प्रदेश के पचास लाख बीड़ी मजदूरों पर रोजगार का संकट

बीड़ी मजदूरों

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र का बुंदेलखंड अंचल सर्वाधिक पिछड़ा और गरीब इलाका माना जाता है। इस अंचल में गरीबों का सबसे बड़ा रोजगार बीड़ी बनाने से जुड़ा हुआ है। अब केन्द्र सरकार ने बीड़ी पर कर तय करने के लिए एक रिव्यू कमेटी गठित कर दी है।
इसके बाद से ही इस मध्यप्रदेश में इस कारोबार से जुड़े लोगों में हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। यह रिव्यू कमेटी ऐसे समय गठित की गई है जब इस उद्योग पर संकट के बादल पहले से ही मंडरा रहे हैं। अगर कमेटी कर बढ़ाने की सिफारिश करती है तो इसकी वजह से यह कुटीर उद्योग पूरी तरह से न केवल चौपट हो जाएगा, बल्कि उसमें लगे करीब 50 लाख लोगों के सामने रोजगार तक का संकट खड़ा हो जाएगा। इनमें बीड़ी श्रमिकों से लेकर तेंदूपत्ता संग्राहक तक शामिल हैं। इस क्षेत्र से जुड़े व्यवसायियों का कहना है कि इसकी वजह से न केवल बीड़ी माफिया पनपेगा, बल्कि सरकार को भी फायदा की जगह कई गुना तक कर का नुकसान उठाना पड़ेगा।
अनुमान के मुताबिक प्रदेश में फिलहाल करीब चार सैकड़ा अपंजीकृत बीड़ी कारोबारी हैं जो किसी भी प्रकार के कर का भुगतान नहीं करते हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 12 अक्टूबर 2021 को तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी और अन्य करों पर विचार विमर्श के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित की है। लेकिन इससे देश के बीड़ी उद्योगपति और मजदूर ट्रेड यूनियन के पदाधिकारियों को पूरी तरह से दूर ही रखा गया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में बीड़ी उद्योग की शुरूआत करीब दो सौ साल पहले होना माना जाता है। इस उद्योग का स्वर्णकाल अस्सी के दशक को माना जाता है। मप्र में तेंदूपत्ता की र्प्याप्त उपलब्धता की वजह से यह उद्योग अच्छा  फला और फूला है। बाद में इस उद्योग में सरकारी स्तर पर रोकटोक बढ़ती शुरू हुई तो धीरे -धीरे यह उद्योग अन्य राज्यों की ओर जाना शुरू हो गया।
इन जिलों में होगा सर्वाधिक असर
बुंदेलखंड के सागर, दमोह, छतरपुर की एक बड़ी आबादी बीड़ी उद्योग से जुड़ी है। इस बीड़ी उद्योग से जुड़े मजदूरों की हालत बद से बदतर है। बीड़ी बनाकर अपनी रोजी रोटी चलाने वाली बड़ी आबादी जीएसटी के लागू होने से परेशान है, क्योंकि बीड़ी पर 28 फीसदी जीएसटी लगाया गया है। इसकी वजह से बीड़ी के दाम तो बढ़ गए लेकिन बीड़ी पीने वालों की तादाद में भारी कमी आयी है। मांग कम होने से पहले से ही बीड़ी उद्योग की कमर टूटी हुई हें ऐसे में अगर कर की नई दर तय कर दी जाती है तो यह उद्योग तो पूरी तरह ही चौपट हो जाएगा। हालात यह हो चुकी है कि प्रदेश के घर-घर में चलने वाले छोटे-मोटे बीड़ी उद्योग तेजी से समाप्त हो रहा है।
8 में से 4 बड़े कारखानों में लगा ताला  
जीएसटी लागू होने के बाद इस अंचल में 8 में से 4 बड़े कारखाने बंद हो चुके हैं। जीएसटी लागू होने से पहले बीड़ी पर 20 प्रतिशत वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) लगता था लेकिन जीएसटी के बाद अब तेंदू पत्ता संग्रहण पर 18 फीसद टैक्स लगने लगा है। तेंदू पत्ते से बीड़ी बनाने पर 28 फीसद टैक्स लगता है। इस तरह तेंदू पत्ता संग्रह से लेकर बीड़ी बनाने तक पर अब 46 फीसद टैक्स लिया जाता है। इसकी वजह से बीड़ी की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हुई है। बीड़ी के विकल्प सिगरेट पर 28 फीसद जीएसटी लगता है। दोनों की कीमतों का अंतर कम होने के कारण लोग अब बीड़ी की जगह सिगरेट पीना पसंद करने लगे हैं।
हर रोज होता है दस करोड़ बीड़ी का निर्माण  
एक आंकड़े के मुताबिक फिलहाल प्रदेश में हर दिन औसतन दस करोड़ बीड़ी का निर्माण किया जाता है। एक मजदूर को एक हजार बीड़ी बनाने पर 70-80 रुपए मिलते हैं। इसके बनाने के काम में करीब 16 लाख श्रमिक हैं। खास बात यह है कि इसमें भी बड़े पैमाने पर घरों में महिलाओं से लेकर बच्चों तक की सहभागिता रहती है। फिलहाल मप्र में ही सरकार को इस व्यवसाय से दो हजार करोड़ का कर मिलता है। इसमें एक हजार करोड़ रुपए तेंदूपत्ता संग्रहण से और इतनी ही राशि बीड़ी पर लगाए गए जीएसटी के रुप में मिलती है। इसमें से तेंदूपत्ता संग्रहण पर कर सो मिलने वाली राशि में से 80 फीसदी हिस्सा बोनस के तौर पर बांट दिया जाता है।
यह की जा रही अब मांगें
– बीड़ी के नाम पर अब नया कोई कर नहीं लगाया जाए।
  250 साल पुराने ट्राइबल प्रोडक्ट को पहचान मिले।
  कमेटी में ट्रेड यूनियन और बीड़ी उद्योग के लोग शामिल हों।
 बीड़ी श्रम आधारित है, इसलिए इसे कुटीर उद्योग का दर्जा मिले।

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