजाइश न के बराबर रह जाएगी। दुनिया भर में बढ़ता तापमान अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी साथ ला रहा है, जिनकी जद से भारत भी बाहर नहीं है। ऐसी ही एक समस्या देश में गहराता जल संकट है जो जलवायु में आते बदलावों के साथ और गंभीर रूप ले रहा है। इस बारे में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान और गर्म जलवायु के चलते भारत आने वाले दशकों में अपने भूजल का कहीं ज्यादा तेजी से दोहन कर सकता है। अनुमान है कि इसके चलते 2040 से 2080 के बीच भूजल में आती गिरावट की दर तीन गुणा बढ़ सकती है।
गौरतलब है कि भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल का दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जोकि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है। लेकिन जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है, खेत तेजी से सूख रहे हैं। इसके साथ ही मिट्टी में नमी को सोखने की क्षमता भी घट रही है, जिसकी वजह से भारत में भूजल स्रोतों को रिचार्ज होने के लिए पर्याप्त जल नहीं मिल रहा है। नतीजन साल दर साल देश में भूजल का स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। अनुमान है कि बढ़ते तापमान के साथ जल उपलब्धता में आने वाली इस गिरावट के चलते एक तिहाई लोगों की जीविका पर खतरा मंडराने लगेगा। इसके न केवल भारत में बल्कि वैश्विक परिणाम भी सामने आएंगें। साथ ही इससे देश में खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो जाएगा। बता दें कि दुनिया भर में भूमिगत जल, साफ पानी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला स्रोत हैं। आंकड़ों की मानें तो वैश्विक स्तर पर करीब 200 करोड़ लोग, अपनी रोजमर्रा की जरूरतों और सिंचाई के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं। रिसर्च के अनुसार दुनिया की 20 फीसदी आबादी इन भूजल स्रोतों द्वारा सिंचित फसलों का उपभोग का रही है। हालांकि बढ़ती आबादी और उनकी जरूरतों के साथ इन भूजल स्रोतों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि 2050 तक दुनिया के 79 फीसदी तक भूजल स्रोत खत्म हो जाएंगे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उत्तर भारत जोकि देश में गेहूं और चावल का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है, वहां 5,400 करोड़ घन मीटर प्रति वर्ष की दर से भूजल घट रहा है। नीति आयोग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में देश में लगातार घटते भूजल के स्तर को लेकर चिंता जताई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार भूजल में आ रही यह गिरावट 2030 तक गंभीर खतरे का रूप ले लेगी। इतना ही नहीं 2020 तक दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 शहरों में भूजल करीब-करीब खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में भूजल का स्तर औसत से 27.8 फीसदी तक घट गया है। वहीं कोलकाता में भी भूजल में 18.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं अनुमान है कि 2025 तक कोलकाता के जल स्तर में 44 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

आज उठाए कदमों पर निर्भर है कल का भविष्य
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई वल्र्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 में जारी आंकड़ों से पता चला है कि 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसदी तक बढ़ जाएगी। वहीं यदि मौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया भर में शहरों में रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। वहीं अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढक़र 240 करोड़ तक जा सकता है। इससे भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा, जहां पानी को लेकर होने वाली खींचातानी कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी। गौरतलब है कि भूजल के संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार ने मार्च 2018 में अटल भूजल योजना का प्रस्ताव रखा था। जिसे विश्व बैंक की सहायता से 2018-19 से 2022-23 की पांच वर्ष की अवधि के लिए कार्यान्वित किया जाना है। इस योजना लक्ष्य गिरते भूजल का गंभीर संकट झेल रहे सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मप्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में संयुक्त भागीदारी से भूजल का उचित और बेहतर प्रबंधन करना है। भारत में गिरते भूजल की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने जलदूत नामक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया है। इसका मकसद भारत के गांवों में गिरते भूजल के जलस्तर का पता लगाना है, जिससे पानी की समस्या को दूर किया जा सके। मप्र में नल जल योजना की सफलता के दावों के बीच कई गांव ऐसे हैं, जहां भीषण जलसंकट है। महाकौशल इलाके में सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जहां गर्मी के मौसम में लोग बूंद-बूंद को मोहताज हो जाते हैं। जबलपुर के सिहोरा से बीजेपी विधायक खुद स्वीकार करते हैं कि उनके क्षेत्र के 55 गांवों में भीषण पेयजल संकट है। जबलपुर शहर से कुंडम जाते हुए एक सडक़ दाएं तरफ बढ़ती