बा खबर असरदार/चुनावी तैयारी में साहब

  • हरीश फतेहचंदानी
चुनाव

चुनावी तैयारी में साहब
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, मैदान में ताल ठोंकने वालों की लालसा भी बढ़ती जा रही है। नेता तो नेता कई नौकरशाह भी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इनमें से एक हैं 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी। ये साहब विगत वर्षों में अपने पारिवारिक विवादों के कारण चर्चा में रहे हैं। जिसके कारण इन्हें नौकरी से निलंबन का भी सामना करना पड़ा था। हालांकि अब उनका निलंबन निरस्त हो चुका है। साहब दोबारा अपने पद पर काम कर रहे हैं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उनका मन नौकरी से भर गया है और वे समाजसेवा करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने चुनाव लड़ने का मन बनाया है। ग्वालियर-चंबल अंचल के मूल निवासी ये साहब वहां की भाजपा के कब्जे वाली सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। देखना यह है कि साहब को कोई पार्टी मौका देने के लिए हामी भरती है या नहीं।

9 दिन में चले हजार कोस
राजधानी में पदस्थापना के बाद नौकरशाहों की गति धीमी हो जाती है, लेकिन 2010 बैच के आईएएस अधिकारी आशीष सिंह ने जबसे भोपाल जिले के सबसे बड़े पद की जिम्मेदारी संभाली है, इनके काम करने की गति ऐसी है कि लोग कहने लगे हैं कि साहब तो 9 दिन में ढाई कोस की जगह हजार कोस चल दिए। दरअसल, मालवा के दो जिलों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने के बाद साहब को जब राजधानी में मौका मिला है, तो वे सुशासन के लिए कोई मौका छोडऩा नहीं चाहते हैं। आलम यह है कि साहब कभी गेहूं खरीदी केंद्र, कभी केवायसी केंद्र, तो कभी किसी और जगह अचानक पहुंच रहे हैं। यही नहीं साहब ने अभी तक मनमानी कर रहे कई स्कूलों में ताला भी डलवा दिया है। इससे राजधानीवासियों का उन पर विश्वास बढ़ा है कि अब उनसे कोई गलत काम नहीं करवा  सकेगा।

मेरा नंबर कब आएगा
प्रदेश की राजधानी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले 2011 बैच के एक आईएएस अधिकारी पिछले कुछ वर्षों से बड़े जिले में कलेक्टरी की आस लगाए बैठे हैं। बताया जाता है कि इसके लिए साहब सरकार के हर पैमाने पर खरा उतरने के लिए हर कोशिश करते हैं। यही नहीं सूत्रों का कहना है कि हर बार उन्हें आश्वासन मिलता है कि अगली बार उन्हें बड़े जिले की बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार की गुड बुक में शामिल होने के बाद भी साहब की आस पूरी नहीं हो पा रही है। हालांकि साहब यह सोचकर मन बहला रहे हैं कि देर ही सही लेकिन सरकार उनके मनमाफिक जिले की कमान दे दें। साहब का तबादला तो निश्चित है, लेकिन कब होगा इसके बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। यह बात अलग है कि साहब जहां पदस्थ हैं , उस संस्थान से आम आदमी से लेकर कार्यकर्ता तक खुश नहीं हैं।

चर्चा में 4 अफसरों की परिक्रमा
प्रदेश के 4 आईपीएस अधिकारी इन दिनों प्रशासनिक वीथिका में चर्चा का विषय बने हुए हैं। दरअसल, इन अफसरों का तबादला कर दिया गया है, लेकिन ये अपनी मनचाही जगह पदस्थापना चाहते हैं। इसलिए ये अपनी पदस्थापना वाली जगह पर कम और भोपाल की परिक्रमा अधिक कर रहे हैं। इनमें एक हैं 2007 बैच के, दूसरे हैं 2010 बैच के, तीसरे हैं 2009 बैच के और चौथे हैं 2009 बैच के आईपीएस अधिकारी। सूत्रों का कहना है कि इन आईपीएस अफसरों को जो पूर्व पदस्थापना मिली थी, वह इनकी मर्जी से मिली थी। लेकिन चुनावी साल में सरकार ने अपनी सहूलियत के हिसाब से इन्हें जिलों में पदस्थ किया है। सूत्रों का कहना है कि ये अफसर अपने तबादले से खुश नहीं हैं। इसलिए ये राजधानी में चक्कर लगा रहे हैं, ताकि इन्हें इनके पसंद के जिले में पदस्थापना मिल सके। बताया जाता है कि इसके लिए ये नेताओं से लेकर अफसरों तक के बंगलों पर हाजिरी दे रहे हैं। लेकिन फिलहाल सरकार इनको राहत देने के मूड में नहीं है।

साहब की दरियादिली
प्रदेश में कई अफसर ऐसा कुछ कर जाते हैं जो लोगों की आंख का तारा बनने की वजह बन जाता है।  ऐसे ही छिंदवाड़ा एसडीएम अतुल सिंह इन दिनों प्रदेश की प्रशासनिक और राजनीतिक वीथिका में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। दरअसल, प्रदेश के एक आदिवासी बहुल बड़े जिले और पूर्व मुख्यमंत्री के गृह नगर में पदस्थ इन साहब ने दरियादिली दिखाते हुए तीन माह की बच्ची को खुद के खर्च पर एंबुलेंस से रायपुर के अस्पताल भेजा है। दरअसल एक तीन माह की बच्ची दिल की गंभीर बीमारी से जूझ रही थी, जिसको तत्काल रायपुर के निजी अस्पताल में एडमिट कराना था। माता-पिता की पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उन्होंने मदद की गुहार लगाई। जैसे ही साहब के संज्ञान में ये मामला आया। उन्होंने तत्काल दरियादिली दिखाते हुए खुद के खर्चे पर एंबुलेंस और ऑक्सीजन की व्यवस्था करवाकर मासूम बच्ची को इलाज के लिए रायपुर रेफर कराया।

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