भर्ती की सुस्त रफ्तार से प्रदेश में पुलिस अफसरों की भारी कमी

 पुलिस अफसरों

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। पुलिस में मैदानी स्तर पर पुलिस कर्मचारियों की निगरानी से लेकर कानून व्यवस्था तक का काम देखने वाले राज्य पुलिस सेवा के अफसरों की बेहद कमी बनी हुई है। इसकी वजह है प्रदेश में इस सेवा के अफसरों की भर्ती बेहद सुस्त होना। हालात यह हैं फिलहाल प्रदेश में डीएसपी के करीब तीन सैकड़ा अफसरों की कमी बनी हुई है। इसके बाद भी सरकार इन अफसरों की भर्ती में बेहद सुस्त बनी हुई है। इसकी वजह है राज्य सरकार द्वारा हर साल औसतन तीस पदों पर ही भर्ती की अनुमति देना। अगर यही भर्ती की रफ्तार रही तो प्रदेश में मौजूदा रिक्त पदों को ही भरने में पूरा एक दशक लग जाएगा।
इस बीच दर्जनों अफसर सेवानिवृत्त भी हो जाएंगे, जिससे पद रिक्त भी होते जाएंगे। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में डीएसपी के 1010 पद स्वीकृत हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पुलिस विभाग में डीएसपी के 237 पद रिक्त हैं, जबकि विभागीय सूत्रों के मुताबिक अब तक लगभग डीएसपी के तीन सौ से अधिक पद रिक्त हैं। यह वे पद हैं, जिन्हें सीधी भर्ती के माध्यम से भरा जाना है। प्रदेश में डीएसपी की भर्ती मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) के माध्यम से की जाती है, लेकिन कितने पदों पर भर्ती करना है, यह तय सरकार द्वारा ही किया जाता है।
सीधे डीएसपी की भर्ती करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के बाद मैदानी पदस्थापना देने में लगभग तीन साल का समय लग जाता है। इसमें एक साल भर्ती होने में लग जाते हैं। उसके बाद एक साल की उनकी ट्रेनिंग होती है। उसके बाद वे प्रशिक्षु डीएसपी के तौर पर तैनात किए जाते हैं। मध्यप्रदेश में वर्ष 2018 से 2020 के बीच यानी पिछले तीन सालों में तकरीबन 100 अफसरों की भर्ती की गई है। हर साल  के हिसाब से यह आंकड़ा औसतन 30 से 35 का है। वर्तमान में रिक्त पदों की तुलना में भर्ती होने वाले अफसरों की संख्या काफी कम है। जिस हिसाब से डीएसपी की भर्ती हो रही है, यदि इसी गति से भी आगे भी होती रही, तो रिक्त पदों को भरने में तकरीबन दस साल लग जाएंगे। चूंकि तीन साल में सेवानिवृत्त होने वाले डीएसपी की संख्या भी अच्छी खासी है, लिहाजा जब तक रिक्त पदों को भरा जाएगा, तब तक उतने ही पद और रिक्त हो जाएंगे।
इस मुद्दे पर विभाग के अफसरों की अपनी दलीलें हैं। उनका कहना है कि जो अधिकारी डीएसपी से भर्ती होते हैं, उनकी चाहत आईपीएस अफसर बनने की होती है। भर्ती के दौरान अगर बड़े बैच (ज्यादा संख्या में) होते हैं, तो उन्हें आईपीएस बनने में दिक्कत होती है। ऐसा इसलिए कि एसपीएस से आईपीएस बनने के लिए केंद्र सरकार ने 54 साल की उम्र सीमा तय है। बड़े बैच होने की वजह से सभी डीएसपी के पद पर भर्ती होने वाले अफसरों को आईपीएस बनने का मौका नहीं मिल पाता है और बहुत सारे अफसर तय उम्र की सीमा पार कर जाते हैं। इसका सीधा असर पीछे के बैच में भी पड़ता है। इसलिए सरकार ज्यादा संख्या में भर्ती की अनुमति नहीं दे रही है। विभाग में डीएसपी के रिक्त पदों की संख्या बहुत ज्यादा है और सेवानिवृत्त होने वाले अफसरों की कतार भी लंबी है। ऐसे में आगे पर्यवेक्षण करने वाले अफसरों की भारी कमी हो जाएगी। पुलिस विभाग में सीएसपी या एसडीओपी को पहला पर्यवेक्षण अधिकारी माना जाता है। ऊपर के अफसरों की कमी का उतना असर नहीं पड़ता है, जितना डीएसपी स्तर के अफसरों की कमी का पड़ता है। ऐसा इसलिए कि एक सीएसपी के ज्यादा थानों की जिम्मेदारी होने पर ढंग से सुपरवीजन नहीं हो पाता है।
आयोग ने नहीं दी अनुमति मध्यप्रदेश पुलिस में डीएसपी के स्वीकृत पदों में 50 फीसदी का फामूर्ला लागू होता है। यानी 50 फीसदी पद सीधी भर्ती और 50 फीसदी पद पदोन्नति से भरे जाते हैं। गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय की मंशा यह थी कि डीएसपी को भर्ती कर काम लेने में तीन साल लग जाते हैं, लिहाजा रिक्त पदों को पदोन्नति के जरिए भरा जाए। इसके लिए गृह विभाग ने मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग से अनुमति मांगी थी। आयोग ने अनुमति नहीं दी और कहा कि रिक्त पदों को सीधी भर्ती से भरा जाए। ऐसे में अब रिक्त पदों को भरने के लिए भी जरूरी हो गई।
कार्यवाहक डीएसपी के बाद भी पद रिक्त
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के इनकार करने के बाद पुलिस विभाग निरीक्षकों को कार्यवाहक  डीएसपी का प्रभार देकर भी काम नहीं चला पाएगा। ऐसा इसलिए कि सिर्फ पदोन्नति वाले पदों पर पदोन्नति दी जाएगी। सीधी भर्ती के पदों को पदोन्नति से नहीं भरा जाएगा। भर्ती की रफ्तार इसलिए भी धीमी की गई थी कि आयोग ने एक बार सीधी भर्ती के पदों को पदोन्नति से भरे जाने की अनुमति दे दी थी। तब सरकार ने सीधी भर्ती के रिक्त पदों की पूर्ति पदोन्नति के जरिए कर ली थी। इस बार आयोग ने इसकी अनुमति नहीं दी, लिहाजा इस मामले में पेंच फंस गया है।

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