है। इस सडक़ में लगभग 6 किलोमीटर चलने पर एक गांव आता है। इसे डूंगर गांव के नाम से जाना जाता है। इस गांव की आबादी लगभग 500 है। यह गांव पूरी तरह से आदिवासी गांव है। इसमें गोंड आदिवासी रहते हैं। लोगों ने बताया कि खेत में एक कुआं है। उससे 10 महीने तो पानी मिल जाता है लेकिन गर्मी के दो महीने में बड़ी दिक्कत होती है। यह कुआं भी सूख जाता है। ऐसा नहीं है कि गांव में सरकार की नल जल योजना ना पहुंची हो लेकिन यहां पाइपों से पानी की जगह हवा निकल रही है। गांव वालों का कहना है कि पाइप डालकर खानापूरी हो गई है। मध्य प्रदेश सरकार के पीएची विभाग की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश में कुल मिलाकर 18192 गांव में जल योजनाओं के माध्यम से पानी पहुंचाने की योजना सरकार ने बनाई थी। 2023-24 की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी आंकड़ों में 17900 गांवों में नल जल योजना के माध्यम से पानी पहुंच चुका है और केवल 292 गांव ऐसे हैं, जिनमे नल जल योजना के माध्यम से पानी नहीं पहुंचा। आंकड़ों के अनुसार पूरे प्रदेश में मात्र 300 गांव ही ऐसे बचे हैं, जिनमें नल जल योजना के माध्यम से पानी नहीं पहुंचा। सरकारी आंकड़ों की पोल खुद उनके ही पार्टी के विधायक संतोष बडक़ड़े खोल रहे हैं। ग्रामीण लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अनुसार जबलपुर में 375 गांवों में नल जल योजना के माध्यम से पानी की टंकियां रखवाई गईं और पाइपलाइन के जरिए घर-घर पानी पहुंचाया गया। इनमें से 367 गांवों में योजना सही काम कर रही है और केवल 9 गांवों में ही पीने के पानी की किल्लत है, जबकि सिहोरा से बीजेपी विधायक संतोष वरकडे का कहना है केवल उनकी विधानसभा सीट में ही 55 गांव ऐसे हैं जहां पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि यहां लिफ्ट इरीगेशन के जरिए पानी पहुंचाया जाए। हालांकि संतोष पहली बार विधायक बने हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी यहां बीते 20 सालों से लगातार जीतती आ रही है। जबलपुर के कुंडम इलाके से ही पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है, जो आगे मंडल उमरिया कटनी तक फैला हुआ है। इस पूरे इलाके में पीने के पानी की बड़ी समस्या है। कहीं-कहीं पर बरसाती पानी रुक जाता है तो इसका इस्तेमाल गांव के लोग साल भर कर लेते हैं और कई जगहों पर भूमिगत जल मिलता ही नहीं है तो गांव वाले गर्मियों में पलायन कर जाते हैं। मध्य प्रदेश में पानी की सबसे ज्यादा कमी सतना इलाके में है, यहां पीने के पानी की भारी समस्या है और गर्मियों में यहां कई गांवों में पीने का पानी नहीं होता। हर बार चुनाव में नेता वादा करते हैं कि जल्द ही यहां बांध बनाया जाएगा या किसी बड़े बांध से नहर लाकर पानी दिया जाएगा लेकिन बीते 20 सालों से लोग केवल वादे ही सुन रहे हैं। थोड़ी ठीक-ठाक स्थिति दमोह, पन्ना और सागर जिलों की है क्योंकि यहां भारत सरकार में जल शक्ति मंत्री रहे प्रहलाद पटेल सांसद थे। इसी दौरान उन्होंने इस पूरे इलाके में गांव-गांव तक पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन डलवा दी थी। इसलिए इस इलाके पथरीली जमीन होने के बाद भी पाइपलाइन के जरिए आने वाले पानी से गर्मियों में पानी की समस्या नहीं होती।
अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ जनपद लोग आज भी पीने के पानी के लियें रोज जद्दो-जहद करतें हैं। यहा पर बसे 45 परिवार के लोग अपनी प्यास बुझाने के लियें रोज 2 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर पड़ोसी गांव से पानी लातें हैं । आज भी यहां के लोग पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लियें भीषण ठंड मे कड़ी मेहनत करते हैं। यहां हर दिन सुबह बड़ी संख्या मे ग्रमीण इक_ा होते हैं और एक साथ पानी लाने के लिये बकान गांव के लियें निकलते हैं। इस गांव के 45 परिवारों के 300 लोगों को हर दिन पेयजल के लिए परेशान होना पड़ता है। गांव के लोगों का कहना है कि पीढिय़ों से वे रोज ऐसे ही पहाड़ी और जंगल के रास्तों का सफर तय करते हुए पीने के पानी के लिये बकान गांव जाते हैं। सरकार के अधूरे प्रयास के चलतें 6 महीने पूर्व पानी के लिये बोर किया गया था पर काम अधूरा पड़ा है। जिले के पीएचई विभाग की नाकामी ग्रामीणों की परेशानी बन गई है और सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी व्यवस्था फेल हो गयी। परेशानी जस के तस बनी हुई है। सदियों से ग्रमीण पानी की समस्या से जूझ रहें हैं। प्रशासन की योजना दम तोड़ती नजर आ रही हैं। पीएचई विभाग ने पूर्व में 2 से 3 हैंडपंप खनन करवाए हैं, पर वो किसी काम के नहीं हैं। उनमे से पानी नही आता है। जानकारी के मुताबिक यहां उत्खनन से पहले जलस्तर का सर्वे नहीं किया। इस वजह से सारे बोर फ़ेल हो गये। अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ गांव की सरपंच गिरजा देवी का कहना है कि पानी की समस्या को सुलझाने के लिये कई तरह के प्रयास किये गये। कलेक्टर के पास टैंकर से पानी के लिये आवेदन किया गया। पंचायत पुष्पराजगढ़ के अध्यक्ष मिथलेश सिंह मरावी का कहना कि जल्द ही कलेक्टर से बात कर पानी की व्यवस्था कराई जाएगी।

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