
बिच्छू डॉट कॉम। उपचुनावों में हार और आने वाले विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया है। यह बात कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने मंगलवार को पीटीआई-भाषा के साथ इंटरव्यू में कही। साथ ही उन्होंने यह भी कहाकि किसान एक फैसले से राजी नहीं होने वाले हैं। उन्होंने दावा किया कि अन्नदाताओं का भरोसा मोदी सरकार से उठ चुका है। राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहाकि मोदी सरकार को न सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देनी चाहिए। बल्कि उपज की खरीद सुनिश्चित करने के लिए भी कोई नियमन या कानून बनाना चाहिए। पायलट ने कहाकि अब मोदी सरकार चाहे कुछ भी करे, किसानों के मन की पीड़ा खत्म करने में बहुत देर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में किसानों की ओर से इतना लंबा आंदोलन नहीं देखा गया। यह एक साल तक चला। अगर कानूनों को वापस ही लेना था तो लोगों की जान और जीविका को नुकसान पहुंचाने की क्या जरूरत थी। पायलट ने कहाकि किसानों को नक्सलवादी, अलगाववादी और आतंकवादी तक कहा गया। मंत्री के रिश्तेदारों ने लोगों पर गाड़ियां चढ़ा दीं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने सवाल किया कि अगर किसानों को लेकर इतनी कटुता थी तो फिर सरकार ने कानूनों को वापस लेने की घोषणा क्यों की? उन्होंने कहाकि निश्चित तौर पर राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद यह निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत सप्ताह तीनों कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इसके लिए विधायी प्रक्रिया भी पूरी होगी। पायलट ने आरोप लगाया कि कानून बनाने की घोषणा से पहले किसान संगठनों के साथ कोई बातचीत नहीं की गई। संसद में ‘प्रचंड बहुमत’ के बल पर इन कानूनों को थोप दिया गया। किसानों का गला घोंट दिया गया। कांग्रेस नेता ने जोर देकर कहा कि किसान इस सरकार को हमेशा संदेह की नजर देखेंगे। हमारे ऊपर किसानों का कर्ज है जो इस देश को अन्न मुहैया कराते हैं। इस दौरान पायलट से पूछा गया कि कृषि कानूनों पर पीछे हटने से भाजपा को आगामी चुनावों में कोई फायदा होगा? इस पर पायलट ने कहाकि गृह राज्य मंत्री (अजय मिश्रा) ने इस्तीफा नहीं दिया है। किसानों पर दर्ज किए गए मामले अब भी मौजूद हैं। लोगों ने अपने प्रियजन को खोया है। ऐसे में वो लोग उस साल को कैसे भूल सकते हैं, जिसमें उन्हें इन सबसे गुजरना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे नहीं लगता है कि हमें किसानों के आंदोलन का राजनीतिकरण करना चाहिए, लेकिन आखिरकार भारत के लोग जानते हैं कि ये कानून किसानों की मदद के लिए नहीं, बल्कि दूसरे समूहों के लिए थोपे गए थे।