26 करोड़ के गबन में 4 साल बाद भी कई दागी बेनकाब

 दागी बेनकाब
  • महिला-बाल विकास में मानदेय घोटाला

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    राजधानी सहित प्रदेश के 14 जिलों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं के मानदेय के नाम पर 26 करोड़ से अधिक के घोटाले में कई दागी 4 साल बाद भी बेनकाब हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस घोटाले में 250 लोगों के खातों में राशि डाली गई हैं। जिसकी परतें अभी खुलती ही जा रही हैं।
    गौरतलब है कि भोपाल के आठ बाल विकास परियोजना अधिकारी, पांच लिपिक के बाद 94 ऐसे लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है, जिनके बैंक खातों में घोटाले की राशि जमा कराई गई है, पर अब भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके चेहरे से नकाब हटाया जाना है।
    वर्ष 2017 में सामने आए इस मामले में अकेले भोपाल में साढ़े छह करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। महिला एवं बाल विकास विभाग के फंदा, बाणगंगा, मोतिया पार्क, चांदबड़, बरखेड़ी, गोविंदपुरा, बैरसिया और चूनाभट्टी बाल विकास परियोजना के तत्कालीन अधिकारियों, लिपिकों एवं जिले के अधिकारियों ने मिलकर सरकार को नुकसान पहुंचाया है। इन आरोपितों से पूछताछ में घोटाले की अवधि में महिला-बाल विकास संचालनालय में पदस्थ रहे कुछ अधिकारी भी जांच की जद में आ सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि घोटाले की राशि उनके परिचितों के बैंक खातों में भी जमा कराई गई है।
     ढाई सौ लोगों के खातों में डाली गई है राशि
    महिला एवं बाल विकास विभाग की सतही जांच में पता चला है कि जिन लोगों के बैंक खातों में घोटाले की राशि जमा कराई गई है, उनकी संख्या 250 या उससे ज्यादा भी हो सकती है। अब विभाग ऐसे लोगों की जांच करने से पल्ला झाड़ रहा है। अधिकारियों का तर्क है कि बाहरी व्यक्तियों की जांच करना उनका काम नहीं है। यह जिम्मा पुलिस का है। वर्ष 2017 में सामने आए इस मामले में अब तक जांच के नाम पर खानापूर्ति चलती रही है, पर अब जैसे ही जांच ने तेजी पकड़ी है कई चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि मामला सिर्फ 14 जिले या 26 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का नहीं है। यह बड़ा घोटाला है और प्रदेश का लगभग हर जिला इसकी जद में आ चुका है।
    3 साल तक होता रहा घोटाला
    अब बारीकी से पड़ताल करने की जरूरत है। बात सच भी लगती है। क्योंकि विभाग तीन साल में सिर्फ 13 आरोपितों को ढूंढ़ पाया था, पर जैसे ही जांच आगे बढ़ी, दूसरे जिलों के अधिकारी और कर्मचारियों के नाम भी सामने आने लगे और आरोपितों की संख्या 13 से बढकर 40 हो गई है। जबकि घोटाले की राशि अपने खातों में जमा कराने  वालों (विभाग से बाहर के लोग) की संख्या 250 तक पहुंच गई है। ज्ञात हो कि विभाग में वर्ष 2014 से 2017 तक यह घोटाला हुआ है। आरोपित ग्लोबल बजट से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं का मानदेय निकाल रहे थे, जबकि इसका अधिकार वर्ष 2014 में जिला परियोजना समन्वयक को दे दिया गया था और वे नियमित रूप से मानदेय के लिए आए बजट मद से मानदेय निकाल रहे थे। इस तरह एक कार्यकर्ता या सहायिका का मानदेय महीने में दो बार निकल रहा था, पर राशि एक ही बार की मिल रही थी।
    कई बड़े अधिकारी होंगे बेनकाब
     जानकार बताते हैं कि मामले की गहराई से जांच हुई, तो उस समय महिला एवं बाल विकास संचालनालय, मंत्रालय और तत्कालीन विभागीय मंत्री के कार्यालय में रहे कई अधिकारी फंस सकते हैं। क्योंकि उन्हीं की शह पर मैदानी अधिकारी इतना बड़ा खेल खेल गए और यही कारण था कि शुरूआती तीन जांचों में घोटाला नहीं पकड़ाया। बल्कि मामले की जांच करने वाले अधिकारी भोपाल की तत्कालीन संयुक्त संचालक स्वर्णिमा शुक्ला, संचालनालय में पदस्थ उप संचालक ज्योति श्रीवास्तव और तत्कालीन वित्त सलाहकार राजकुमार त्रिपाठी ने आरोपितों को क्लीनचिट दे दी थी। अब इन अधिकारियों की भी जांच शुरू की गई है। सूत्र बताते हैं कि इस जांच दल का दायरा बढ़ाया जाए, तो और कई चेहरे सामने आ जाएंगे।

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