
- खंडवा और रैगांव में अपने दिवंगत सांसद, विधायक के पुत्रों को टिकट न देकर पार्टी ने दिया बड़ा संदेश
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र भाजपा के दिग्गज नेताओं के पुत्रों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। क्योंकि भाजपा ने हाल ही में हुए उपचुनाव में खंडवा और रैगांव में अपने दिवंगत सांसद, विधायक के पुत्रों को टिकट न देकर यह संदेश दे दिया है कि पार्टी में अब परिवारवाद नहीं चलेगा। इससे पहले भाजयुमो में भी नेता पुत्रों को जगह नहीं दी गई थी। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजयुमो में एक भी नेता पुत्र पदाधिकारी नहीं बना। गौरतलब है कि मप्र के कई क्षेत्रों में भाजपा हो या कांग्रेस, राजनीति में सफल नेताओं के पीछे पुत्र-पुत्री की सक्रिय भूमिका रही है। निर्वाचन क्षेत्र में सियासत के सारे सूत्र ये ही संभाल रहे हैं। अब भाजपा नेताओं को अपने पुत्रों की चिंता सताने लगी है। हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में भाजपा ने खंडवा और रैगांव में अपने दिवंगत सांसद, विधायक के पुत्रों को टिकट न देकर बड़ा संदेश दिया है। इस संदेश से कई नेता सकते में हैं। वहीं कई नेताओं के पुत्रों ने अपनी राह भी बदलनी शुरू कर दी है।
2013 से तलाश रहे जमीन
उपरोक्त नेता पुत्र 2013 से प्रदेश की राजनीति में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। इनमें से कुछ नेता पुत्रों को भाजयुमो के रास्ते राजनीति में प्रवेश दिया गया था। वहीं कुछ अपनी पिता की विरासत संभालने के लिए तैयारी कर रहे थे। 2018 में जहां दो नेता पुत्रों ने विधानसभा के लॉन्चिंग पैड से उड़ान भरी वहीं अन्य नेता पुत्रों को उम्मीद थी कि 2023 में उन्हें विधानसभा का टिकट मिल जाएगा। लेकिन उपचुनाव में भाजपा ने दिवंगत नेताओं के पुत्रों को टिकट न देकर यह संदेश दे दिया है कि प्रदेश भाजपा में परिवारवाद नहीं चलेगा। यदि पार्टी इसी नीति पर चली तो अगले चुनाव में भाजपा नेता पुत्रों के लिए पार्टी का दरवाजा पूरी तरह बंद हो जाएगा।
प्रबल ने पूरे प्रदेश में खड़ा किया नेटवर्क
भाजयुमो के सहारे प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे प्रबल सिंह तोमर को भले ही इस बार भाजयुमो में जगह नहीं मिली, लेकिन उन्होंने भावी राजनीति को देखते हुए प्रदेशभर में अपना नेटवर्क खड़ा कर लिया है। आलम यह है कि वे प्रदेश में जहां भी जाते हैं, उनके साथ 50-60 लग्जरी गाड़ियों का काफिला जुट जाता है। उनका भोपाल और इंदौर से खास लगाव है। युवाओं में उनकी दिन पर दिन पैठ बढ़ती जा रही है। लेकिन जिस तरह नेतापुत्रों के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हो रहे हैं, उससे प्रबल सिंह तोमर का राजनीतिक भविष्य भी अधर में दिख रहा है।
क्या इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा रह जाएगी अधूरी?
पार्टी के इस कदम से भाजपा के दिग्गज नेताओं को अपने पुत्रों के लिए नई राह तलाशनी होगी। गौरतलब है कि पिछले एक दशक से प्रदेश की राजनीति में भाजपा के दिग्गज नेताओं के पुत्र अपनी जगह बना रहे थे। इनमें से कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय और मंत्री हर्ष सिंह के बेटे विक्रम सिंह की राजनीतिक लॉन्चिंग 2018 में हो चुकी है और वे विधायक भी बन चुके हैं। लेकिन इनके अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर, राज्यसभा सदस्य प्रभात झा के बेटे तिृष्मुल झा, स्व. नंदकुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह, मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया, सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार महाजन, पूर्व मंत्री करणसिंह वर्मा के बेटे विष्णु वर्मा, गौरीशंकर बिसेन के बेटी मौसमी बिसेन, गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार, सत्यनारायण जटिया के बेटे राजकुमार जटिया, माया सिंह के बेटे पितांबर सिंह, मालिनी गौड़ के पुत्र एकलव्य, यशोधरा राजे सिंधिया के पुत्र अक्षय भंसाली, विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम, दीपक जोशी के बेटे जयवर्धन जोशी, अर्चना चिटनीस के बेटे समर्थ चिटनीस सहित कई नेता पुत्र राजनीति में अवतरित होने को बेताब हैं। लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के फॉर्मूले में ये फिट नहीं बैठते हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इन नेता पुत्रों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अधूरी रह जाएगी।
भाजयुमो में एक भी नेता पुत्र नहीं
भाजपा ही एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जिसमें बड़े नेता बनने का रास्ता भाजयुमो से होकर ही गुजरता है। पार्टी में आज जितने भी बड़े नेता हैं, वे भाजयुमो के पदाधिकारी रहे हैं। ऐसे में दिग्गज नेताओं के बेटा-बेटा राजनीति में आने के लिए भाजयुमो में एंट्री पाने को लालायित रहते हैं। अगर यह कहा जाए कि भाजयुमो नेतापुत्रों का लॉन्चिंग पैड है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन इस बार भाजयुमो में एक भी नेता पुत्र को जगह नहीं दी गई है। यानी प्रदेश संगठन ने नेता पुत्रों की सियासी तरक्की पर रोक लगा दी है। जबकि एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के पुत्र अपने पिता की राजनीतिक पिच पर सियासी प्रैक्टिस कर रहे थे।