
- दलहनी फसलों पर प्रकृति की मार…खाद और बीज ने किया किसानों को बेहाल …
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की मिट्टी दलहनी फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से खाद-बीज की कमी और प्रकृति की मार से दलहनी फसलों का उत्पादन प्रभावित हुआ है। आज स्थिति यह है कि प्रदेश से सोया प्रदेश का तमगा छिनने की नौबत आ गई है। वहीं चना, मूंग, उड़द, तुअर का उत्पादन भी लगातार कम हो रहा है। दरअसल, सोयाबीन, चना, मूंग, उड़द, तुअर ऐसी फसलें हैं जिनके उत्पादन के लिए अच्छी क्वालिटी का बीज और खाद तो चाहिए ही साथ ही कीटनाशक भी लगता है। लेकिन किसानों को समय पर ये उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। इस कारण इनका उत्पादन प्रभावित हो रहा है। होशंगाबाद जिले के तालकेसरी के कृषक हाकिम सिंह बताते हैं कि गेहूं, धान और मक्का में कीट बहुत कम लगता है, जबकि सोयाबीन, मूंग, उड़द, तुअर, मूंगफली, चना आदि फसलों में कीट बहुत जल्द लगता है। ना ही इन फसलों के लिए बीज समय पर मिलता है और ना ही कीटनाशक। साथ ही प्राकृतिक आपदा से नुकसान होने की संभावना भी ज्यादा रहती है, जिसके कारण किसान उपलब्ध फसलों को ही बढ़ावा दे रहे हैं।
दलहनी फसलों से किसानों का मोहभंग
किसानों का कहना है की सोयाबीन, चना, मूंग, उड़द, तुअर ऐसी फसलें हैं जिन पर मौसम का सबसे अधिक असर पड़ता है। लगातार मौसम की मार और खाद-बीज की कमी होने के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इस कारण किसानों का दलहनी फसलों की खेती से मोहभंग हो रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में 77 लाख किसान 5 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि के मालिक हैं। इनमें अंधिकांश किसान सोयाबीन, चना, मूंग, उड़द, तुअर आदि फसलों का उत्पादन करने में पीछे हट रहे हैं।
इन फसलों का उत्पादन घटा
फसल 2019-20 2020-21
सोयाबीन 58.09 38.56
उड़द 11.32 04.63
तुअर 08.39 02.74
मूंगफली 04.11 03.45
सरसों 10.41 10.38
कपास 08.79 08.39
स्त्रोत: कृषि विभाग, उत्पादन लाख टन में
अन्य फसलों का नहीं मिल रहा उचित दाम
किसानों की परेशानी यही खत्म नहीं होती है। दलहनी फसलों के अलावा वे अन्य फसलों की खेती करते हैं तो उन्हें उनका उचित दाम नहीं मिल पाता है। वैसे धान की पैदावारी से भी इन्हें नुकसान हो रहा है, क्योंकि एक दशक पहले धान के दाम 4500 रुपए क्विंटल मिलता था जो अब मात्र 2 हजार या 2,200 रुपए क्विटल ही बेच पा रहे हैं। बीते साल गेहूं के उत्पादन में मप्र रिकॉर्ड बना चुका है। करीब 37.6 लाख मीट्रिक टन उत्पादन कर पंजाब को भी पीछे छोड़ चुका है। इस साल ये उत्पादन 4 सौ लाख मीट्रिक टन होने की संभावना है। प्रदेश में अधिकांश किसान छोटे है, इस कारण उन्हें अपनी उपज के सही दाम नहीं मिल पाते। सरकार ने कृषि उपज मंडियां तो बना रखी है, लेकिन वहां पर भी व्यापारी मनमर्जी के रेट देते हैं, जिसके कारण उपज मंडी लाने में भी दिक्कत होती है और खर्च भी ज्यादा वहन करना पड़ रहा है।
गेहूं, धान और मक्का पर फोकस
कृषक जागृति मंच के संयोजक इरफान जाफरी कहते हैं कि सोयाबीन, तुअर सहित अन्य फसलों के बीज समय पर नहीं मिल पाते। कीटनाशक दवाओं की भी समस्या रहती है। बीज काफी महंगे दामों पर खरीदना पड़ता है और उत्पादन में भी अंतर रहता है। इन सभी समस्याओं के कारण हमने भी गेहूं, धान और मक्का की फसल की तरफ रुख किया है। दलहनों की तरफ झुकाव कम हुआ है। सरकार किसानों की आय दोगुना करने की तो बात करती है, लेकिन दिक्कतों से छुटकारा नहीं दिला पाती।