बिहाइंड द कर्टन/शायद उखड़ जाएं अंगद के जमे पैर

  • प्रणव बजाज
आबकारी महकमे

शायद उखड़ जाएं अंगद के जमे पैर
भोपाल में आबकारी महकमे के कुछ अफसर ऐसे हैं जो एक दो नहीं बल्कि दस से पंन्द्रह सालों से जमे हुए हैं। सूबे में सरकार बदली, मंत्री बदले और प्रमुख सचिव भी बदले, लेकिन मजाल है की इन अफसरों को कोई भी इधर, से उधर कर सका हो। खास बात यह है की इस बीच कई चुनाव भी हुए, लेकिन उनकी सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सका। अब एक बार फिर ऐसे अफसरों की सूची राज्य निर्वाचन आयोग को दी गई, जिसके बाद लग रहा है की शायद इन अफसरों व कर्मचारियों का तबादला हो सकता है, लेकिन यह तो समय ही बताएगा कि वे एक बार फिर भारी पड़ते हैं या नहीं। अंगद के पांव बन चुके इन अफसरों में हुकुम सिंह भदौरिया 15 सालों से शेखर लिखर 13, धर्मेंप्द्र जोशी, प्रीति चौबे और ओम प्रकाश जामोद 12-12 सालों से जबकि गोपाल यादव, वर्ष उइके 11 सालों से, शहनाज कुरैशी और बवीता भट्ट 10-10 सालों से  और अभिलाश पाठक, अतुल दुबे 9 और प्रतिभा सिसौदिया 7 सालों से एक ही जगह जमे हुए हैं।

दो मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर
परिवार वाद से दूरी बनाने का दाव करने वाली भाजपा के मंत्री और अन्य नेता इन दिनों पंचायत चुनाव में जमकर पार्टी के इस दावे की धज्जियां उड़ा रहे हैं। भाजपा नेताओं के परिजन संरपच से लेकर जिला पंचयात सदस्य के लिए मैदान में ताल ठोक रहे हैं। हद तो यह है की कई नेता तो ऐसे हैं जिनके कुनबे के कई सदस्य एक साथ चुनावी मैदान में उतर गए हैं। ऐसे में सबसे अधिक दिलचस्प हालात बुंदेलखंड अंचल के तहत आने वाले सागर जिले में बन रहे हैं। दरअसल इस जिले से शिव कैबिनेट के दो बेहद प्रभावशाली मंत्री के परिजन जिला पंचायत अध्यक्ष बनने की लालसा में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर अध्यक्ष का पद अनारक्षित है। यहां पर परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत के भाई हीरा सिंह नामांकन जमा करा चुके हैं तो वहीं नगरीय प्रशासन मंत्री के भतीजे अशोक सिंह ने भी इसी पद के लिए नामाकंन जमा किया है। दोनों के बीच रोचक मुकाबला होना तय है। इनमें से जो ती जाएगा उसका अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है।  इसकी चर्चा अभी से होने लगी है।

और टूट गई अदावत की दीवार
केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और शंकराचार्य स्वरूपानंद के बीच अदावत कई दशकों पुरानी है। यही वजह है कि पटेल मौका मिलते ही उनके खिलाफ झंडा बुलंद करने से पीछे नहीं रहते थे। इसकी वजह से यह दोनों शख्शियतें कई बार बेहद चर्चा में भी रहती रहीं हैं। अीेत रोज अचानक जब पटेल अपनी पत्नी के साथ झोतेश्वर में शंकराचार्य के धाम पर अचानक पहुंचे तो सभी भौंचक रह गए। माना जा रहा है की अब तीस साल पुरानी अदावत समाप्त हो गई है। फिलहाल इस बदलाव की वजह क्या है यह तो वे ही जाने , लेकिन, कांग्रेस नेता एनपी प्रजापति की मौजूदगी में हुई इस मुलाकात के मायने तो निकाले ही जाने लगे हैं। हालांकि इस मामले में पटेल का कहना है कि उनके पिता जी और उनके द्वारा शंकराचार्य महाराज से दीक्षा ली गई थी। इसकी वजह से उनका यहां आना जाना रहा है। खास बात यह है की वे आश्रम में पिता के अलावा पत्नी, भाई जालम सिंह पटेल के अलावा बेटी और अन्य परिजनों को साथ लेकर गए थे।

और आने लगे समय पर
सत्ताधारी के है दल के युवा नेता जी अपनी कार्यप्रणाली की वजह से सुर्खियों में आ ही जाते हैं। उनके पास एक सहयोगी संगठन की कमान है। छात्र राजनीति से नेता बनने वाले यह युवा पद पाने के बाद से ही अपनी कार्यप्रणाली की वजह से चर्चा में आ जाते हैं। पहले तो उन्हें संगठन के आला पदाधिकारियों की नसीहतों का सामना जिलों में इकाई गठन में देरी की वजह से सुननी पड़ी, जैसे तैसे इस मामले में राहत मिली तो उसके बाद उनकी देरी से आने की आदत ने उन्हें मुसीबत में डाल दिया। दरअसल युवा ब्रिगेड की कमान जैसा बड़ा पद मिलने के बाद जमीनी पकड़ बनाने के बजाए वे पूरी तरह से हवा- हवाई नजर आने लगे थे। दो मौकों पर पत्रकारों को बुलाकर वे स्वयं देर से पहुंचे। तीसरी बार भी उन्होंने मीडिया धैर्य की परीक्षा ली तो वह उनके लिए मुसीबत बन गई। करीब 40 मिनट देरी से आने की वजह से पत्रकारों ने उनका बहिष्कार कर दिया। वे जब आते तो मीडिया कक्ष पूरी तरह से खाली मिला। इसके बाद बहिष्कार की खबर वायरल हुई तो नेता जी के साथ ही पार्टी की भी जमकर किरकिरी हुई। इसके बाद आला नेताओं की फटकार के साथ ही उन्हें फिर नसीहत का सामना करना पड़ गया। इसके बाद तो नेता जी समय ये 15 पहले ही पहुंचकर मेजबानी करते दिखने लगे हैं।

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