बिहाइंड द कर्टन/आखिर तन्खा ने लगा ही दिया मानहानि का केस

 विवेक कृष्ण तन्खा

प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।

आखिर तन्खा ने लगा ही दिया मानहानि का केस
भाजपा के तीन दिग्गज नेताओं को ओबीसी आरक्षण मामले में गलत बयानबाजी भरी पड़ने वाली है। इसकी वजह है राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा द्वारा इन नेताओं के खिलाफ अदालत में मानहानि का केसा दायर करना। यह भाजपा नेता हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा व नगरीय कल्याण एवं विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह। इनके खिलाफ 10 करोड़ रुपए की मानहानि का केस लगाया गया है। इस मामले में तन्खा की ओर से पूर्व महाधिवक्ता शशांक शेखर ने जबलपुर की जिला अदालत में मुक दमा दायर किया। इसके लिए कोर्ट फीस के रूप में डेढ़ लाख रुपए का चेक भी जमा करा दिया गया है। इस पर अगले सप्ताह सुनवाई होगी। दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंचायत चुनाव में ओबीसी सीटों के निर्वाचन पर रोक लगाए जाने के बाद शिवराज, शर्मा व भूपेंद्र ने इसके लिए तन्खा को जिम्मेदार ठहराया था।

और दे दी जांच में क्लीनचिट
मुख्यमंत्री और सरकार भले ही भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दें, लेकिन प्रदेश के अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसका उदाहरण है 90 लाख के आर्थिक अनियमितता के आरोपी आईएफएस अधिकारी देवांशु शेखर की जांच रिपोर्ट। इस रिपोर्ट में उन्हें पूरी तरह से न केवल क्लीनचिट
दे दी गई है, बल्कि उनकी पदस्थापना भी बेहद महत्वपूर्ण पद पर भी कर दी गई है। इससे इस रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। आईएफएस अधिकारी देवांशु शेखर पर 90 लाख रुपए की गड़बड़ी करने के आरोपों की जांच मुख्य वन संरक्षक रीवा एके सिंह को दी गई थी। खास बात यह है कि मामले को रफा-दफा करने के लिए शेखर की पदस्थापना भी प्रशासन-एक में कर दी गई। शेखर को इस गड़बड़ी के मामले में निलंबित भी किया गया था। उस समय वे डीएफओ उत्तर शहडोल में पदस्थ थे। उस समय उनके द्वारा अधोसंरचना विकास कार्यों में गड़बड़ी करते हुए 96 लाख 22458 रुपए की गड़बड़ी की गई थी। इसके लिए पूर्व बनी सड़कों को भी कागजों में नया बना बताकर उसका भी भुगतान कर दिया गया था।

कांग्रेस की आदत बनी हिंदुओं की आस्था पर चोट करना  
प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस की आदत हिंदुओं की आस्था पर चोट करने की बन चुकी है। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रसाद जैसे शब्द को कोरोना से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि इससे पता चल जाता है कि कांग्रेस की मानसिकता क्या है। मिश्रा का कहना है कि जहां हमारी आस्था जुड़ती है, उसे कांग्रेस के लोग बदनाम करते हैं। कमलनाथ ने महान भारत को बदनाम भारत कहा था, उन्होंने इंडियन कोरोना वेरिएंट कहा था। अब प्रसाद को कह रहे हैं कि कोरोना का प्रसाद बांट रहे हैं। यह निंदाजनक बात है। आस्था पर चोट नहीं करना चाहिए। हमारे प्रतीकों और आस्थाओं पर चोट पहुंचाने की कांग्रेस को आदत हो गई है।

पुलिस की नाकामी से हो रही सूबे की बदनामी
वैसे तो मप्र को शांति का टापू कहा जाता है, लेकिन इसके बाद भी अपराधियों के मामले में मप्र की बदनामी हो रही है। इसकी वजह है पुलिस की नाकामी। प्रदेश की पुलिस का इंटेलिजेंस ऐसा है कि उसे पता ही नहीं चलता है कि कब कौन से प्रदेश का बड़ा अपराधी आकर मप्र को अपना ठिकाना बना लेता है। यह तो पता तब चलता है जबकि दूसरे प्रदेश की पुलिस आकर उसे गिरफ्तार कर लेती है या फिर आरोपी खुद ही अपनी पहचान उजागर कर देता है। इस तरह के कई मामले सालों से सामने आ रहे हैं। फिर मामला आसाराम का हो या फिर विकास दुबे और अब कालीचरण का। इनके अलावा कई और ऐसे नाम हैं तो प्रदेश से पकड़े गए हैं। खास बात यह है कि प्रदेश से पकड़े जाने वाले लोग दूसरे राज्यों में पुलिस से बचने के लिए मप्र आकर अपना ठिकाना बना लेते हैं। इसकी वजह से यह सवाल खड़ा होने लगा है कि  मप्र क्या कानून से बचने का सुरक्षित शरणगाह बन चुका है। इससे प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल भी खड़ा होने लगा है। ऐसा ही जारी रहा तो वह दिन दूर नही हैं जब प्रदेश की पहचान अपराधियों की शरणगाह के रुप में होने लगेगी। 

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