अधिक दोहन करने से गिर रहा है प्रदेश में भूजल स्तर

भूजल स्तर
  • जिम्मेदार अफसर सो रहे हैं गहरी नींद में

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में अब भूजल स्तर गिरने का बड़ा सकंट खड़ा हो गया है। हालात यह है कि क्षमता से अधिक दोहन किए जाने की वजह से हर साल पानी का भूजल स्तर गिरता ही जा रहा है। इसकी वजह से प्रदेश में बड़े जल संकट की आहट मिलनी शुरू हो गई है। पानी संचय को लेकर बरती जा रही लापरवाही और अधिक पानी का उपयोग किए जाने की वजह से प्रदेश में हर साल भूजल स्तर करीब 4 इंच नीचे चला जा रहा है। अगर इस हिसाब से देखें तो बीते एक दशक में औसतन भूजल 40 इंच यानी सवा तीन फीट तक नीचे पहुंच चुका है। अगर हालात यही रहे तो प्रदेश में आने वाले सामय में बड़ा जल सकंट खड़ा होना तय है। खास बात यह है कि इन हालातों के बाद भी सरकारी स्तर पर पानी के संचय और उसके रीचार्जिंग पर कोई ध्यान तक नहीं दिया जा रहा है। इस हालात की दूसरी बड़ी वजह है सीमेंट कांक्रीट का बड़ा जगंल हर साल खड़ा करना और वारिश के समय पानी का प्रबंधन नहीं किया जाना। प्रदेश की जमीन में सरकारी अनुमान के मुताबिक  साढ़े सात लाख मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी को सहेजने की क्षमता है। इसमें भी सबसे बड़ी चिंता की बात है हर साल 1 हजार एमसीएम यानी 90 खरब लीटर पानी का बर्बाद होकर बह जाना। हाल ही में सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने भूजल के आर्टीफिशियल रीचार्ज के लिए मास्टर प्लान भी जारी किया है। इसमें ग्राउंड वाटर प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई है। बताया है कि किस जिले में कितने पानी की रीचार्जिंग की क्षमता है इसका भी इसमें उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि मप्र के मुरैना, भिंड और देवास ऐसे जिले हैं जिनमें जमीन सबसे ज्यादा सूची हुई है। यानि की इन जिलों में सबसे अधिक पानी को जमीन के अंदर रिचार्ज किया जा सकता है। हद तो यह है कि इन हालातों के बाद भी बिल्डिंग परमिशन के साथ रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य है, लेकिन 10 प्रतिशत लोग भी इस पर अमल नहीं कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस मामले में जिम्मेदार स्थानीय निकाय भी बेहद लापरवाह बने हुए हैं। वे न तो इनका परीक्षण करवा रहे हैं और न ही राशि लेने के बाद रिचार्जिंग की व्यवस्था करवा रहे हैं।
    भूजल वृद्धि के लिए यह उपाय जरुरी
    सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा भूजल रिचार्जिंग का जो मास्टर प्लान तैयार किया गया है अगर उस पर अमल किया जाए तो भूजल स्तर में कमी आने से रोक संभव है। इसके तहत भूजल बढ़ाने के लिए ठोस बटानी इलाकों में सतह पर पानी फैलाने वाली तकनीकों जैसे परकोलेशन टैंक, चैक डैम, नाला बंधान रीचार्ज शैफ्ट जैसे उपाय बेहद कारगर बताए गए हैं। इसी तरह से एल्यूवियल क्षेत्रों में पहाड़ों के सामने वाले हिस्से पर परकोलेशन क बनाना सबसे ज्यादा कारगर तकनीक है। चैक डेम में रीचार्ज शेफ्ट बनाने से पानी सीधा जमीन के अंदर जाता है।
    यह  है प्रदेश के महानगरों में स्थिति
    प्रदेश के चारों महानगरों में शामिल भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में कुल हाउसहोल्ड के 30 प्रतिशत भी रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग कर लें तो यह पर्याप्त होगा। मास्टर प्लान के मुताबिक इन शहरों में 4 लाख 8 हजार 938 घरों में यह सिस्टम होना चाहिए। माना गया कि प्रत्येक घर में 50 वर्ग मीटर क्षेत्र इसके लिए उपलब्ध होगा। इस प्रकार कुल 2 करोड़ 4 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र उपलब्ध होगा। इससे प्रतिवर्ष 17.41 एमसीएम पानी से भूजल रीचार्ज किया जा सकता है।

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